पोखर

पोखर

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शनिवार की छुट्टी थी बैठे बैठे सुदीप को जाने क्या सूझी सोशल मीडिया पर पुराने दोस्तों को खोजने का मन बना लिया और हो गया शुरु। खोजते गांव के स्कूल में साथ पढ़े राकेश और मोहन मिल गए। फ्रेंडस को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी और पुराने वक़्त की यादों को जीवित करने का सिलसिला शुरु हो गया। बातों बातों में सबने फिर अपने उसी गांव में मिलने का फैसला किया। तीनों दोस्त आज अपने घर, अपने गांव आ रहे थे। 

सुदीप विदेश में सेटल हो चुका था, राकेश बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत था और मोहन शहर में अपना कारोबार स्थापित कर चुका था। अभी कल की ही तो बात लगती थी जब तीनों एक साथ पूरे गांव में उछल कूद करते धूम मचाते घुमा करते थे और .... और वो पोखर जिसमें तीनों छपाक छपाक करते नहाते और उधम मचाते थे। घंटो उसके पानी में तैरते रहते थे।

सुदीप की तंत्रा टूटी और पता चला गांव आ गया। शाम ढल चुकी थी तीनों को एक दूजे से मिलने की उत्सुकता थी। उसने मोबाइल पे बात की और मोहन के घर की तरफ चल पड़ा वहां राकेश पहले ही इंतजार कर रहा था। एक दूजे के गले लगे और खो गए अपनी यादों में न जाने कितनी देर बातें करते रहे। खाना खाते समय तय हुआ कल सवेरे ही वहीं उसी पोखर में नहाने चलेंगे फिर अपनी स्कूल और फिर उन सभी जगहों पर जहां बरसों पहले घुमा करते थे।

पौ फटते ही तीनों दोस्त मन में उमंग और उल्लास लिए उसी पोखर की तरफ चल देते हैं। वहां पहुंच कर देखते हैं उस लहलहाते पोखर के स्थान पर एक छोटा सा गड्ढा मात्र है जो कूड़े कचरे से भरा पड़ा है। तीनों दोस्त उसकी दुर्दशा देख कर बेहद निराश हो जाते हैं, और गांव के मुखिया चाचा से मिलने जाते हैं।

मुखिया उन्हें बताते हैं .....

"बेटा जैसे तुम तीनों मिडिल क्लास पास करते ही गांव छोड़ कर शहर चले गए और फिर कभी न लौटे। न गांव की सुध ली, उसी तरह से अनेक बच्चे शहर की तरफ पलायन कर गए। वैसे भी अब जंगल और पेड़ तो रहे नहीं इस कारण वर्षा भी बहुत कम होती है। गांव के सारे कुंए भी सुख गए तो खेती भी नहीं हो पाती। अब तो पीने का पानी भी कोसौं दूर से लाना पड़ता है।"

कभी खुशहाल दिखने वाले फसलों से लहलाहने वाले उस गांव को वीरान देख कर तीनों बहुत उदास हो जाते हैं। कुछ देर तो तीनों के मुंह से बोल ही नहीं निकलते। खामोशी को तोड़ते हुए सुदीप बोलता है ....

"दोस्तों हम यहां से निकल कर खूब तरक्की कर गए पैसा भी कमा लिया लेकिन अपनी इस विरासत को क्या दिया ? कुछ भी तो नहीं उल्टे हमने तो इसे भुला दिया लेकिन देर आये दुरुस्त आये हमें अपनी इस विरासत को जीवित रखना होगा, उसके लिए कुछ सोचना होगा बोलो तैयार हो ?"

दोनों एक स्वर में हामी भर देते हैं। उसी दिन गांव के मुखिया, मास्टर जी एवम अन्य लोगों की सभा बुलाकर तीनों दोस्त अपनी मंशा प्रकट करते हैं और कहते हैं कि हम तीनों ही तन मन धन से सक्रिय होकर आप सभी के सहयोग से गांव की काया पलट करना चाहते हैं।

वर्षा ऋतु से पहले पोखर की खुदाई करके उसे गहरा और चौड़ा बना दिया जाता है। सूख पड़े कुओं की खुदाई करके उन्हें और गहरा किया जाता है। वर्षा जल को संग्रहित करने के लिए और भी छोटे छोटे टैंक बनाये जाते हैं। पूरे गांव को जाग्रत कर सघन वृक्षा रोपण की योजना बनाई जाती है।

पहली ही बारिश में पीने योग्य पानी इकट्ठा हो जाता है और अगली बारिश में पोखर, पानी से लहलहा उठता है। वृक्षारोपण से गांव में हरियाली की झलक दिखाई पड़ने लगती है। 

तीनों दोस्त इस बार की वर्षा का बेसब्री से इंतजार करते हैं और पहुंच जाते हैं अपने गांव। आज आसमान में बादल घिर आये हैं बिजली कड़कने लगी है और तीनों दोस्त टकटकी लगाए आसमान की तरफ देख रहे हैं अंधेरा छाने लगा है सूरज को बादलों ने ढक लिया है । और ये .... ये बूंदे गिरने लगती है देखते ही देखते बारिश शुरू हो जाती है तीनों एक बार फिर उसी अंदाज में पोखर में कूद पड़ते हैं उसी तरह की अठखेलियां करते हुए मद मस्त हो जाते हैं मानों उनका बचपन पुनः लौट आया हो .....!


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