प्रेम का समय
प्रेम का समय
मुझे राम चौक जाना है, कितना लोगे भैया, मैनें ओटो वाले से पूछा।
दीदी , साठ रुपए दे दीजिएगा उसने रिक्शा स्टार्ट करते हुए कहा।
अरे नहीं भैया, पचास देंगे मेरी सहेली विनू ने कहा।
दीदी उघर वन वे है, घूमकर जाना पड़ता रिक्शेवाले ने दलील दी।
हाँ मालूम है,पर साठ रुपए नहीं होते, पचास ले लेना मैंने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा।
ठीक है दीदी, जो देना हो दे देना। सुबह से सिर्फ़ सौ रुपए की कमाई की है। अब आप जो दोगे लेकर घर चला जाऊँगा।
कोरोना के चक्कर में मरे न मरे हम भूख से ज़रूर मर जाएंगे। घरवाली भी पेट से उसे भूखा भी नहीं सकता ।
राम जाने आगे के दिन कैसे निकलेगे उसने मायूसी से कहा।
रिक्शा सड़क पर दौड़ रहा था और हम आने वाले दिनों के बारे में सोच रहे थे।
रामचौक आ गया दीदी रिक्शेवाले ने कहा तो हमारी तंद्रा भंग हुई।
ये दिन भी निकल जाएंगे भैया, अभी सावधानी और शांति का समय है, ये लो रुपए, दौ सौ रुपए और दो मास्क जो अभी- अभी हमने खरीदे थे उसे
पकड़ा कर रिक्शे से उतरते हुए कहा।
मैनें उसे प्रश्नवाचक निगाहों से देखा, तो मेरे हाथों को दबाकर उसने कहा "इस महामारी के समय हमारी समाजिक जिम्मेदारी को हम नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते। ये आपस में प्रेम का समय है जिसमें हमें खुद के बचाव के साथ सबका ध्यान भी रखना है।
दीदी धन्यवाद, कहते हुए रिक्शेवाले के मायूस चेहरे पर मुसकुराहट आ गई थी।वास्तव में ये प्रेम का समय है सोचते हुई मैं विनू के साथ आगे बढ़ गई।