प्रेम में बावरी

प्रेम में बावरी

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एक थी बावरी ! हाँ बावरी प्रेम की ! पर सुनो वो पहले से ऐसी नहीं थी, कतई नहीं थी, मतलब बावरी नहीं थी ! यहाँ पर ‘थी’ से यह मतलब भी नहीं है कि अब वो जिन्दा नहीं है बल्कि अब वो जीवित होकर भी जीवित नहीं है !

पहले उसका जीवन बहुत अच्छा था ! चैन से घर में रहती, घर के सारे काम खुश होकर करती, पेट भर खाती और खूब नींद भरकर सोती, जी भर कर हँसती, मस्ती करती ! वो जिधर से निकलती बहार सी आ जाती थी !

लेकिन अब ऐसा कुछ भी नहीं बचा था ! अब उसकी आँखों में हर वक्त पानी रहता, दर्द की तेज लहर उठती और वो तड़प उठती ! कभी बिन बात के ही हँस देती और कभी उदास हो रो पड़ती !

कभी कभी बहुत ज्यादा उदास हो जाती, आज भी उसका जी बहुत उदास था ! घर में मन नहीं लग रहा था ! किसी बैरागिन की तरह वह बार बार अंदर बाहर कर रही थी ! उसने बाहर आकर देखा सूरज महाराज अपने पूरे तेज के साथ चमक रहे हैं ! उनका प्रकाश चारो तरफ फैला हुआ है ! वो सूरज से आँख मिलाने की कोशिश करने में आँखें मिचमिचाने लगी, उसे सूरज पर बड़ा तेज गुस्सा आया !

तब वो उससे यूँ बोली, बहुत घमंड है न तुम्हें अपने तेज पर ! देखना एक दिन तुझे प्रकाश हीन कर दूंगी ! तुझे खींचकर धरती पर लाकर पटक दूंगी ! तब देखें कैसे बचा रहेगा तेरा घमंड !

जी भर के कोसने के बाद वो कमरे में आ गयी और फिर तकिये को सीने से चिपटा कर जोर जोर से रो ली ! अब उसका जी चाह रहा था कि चीख कर कहे, सुन रहा है न, तू जितना चाहें रुला ले मुझे, देख लेना एक दिन ऐसा आएगा जब तेरा घमंड खाक हो जायेगा, तब तुझे अहसास होगा मेरे प्रेम का ! तब देखना, मैं तुझे कहीं नजर नहीं आउंगी !

वह दीवार से सर टकरा कर जोर से चीत्कार कर उठी ! फिर दरवाजे से लिपट कर उसने उसको (दरवाजे) खूब प्यार किया !

अब मन कुछ हल्का लगने लगा था तो उसे कुछ भूख सी लग आई ! उसे जब भी भूख लगती, तभी वो खाना बनाती और खा लेती ! वह किचन में गयी उसने परात में आटा निकाला और आटे के साथ बड़े प्रेम से बातें करने लगी !

सुन रहे हो न, आटे के एक एक अन्न के दाने, तुमसे ही कह रही हूँ ! ध्यान से सुन लेना, जो मैं कहूँ मान लेना, समझ लेना मेरे मन की बात और आगे की बात वो भूल गयी कि उसे आटे से और क्या क्या कहना है ?

फिर उसने आटा गूंदा, गैस जलाई, उस पर तवा रखने से पहले गैस की जलती लपट को हाथ से स्पर्श करते हुए बोली- देख अग्नि देव अगर मेरा दिल तुझसे ज्यादा पवित्र है, तो मेरे निर्दोष दिल को इतना मत रुला, मत तड़पा, जिसके लिए मैंने खुद को ख़त्म कर दिया है, उसे जाकर अहसास तो करा दे ! तुझे पता है न कि मुझे रोना बिलकुल भी पसंद नहीं है ! मुझे हँसना अच्छा लगता है, खुश रहना अच्छा लगता है ! फूलों की तरह मुसकुराना खिलखिलाना ! अब मेरे मन को खुशियों से भर दे ! मेरे जीवन मे बहार ला दे ! उसकी ये बातें चलती रहती और तब तक तवा तपकर लाल हो जाता ! वो घबरा कर जल्दी से गैस बंद करती !

अब वो रोटियां सेंकती जाती और जोर जोर से ठठ्ठे मार कर हँसती जाती, इतना हँसती कि उसकी आँखों से पानी छलकने लगता !

वो रोटियां बनाकर बाथरूम में जाती और नहाने के लिए पानी की टंकी खोल देती ! बहते हुए पानी की धार को हाथ से पकड़ने की असफल कोशिश करती और साथ ही पानी की धार से कहती भी जाती- रे पानी तू सुन रहा है न, तू अमर है तो मेरे प्रेम को भी अमर बना दे ! ये कहते कहते उसकी आँखें छलकी छलकी हो जाती !

अरे ! मेरे हाथों का पानी मेरी आँखों में कैसे छलक आया ! यह सोचकर वो मुस्कुराती ! एक हाथ से आँखें पोछती और दूसरे हाथ से पानी की धार को यूँ ही पकड़े पकड़े बस मुस्कुराती ही रहती ! फिर वो नहाकर बाहर आती और अपनी हथेलियों को बार बार आपस में मसलती और चूमकर माथे से लगाती जाती ! बार बार दोहराती कि उनसे मिलवा दे न, मुझे मेरे प्रिय से मिलवा दे, बस एक ही बार मिलवा दे !

नहा धोकर लोटे में जल भरकर सूर्यदेव को चढ़ाती और सूर्यदेव से कहती- हे सूर्यदेव भगवान, आपको शत शत नमन है और जरा सुन, तू ही जा न, जाकर मेरा ये संदेशा मेरे प्रिय तक पहुँचा दे ! उन्हें मेरा खूब सारा प्यार देना, वे अपना ख्याल रखें ! कभी उदास न हो और सदा मुस्कुराते रहें ! और सुन जरा, अगर उनसे मिलना मेरी किस्मत का चमकना है, तो फिर मेरी थोड़ी सी किस्मत ही चमका दे न ! फिर वो मन ही मन खूब मुस्कुराती, मानों सूर्य ने उसकी हर बात समझ ली है और वह जरुर उसके प्रिय तक उसकी हर बात पहुँचा देगा !

 इतने में उसे बाहर से गाय के रंभाने की आवाज सुनाई देती है ! वो जल्दी से दौड़ कर किचन में जाती है ! वहां से केसरोल उठा लाती है और उसमें से एक एक करके रोटी निकालती है और गाय को खिलाती जाती है ! अपनी आँखों में दया भरकर उसे निहारती और प्यार से उसके माथे पर स्पर्श करती जाती है ! गाय सारी रोटियां खा लेती और देर तक खड़े खड़े जुगाली करती है ! पनीली आँखों से उसकी तरफ देखती है और फिर आगे बढ़ जाती है !

वह केसरोल में देखती है ! अरे, उसके खाने के लिए तो एक भी रोटी नहीं बची ! वो जाकर फ्रिज खोलती है उसमें से अपने खाने के लिए ब्रेड जैम और चीज निकाल कर लाती है ! बड़े सलीके से ब्रेड पर जैम और चीज लगा कर प्लेट में रखती है ! बैठे बैठे मुस्कुराती है और हाथ जोड़कर प्रार्थना करती है कि यूँ ही मीठा और क्रीमी रिश्ता बना दे न उसका अपने प्रिय के साथ, चीज और जैम जैसा मुलायमियत और मिठास से भरा हुआ !

वो प्लेट में से ब्रेड उठा कर खाती है ! खाते ही उसके मुँह में मीठा क्रीमी स्वाद घुलता जाता है ! वो ब्रेड के किनारे तोड़ कर एक तरफ रखती जाती ! पानी पीकर ब्रेड के टुकड़े उठाकर दरवाजा खोलती और उन टुकड़ों को एक तरफ रख देती ! कोई भूखा प्यासा जीव जंतु आकर खा लेगा, उसकी कुछ तो तृप्ति होगी ! ऐसा सोचते हुए !

दरवाजा बंद करके कमरे में बेड पर आकर लेटती है और अपनी हथेलियों को घूर घूर कर देखती है ! अरे ये रेखा तो उसके हाथ में पहले कभी नहीं थी, ये कैसे बन गयी ! जरुर उसकी सच्चाई हथेली पर उकर आई है ! उसके निश्छल, निःस्वार्थ प्रेम की सच्चाई ! उसने उस रेखा को प्यार से निहारा और उसे चूम लिया ! मन ही मन मुस्कुरा के आँखें बंद कर ली और सोने की असफल कोशिश करने लगी ! तभी उसे कोई आवाज सुनाई दी ! उसने खिड़की से झांककर देखा एक काले रंग का कुत्ता ब्रेड के टुकड़े खा रहा है ! वो दरवाजा खोलकर बाहर निकल आई !

अरे कालू, तुझे भूख लगी है न ?

कालू उसकी तरफ देखकर अपनी पूंछ हिलाने लगा और अपनी गर्दन नीची करके उसने नाक से जमीन को सूंघा फिर जीभ निकाल कर उसकी तरफ देखा !

और ब्रेड खानी है न ! चलो अभी लेकर आती हूँ !

वो फ्रिज में से ब्रेड का पैकेट ले आई और उसको प्रेम से खिलाने लगी ! एक एक करके उसने कालू को चार ब्रेड खाने को दी ! वो और ब्रेड डालती उससे पहले ही कालू मुडा और वापस चला गया ! कितने समझदार होते हैं ये जानवर ! जितनी खानी थी खाई और ज्यादा का लालच नहीं !

उसने बची हुई ब्रेड फ्रिज में रख दी ! शाम हो चली थी ! बावरी इवनिंग वॉक पर जाने के लिए तैयार होने लगी ! उसने पिंक कलर की जींस पर सफ़ेद रंग का शर्ट पहनी और घर के सामने बने उस पार्क में टहलने चली गयी ! बहुत देर तक यूँ ही टहलती रही ! घना अँधेरा छाने लगा ! तारे असमान में चमकने लगे ! उसने अपनी दोनों बाहें फैलाई और आसमान की तरफ देखती हुई मन ही मन बुदबुदाई , कहाँ ज्यादा कुछ मांगती हूँ बस अपना प्यार ही तो मांग रही हूँ ! बस और कुछ भी नहीं चाहिए !    

पगली कहीं की यह भी नहीं जानती कि तेरा प्यार तो तेरे भीतर ही है ! वो ही तो तुझे बावरी बनाये हुए है !

सच में, कस्तूरी कुंडल बसे मृग ढूंढे जग माहि !

हम प्रेम की तलाश में ज़िन्दगी भर भटकते रहते हैं, बर्बाद होते रहते हैं ! दूसरों से अपेक्षा करते रहते हैं ! जबकि हम अपने मन में नहीं झांकते, उसे नहीं टटोलते !

वो वापस घर जाने को मुड़ती है कि एक बार फिर से आसमां की तरफ ताकती है और अपनी दोनों हथेलियों को जोड़ कर कहती है, सुन रहे हो न ? मेरा संदेशा उन तक जरुर पहुँचा देना ! अय चाँद तारे सुनो, मेरे प्यार का संदेशा पहुँचा दोगे न ? अपनी आँखों में कातरता भरकर देखती है !

घर आकर सीधे कमरे में जाकर लेट जाती है ! आज भूख नहीं लग रही है, उसे खाना नहीं खाना है !

यूँ ही गुजर जाती है उसकी सारी रात ! गीले तकिये और बिस्तर पर पड़ी ढेर सारी सलवटों के साथ !

 न सोचा, न समझा,

न जाना, न परखा !

कर दी ज़िन्दगी,

तेरे हवाले मान कर अपना !

वो खिड़की को जरा सा खोल कर देखती है, अभी थोडा सा धुंधलका है, पूरी तरह दिन नहीं निकला बल्कि एकाध तारा है ! वो सर झुकाकर हाथ जोडकर उन्हें नमन करती है ! हल्के से मुस्कुराती है और कुछ नहीं कहती, कुछ भी नहीं ! बस अब उसे इंतज़ार है सूरज के निकलने का, सुबह होने का, पक्षियों के चह्चहाने का क्योंकि उसे अब अपनी बातें आसमान में उड़ते पक्षियों से करनी हैं, सूरज से करनी हैं ! तो जल्दी से निकल आओ न सूरज ! तुम्हें मेरी कसम सूरज, आज जरा जल्दी निकल आओ !

तुझे कसम है मेरी ! अभी आ जाओ फिर मेरी बात सुनकर भले ही कहीं छुप जाना ! सो जाना जाकर ! नहीं जगाऊँगी ! सच्ची फिर मैं कभी नहीं जगाऊँगी ! बस एक बार मेरी बात ध्यान से सुन लो !

जरा जाकर कह देना उससे कि वो लौट आये, कि तेरी बावरी तुझे बहुत याद करती है, बहुत रोती है, दिन रात दुआ करती है ! क्या तुझे हिचकियाँ नहीं आती ? क्या तुझे छींकें नहीं आती ? बस इतनी सी बात ही तो करनी है मुझे आसमान में उड़ते हुए पक्षियों से और वो आँखें बंद करके वहीं पर खड़ी रहती है, यूँ ही इंतज़ार करते हुए !

हाँ हाँ सिर्फ इंतजार करते हुए ही क्योंकि अब उसके जीवन में इंतजार ही तो बचा रह गया है ! वो अब कभी नहीं आएगा, कभी भी नहीं, जो उसके साथ छल करके चला गया है ! लेकिन उसे कौन समझाये !

दिन ढल रहे हैं

गुजर रहे हैं

हर दिन रात उसके

अब यूँ ही

किसी के गम में, 

न जाने कब तक

कितना लम्बा सफ़र है

और उसे कहाँ तक जाना है

बस चलते चले जाना है

यूँ ही, हाँ यूँ ही !


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