प्रेम युवावस्था का मोहताज नहीं ।
प्रेम युवावस्था का मोहताज नहीं ।
एक समय की बात है कि एक लड़के कि एक लड़की से अचानक रास्ते में मुलाकात होती है। और दोनों एक दूसरे को देखते हुए अपने अपने घर को चले जाते हैं। दोनों एक दूसरे के बारे में सोचने लगते हैं। कि तभी लड़की को याद आया कि उसकी तो engagement हो गई है और वह रोने लगती है कि तभी कोई door knock करता है तो वो शांत हो जाती है। और जा के door open करती है। फिर उसे अपने दादा जी का ख्याल आया क्योंकि घर में दादा-दादी ही थे मां बाप बचपन में स्वर्गवास हो गए थे। और फिर उस लड़की की शादी हो जाती है लेकिन वह खुश नहीं थी और ससुराल वालों को भी वह हमेशा खटकती थी क्योंकि दहेज नहीं लायी थी और उसका पति भी उसका ध्यान नहीं रखता क्योंकि उसे वो पसंद नहीं थी, उसे तो बहुत सारा पैसा चाहिए था जो उसे मिला नहीं तो उसने उसे खत्म करवा दिया। और इधर उस लड़के ने कभी शादी नहीं की और वृद्धावस्था में उसे याद करते करते स्वर्गवास हो गया । इस तरह दोनों कि कहानी खत्म हो गई शायद वो दोनों एक दूसरे के लिए आते थे लेकिन समाज ने अलग अलग कर दिया। इस तरह वृद्धा-युवा हो प्रेम युवावस्था का मोहताज नहीं।

