प्रेम रात
प्रेम रात


चाहकर भी अब उससे बात करने की मुझे फुर्सत नहीं मिलती। अब तो उसने भी यह कहना छोड़ दिया है कि.... कभी तो फ़ोन करो।
उफ़ .. शायद मेरे रूखेपन ने ही उसे भी अब रुखा बना दिया होगा।
बस कुछ 2 साल पहले की ही तो बात थी.. जहाँ उसका कॉल आया वही मैंने उठाया और फिर उससे घंटो बातें।
एहसासों के भरोसे से लेकर,,प्यार में होने वाली नाराजगी और मीठे-मीठे झगड़ों के बाद होने वाली सुलह, इन बातों के बाद भी कभी-कभी ये फ़ोन हमारे फलसफों को बयां न कर पाये तो इस बहाने उनसे मुलाकात हो जाती।
लेकिन अब लगता है कि प्यार खत्म हो गया।
अरे नहीं यार, प्यार खत्म नहीं हुआ...प्यार तो उससे खत्म होता है जिससे किया जाता है, जताया जाता है।
मैंने कभी प्यार नहीं जताया। प्यार तो हमारे एहसासो की एक धड़कन थी,,सिर्फ देह ही तो अलग थी हमारी।
हम एक दूजे के लिए बने हैं, वो मेरी है और मैं उसका, जैसे राधा और कृष्ण।
पर, आज इस अनुभूति का मेरे पास कोई सहारा नहीं है, क्योंकि आज वो मेरी नहीं है...जिसे इतना चाहा, जिसके लिए मैं जिया अब वो मेरी नहीं है।
अपने मन को धीर देकर...फिर बीते पलों के साथ खुद को थाम, एक लंबी सांस भर मैंने खुद से कहा, भले ही वो मेरी न हो लेकिन मैं उसका हूँ, ताउम्र।
मेरा नाम सुबोध है, अब अपने घर से कहीं दूर...एक अनभिज्ञ जिंदगी जी रहा हूँ।
जी क्या रहा हूँ, जी। एक तरीके से मर ही रहा हूँ।
दिमाग में जीवन की कसौटियां है, तो दिल में सिर्फ पिया है। पिया मेरी जान..।
पिया का नाम लेते ही आज भी मेरी ये आँखें भर आती हैं, और आँखे भरे भी क्यों न,,जान है वो मेरी।
आज, उसके किसी और के होने के गम से ज्यादा मुझे जिंदगी भर के लिए उसे खोने का गम ज्यादा तड़पाता है। (आँख के आसुंओं से स्मार्ट फ़ोन की स्क्रीन भीग रही है उसी समय अचानक 1 फ़ोन आता है, एहसासों से ऊपर उठ फोन को रिसीव करने पर)
हेलो सुबोध...हेलो, सुबोध है क्या ?
हाँ प्रियुम बोल।
2 साल बाद आज फ़ोन किया तुझे , वो भी नये नंबर से जब भी पहचान गया न, अभी तक भुला नहीं, हां...
क्यों फ़ोन किया ? तूने।
अरे जवाब तो दे, मुझे भूला नहीं। अच्छा मुझे कैसे भूलेगा तू , तेरा दोस्त जो हूँ।
क्यों फ़ोन किया ? (गुस्से से)
आज मेरी पहली रात है। आखिर मेरी मेहनत रंग ला गयी।
थोड़ा सा सहमकर,
अच्छा... हाँ तो भाई... तुझे बहुत बधाई हो।
अचानक सन्नाटा छा जाता है। फ़ोन जमीन पर और घुटनों पर बैठा हुआ मैं, आँखों से आसूँ निकल रहे हैं मेरे... बस जमीन पर गिरने से रोक रहा हूँ। क्यों गिरने दूँ इन्हें मैं।
पिया तुम्हारे लिए। क्यों...?
आख़िरकार तुम आज उसकी हो गयी न पिया। तुम्हें तो प्रियुम का होना ही था। कब तक दूर रहती ? प्रियुम तुम्हारा पति जो ठहरा।
मैं कौन हूँ ? जिसे इतना बुरा लग रहा है, एक आशिक़। आशिक़ तो साले गली मोहल्ले में ढेरों पड़े हैं और आजकल आशिक़ों को पूछता ही कौन है ?
क्योंकि आज का आशिक़ एक वासना का पुजारी जो ठहरा।
पर मैं ऐसा नहीं था। नहीं था मैं ऐसा (गुस्से से)
बोलो, न पिया। मैं ऐसा नहीं था न।
अब तुम कैसे बोलोगी ? तुम तो प्रियम की बाँहों में होगी।
पिया...(जोर-जोर से)
बैठे बैठे रात जा रही थी और पिया की यादें भी कमरे से धीरे-धीरे मैं कुछ लेटर, कुछ गिफ्ट, चॉकलेट के रेफर ला रहा था और 1-1 करके सबको निहार रहा हूँ। अब पिया तो नहीं है, क्यों न इनको जला दूँ मैं।
फिर, एक झटका लगता है मुझे या यूँ कहे कि होश आता है।
पिया की प्रियुम से सगाई तो 2 साल पहले हुई और शादी 6 महीने पहले। पिया तो कब से प्रियुम की हो गई आज तो सिर्फ उनके जिस्म 1 हो रहे हैं।
क्या मैंने भी जिस्मानी प्यार किया था ? इसलिए तो आज मैं ये सब जला रहा हूँ।
नहीं..नहीं..का शोर गूंजता है मेरे कानों में।
मैं सब सामान कमरे में रख अपने आप को ही अपने सच्चे प्यार की दुहाई देने लगता हूँ।
सुबह हो जाती है, आज का सूरज उम्मीदें लेकर नहीं आने वाला, ये तो जानता ही था।
9 बजने ही वाले थे। फ़ोन की घंटी बजने लगी, देखा तो वही प्रियुम का नंबर था।
मैं फ़ोन उठाने को तैयार ही नहीं था क्या सुनूँगा ? प्रियुम से उस रात के बारे में, क्या पिया और उसके मिलन के बारे में ?
इस प्रियुम ने मेरा सब छीन लिया और आज भी मेरे घावों पर मिर्ची लगाकर ही खुश होगा।
हाँ बोल प्रियुम। क्या हुआ ?
प्रियुम- सुबोध कल की रात अच्छे से गुजरी न।
क्या बोलना है ? बोल फटाफट।
प्रियुम- तू नहीं सुनना चाहता न पर मैं जरूर सुनाऊंगा। कल की रात हम दोनों 1 हो गए। सौंप दिया तेरी पिया ने मुझे,,और कल से तेरा सब कुछ खत्म। अब तू उसे भूलकर भी अपनी यादों में भी मत याद करना। कल से पिया के हर अंग पर प्रियुम लिखा हुआ है। तन पर भी और मन पर भी।
हम्म।
(मेरे आँसू गिरने लगे)
फिर भी एक गहरी आवाज में मैंने उससे पूछा कि
पिया कैसी है ?
जवाब नहीं आया और एक बेहद गन्दी हँसी सुन मैंने उसे फिर पूछा कि
बोल न ! पिया कैसी है ? (जोर से चिल्लाकर)
प्रियुम- मेरे प्यार का फोर्स कुछ ज्यादा ही तेज था यार। अब तूने तो पवित्र रिश्ता निभाया था न भाई, तो कभी आदत नहीं थी न उसे।
तो बस बेचारी सह नहीं पाई मेरे रिश्ते को। हॉस्पिटल में एडमिट किया है ठीक हो जायेगी कल तक।
तू कितना हैवान है प्रियुम...तेरी ही थी वो, मैं तो 2 साल से तुम्हारे बीच नहीं था। जीवन भर वो तेरी ही रहेगी। कैसी हालत कर दी तूने उसकी कमीने ?
तू परेशान मत हो, सुबोध। तू केवल आशिक़ था वो भी गुजरा हुआ। मैं उसका आज हूँ, पति हूँ उसका।
ध्यान रख लूंगा।
पिछले 2 साल से दखल नहीं दिया हैं न अब आगे भी हम दोनों की जिंदगी में कभी दखल मत देना।
प्रियुम, प्रियुम।
टू टू टू (फ़ोन कट गया)
मैं इधर पिया की हालत के बारे में सोच-सोचकर परेशान था। मुझे पिया को देखने की तड़प थी, पिया हॉस्पिटल में एडमिट है, यह ख्याल ही मुझे जीने नहीं दे रहा था, मुझे बस पिया से मिलना था।
सो मैंने कुछ नही सोचा। उठाया अपना बेग और बस स्टैंड की तरफ भागा।
मैंने पिया की बहिन को फ़ोन किया।
हलो
कैसी है वो ? नैना...नैना बोलो कैसी है वो।
सुबोध भैया...और नैना की रोने की आवाज।
नैना की रोने की आवाज सुन अब मुझे चंदनपुर जाने की जल्दी और बढ़ गयी। मैं बस में जाकर चंदनपुर के लिए बैठ जाता हूँ।
चंदनपुर जहाँ हमारा बचपन बीता।
बस का लंबा सफर और पिया की हालत...फिर भी 5 घंटे तो बिताना ही है।
बस के चलते ही शुरुआत हुई मेरे के सफर की उन यादों कि जिनके सहारे 2 साल से मैं जी रहा हूँ।
बात बचपन की है चंदनपुर नाम का एक कस्बा, जिसके एक मोहल्ले में ही 3 परिवार थे और आज भी वही है बदला कुछ नहीं सिर्फ जिंदगी बदली है...मेरी, पिया और प्रियुम की।
मैं, पिया और प्रियुम बचपन के साथी है। साथ-साथ रहना, खेलना और स्कूल भी 1। तीनों में अच्छी दोस्ती थी और परिवारों में भी। जाति बंधन से गहरे इन परिवारों के दिल के बंधन थे। हम तीनों बच्चे पढ़ने में बड़े होशियार थे।
बचपन से ही मैं और प्रियुम पिया को चाहते थे लेकिन मेरा बचपन वाला प्यार कब जवानी में बदल गया, पता ही नहीं चला। मैंने प्यार का इजहार प्रियुम से पहले कर दिया और पिया ने प्यार कबूल भी कर लिया। हम दोनों का ये प्रेम बढ़ते गया। प्रियुम कभी पिया को बता पाया और न मुझे कि वो भी पिया से प्यार करता है बस दोस्ती का मुखोटा ओढ़ कर जलता रहा।
इधर मेरा और पिया का प्यार परवान चढ़ रहा था।
मैं- पिया, अब घर वालों को सब बताकर शादी कर ले। क्यों प्रियुम हमें शादी कर लेना चाहिए न।
प्रियुम- हाँ पर घर पर तो बताओ।
पिया- हाँ,, मम्मी तो मान जायेगी, बस पापा नहीं मानेंगे।
मैं - क्यों पिया, मुझे पसंद नहीं करते।
पिया- पसंद से क्या होता है जनाब, लड़की पालोगे कैसे ? कुछ करिए तो सही।
मैं- बस कर तो रहा हूँ प्यार, और कितना करूँ।
पिया- प्रियम तुम्हारे दोस्त को समझाओ न, प्यार से प
ेट नहीं भरता।
मैं- हाँ पता है। अभी लोक सेवा आयोग की परीक्षा निकालते ही हम जैसे ही अधिकारी बने, वैसे ही हाथ माँगा तुम्हारे पापा से। क्यों प्रियुम सही कह रहा हूँ न। प्रियुम और मैं रात-रात भर तैयारी करते हैं।
प्रियम- हाँ पिया। सच बोल रहा है यह।
पिया- देखना सही सही कर लेना वरना प्रियुम बन जाये और तुम रह जाओ।
मैं- अरे रह भी गए तो कुछ तो कर ही लेंगे। अब तुम देखती जाओ। अधिकारी तो हम बनेंगे ही।
अब जाओ भी यार प्रियुम। क्या गर्लफ्रेंड-बॉयफ्रेंड को 1 चुम्मा भी नहीं लेने दोगे।
(प्रियुम उठकर गुस्से से चला जाता है)
पिया- क्यों डांट दिया उसे।
मैं- साला जा ही नहीं रहा था। तुम चिंता मत करो। मना लूंगा उसे।
पिया- तो क्या सच में चुम्मा लोगे।
मैं- दे दो तो ठीक है।
पिया- सुबोध बस 1 महीने में तुम अधिकारी बन जाओ। घर वालो को भनक लग गयी है। कहीं पापा ने और कहीं... शादी ....
मैं- मर जाऊंगा पर ऐसा होने नहीं दूंगा।
यादों को ताजा करता हुआ बस में ही मैं रोने लगा और फिर उन्हीं यादों में...
क्या हुआ पिया ? इतना अर्जेंट फ़ोन किया।
हाँ तुम्हे कुछ बताना है। पहले वादा करो कि यह जानने के बाद कभी मेरा साथ नहीं छोड़ोगे।
हाँ वादा करता हूँ।
सुबोध तुमने किससे प्यार किया है ?
पिया से और किससे ?
मेरे जिस्म से या मेरी आत्मा से।
क्या हुआ पिया ? बोलो क्या हुआ ? कुछ हुआ है न पिया।
पहले तुम बताओ।
तुम्हें क्या लगता है ?
सुबोधऔर पिया जोर -जोर से रो देती है।
क्या हुआ कुछ तो बोलो पिया।
सुबोध, तुम मुझे भूल जाओ। मैं तुम्हें वो सुख नहीं दे सकती। मेरे अंदुरुनी हिस्से में घाव.....
बस चुप हो जाओ पिया।
तुम मेरे पास हो बस यही सुख काफी है। मुझे और कुछ नहीं चाहिए।
उस रात मेरी और पिया की आत्मा का मिलन था। वो रात हमारे मिलन की पहली रात थी। उस मिलन में मेरे वादों का उसके वादों से मिलन था। एक सही मायने के प्यार का मिलन था। जिसे शब्दों में कोई बयां न कर पाए। इस तरह का मिलन शायद आज के संसार में संभव नहीं है। जिस मिलन में जिस्म का हिस्सा अंश मात्र भी न हो।
सही मायने में वो राधा और कृष्ण का मिलन था।
प्रियुम के दिमाग में पिया कि अब वो बात बार-बार आने लगी कि" ऐसा न हो कि प्रियुम अधिकारी बन जाये।"
प्रियुम अब यह सोचने में लग गया कि किसी भी तरह सुबोध को अधिकारी बनने से रोकना है। सुबोध अधिकारी नहीं बना और वो बन गया तो पिया उसकी।
प्रियुम भी तीव्र बुद्धि का था पर आज वो कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था। प्रियुम के पिताजी की पहुँच भी अच्छी खासी थी और पैसा भी। 10 लाख अपने लाल के लिए जुगाड़ कर ही लिए रिश्वत के लिए। इससे प्रियुम का अधिकारी बनना तो पक्का ही था। आज के ज़माने में पहचान और पैसा क्या नहीं करवा सकता। मुझे रोकना अब भी बाकी था।
परीक्षा वाले दिन मैं और प्रियुम साथ में जा रहे होते हैं। मैं प्रियुम के षड्यंत्र से अंजान, दोस्ती का हाथ थाम चले जा रहा हूँ। अचानक कुछ 2-3 लोग रस्ते में बेवजह का विवाद करते हैं, प्रियुम से। प्रियम हाथापाई कर लेता है। मैं बीच-बचाव करता हूँ। इतने में प्रियुम अपने प्लान के मुताबिक परीक्षा के लिए रवाना और उधर से पुलिस का आना। मुझे उन लड़कों के साथ पुलिस पकड़ लेती है। जब तक विवाद खत्म होता है परीक्षा 1 घण्टे की निकल चुकी थी मैं परीक्षा नहीं दे पाता।
प्रियुम, मुझसे माफ़ी मांगता है भाई मैं पापा को फ़ोन कर रहा था कि पुलिस आयी तुझे ले गयी तो मुझे लगा.... इसलिए मैं परीक्षा हाल चले गया यार।
मुझे यह गम नहीं था कि मैं परीक्षा नहीं दे पाया। अब पिया और मेरा क्या होगा। पिया की शादी कहीं और हो गयी तो।
15 दिन बाद रिजल्ट आया प्रियुम अधिकारी बन गया। प्रियम के पापा ने पिया का हाथ, पिया के पापा से मांग लिया।
दोनों परिवार राजी हो गए। पिया की किसी ने सुनी ही नहीं...लड़कियों से आजकल ज्यादा पूछा ही कहाँ जाता है। मैंने और पिया ने प्रियुम से 1 प्रश्न जरूर किया।
प्रियुम तुम जानते हो की हम एक दूसरे को चाहते हैं तुमने मना क्यों नहीं किया।
प्रियुम- अरे पिया, सुबोध, मैं बार-बार कहा पर मेरी किसी ने नहीं सुनी। अब जो हो रहा है तुम दोनों भी इसे नियति समझ लो। ऐसे भी तुम यह समझो की सुबोध, पिया के पापा तो इसकी शादी किसी से भी करवा देते वो तो मैं मिल गया....तुम्हारा प्यार महफूज हाथों में है।
थोड़े ही समय में मुझे सब सच पता चल गया पर मैंने पिया को कुछ नहीं बताया, क्योंकि उसे बताता भी क्या ? आखिर प्रियुम उसका होने वाला पति था। मुझे बड़ी हैरत हुई कि जो दोस्त मेरी जान था उसने आखिर मेरी ही जान ले ली।
प्रियुम तूने ऐसा क्यों किया ?
प्रियुम- बचपन से चाहता हूँ पिया को। वो बस मेरी है और मेरी रहेगी। अब तुझे सब पता चल गया है न तो दफा हो जा हम दोनों की जिंदगी से। कहीं दूर चले जा। वरना पिया की जिंदगी शादी के बाद नरक बन जायेगी।
एकदम जोर के धक्के के साथ बस रुक जाती है।
मैं भागते-भागते हॉस्पिटल जाता हूँ।
प्रियुम - तू क्यूँ आया यहाँ ? मरी नहीं है वो।
मैं प्रियुम को 1 थप्पड़ मारता है। प्रियुम भी मुझे मारता है। प्रियम के पापा और पिया के पापा हम दोनों को छुड़ाते हैं। शादी होने के बाद ही प्रियुम ने मेरे और पिया के रिश्ते को उजागर कर दिया था।
प्रियुम के पापा- तुम्हें यहाँ किसी ने नहीं बुलाया है।
मैं तेजी से अंदर चले जाता हूँ।
हॉस्पिटल के अंदर पिया की माँ और मेरी माँ दोनों है।
माँ पिया कैसी है ?
बेटा आई.सी. यु. में है अभी। डॉक्टर एक ऑपरेशन कर रहे हैं।
रात होने को है...पिया को होश आता है।
मैं पिया से मिलता हूँ...
पिया..पिया...जो तुमने मुझसे वादे लिए थे, जो मुझे बताया था वो प्रियम को भी बता देती।
सुबोध सब कुछ बता दिया था सगाई वाले दिन ही। प्रियुम ने भी मुझसे वादा किया था, पर शादी के बाद से ही वह रोज मुझे समझाता और विवश करता की मैं सम्बन्ध बनाऊं। मैंने डॉक्टर को भी बताया। डॉक्टर ने कहा था कि केस बहुत अलग है पिया आप बहुत सावधानी रखना। प्रियुम को मैं समझाती रही। कल रात वो नहीं माना। मेरे ऊपर 1 भूखे भेड़िये की तरह टूट गया। सुबोध में रात भर चिल्लाती रही उसने मेरी 1 न सुनी। आखिर में मेरी सांसे जवाब दे गयी और मैं टूट गयी, बिखर गयी। क्या यही उसका प्यार था ? इसलिए उसने तुम्हें और मुझे अलग किया था सिर्फ इस रात के लिए। मैंने उसे सब कुछ माना इन 2 सालों से तुम्हारा नाम तक नहीं लिया। उसने मेरे साथ यह किया।
तीनों परिवार के लोग उस कमरे में आ चुके थे। सबकी आँखों में आसूँ थे ।
उधर से डॉक्टर आते हैं और बोलते हैं कि पिया के पति कौन है ? प्रियुम मेरे आगे आकर खड़ा होता है।
मिस्टर प्रियुम हमें आपको यह बताना है कि आप कम से कम 5 साल तक अपनी पत्नी के साथ सम्बन्ध नहीं बना सकते क्योंकि इनकी हालत बहुत ही नाजुक है। आज तो ये बच गयी। शायद......
प्रियुम- क्या 5 साल ? इससे अच्छा तो मैं इसे तलाक दे दूँ।
मैं 5 सालों तक....
(प्रिया, प्रियुम को बीच में ही रोक देती है)
पिया- प्रियुम तुम क्या तलाक दोगे ? मैं देती हूँ। ऐसे भी तुम्हारा मन तो भर गया होगा कल ही। जो चाहिए था मिल गया न।
प्रियुम वहां से चले जाता है।
प्रिया रो रही थी, मुझसे उसकी हालत देखी नहीं जा रही थी। मैंने उसका हाथ अपने हाथों में लेकर कहा, पिया मैं थामना चाहता हूँ यह हाथ 5 साल तो क्या 50 साल तक भी साथ निभाउंगा।
पिया जोर जोर से रो देती है। मैं उसके आंसू पोंछने की हिम्मत करता हूँ। साथ मैं परिवार के लोग भी रो रहे हैं। यहाँ तक कि वहाँ मौजूद हॉस्पिटल का स्टॉफ भी। शायद ऐसा मिलन किसी ने नहीं देखा होगा। आज की रात हम दोनों के मिलन की वो दूसरी रात थी। पहली रात जिसमें हमने वादे किये थे जो इस संसार से छुपकर अकेले में किये थे। आज की यह रात हमारे उन वादों को निभाने वाली प्रेम रात है। इस संसार को दिखाने वाली वो प्रेम रात है कि बिना जिस्म के भी प्रेम होता है।