फर्ज
फर्ज


'अरे, बिल्कुल नहीं तू डाक्टरी की पढ़ाई नहीं कर सकती' जैसे ही रोशनी पी. एम टी. का फार्म लेकर आई घर में कोहराम मच गया। रोशनी के पापा तो बेहद खुश थे कि बेटी डाक्टर बनना चाहती है। फिर उसकी माँ और खासकर दादी को ये मंज़ूर नहीं था।
दादी तो पुराने जमाने की थी। डाक्टर बनना पुण्य का काम है यह वह नहीं जानती थी। वो तो बस ये सोचती थी कि डाक्टर बनने पर सारा समय गंदे मरीजों को हाथ लगाना पड़ता है।
बड़ी मुश्किल से रोशनी ने अपनी प्यारी दादी को मना ही लिया, और वो पढ़ाई करने चन्डींगड़ चली गयी।
पांच साल बीतते देर नहीं लगी और रोशनी ने टाप किया। उसे गोल्ड मेडल भी मिला। सबने बहुत सराहना की। वो घर वापिस आ गयी। सब बड़े खुश थे, दादी तो बलाईंया लेती थकती न थी।
कुछ दिन बीतने पर रोशनी की नौकरी भी चंडीगढ़ ही लग गयी। वह बड़ी मुस्तैदी से मरीजों की सेवा करती थी। आधी बीमारी तो वो अपने व्यवहार, मुस्कान से ही दूर कर दिया करती थी।
अच्छा चल रहा था कि अचानक देश में 'कोरोना नाम की महामारी ने जन्म ले लिया। ये बीमारी विशालकाय दानव की तरह मुंह फाड़ रही थी। सब जगह मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही थी। रोशनी के अस्पताल में भी बहुत मरीज आ गए थे। सब डाक्टर परेशान थे। सब कहते हैं न कि ऊपर भगवान नीचे डाक्टर। सब बहुत अच्छी तरह मरीजों को देख रहे थे।
डाक्टर रोशनी की ड्यूटी भी लगी हुई थी। वो कोरोना की यूनिफॉर्म पहनकर 15 से 18 घंटे ड्यूटी दे रही थी।
घर वाले ऊपर सुबह तो कुछ नहीं कह रहे थे पर अंदर से डरे हुए थे कि कहीं रोशनी को कुछ न हो जाये।
एक दिन शालू नाम की 18 साल की लड़की कोरोना से पीड़ित अस्पताल में आई। माँ बाप की इकलौती संतान थी। अधिक प्यार के कारण एकदम जिद्दी स्वभाव की थी। दवा लेने में बहुत तंग करती थी। डाक्टर व नर्स उससे परेशान थे। डाक्टर रोशनी ने वो केस अपने हाथ में ले लिया। शालू की हालत ठीक नहीं थी। उसका केस बिगड़ रहा था। बचने की उम्मीद बहुत कम थी। रोशनी ने दिन रात एक करके प्यार से, मनुहार से उसका इलाज किया। सब डाक्टर डर रहे थे कि यह लड़की नहीं बचेगी। पर रोशनी ने हार नहीं मानी। धीरे धीरे इलाज से शालू ठीक होने लगी। 14 दिन बाद टैस्ट करने पर शालू की रिपोर्ट नैगेटिव आई। उसको अस्पताल से छुट्टी मिल गई। उसके घरवाले तो रोशनी पर न्योछावर हो रहे थे। उसे ढेरो दुआयें दे रहे थे।
पर ईश्वर की करनी देखो सेवा करते करते आखिर उस विनाशकारी दानव ने रोशनी को भी आडे हाथों लिया। उसको बुखार हो गया था। सबने सोचा कि थकान से होगा। पर टेस्ट करने पता चला कि वो कोरोना पोसिटिव है। उसका इलाज शुरू हो गया। घरवालों को तो 'काटो तो खून नहीं'सभी के होश गुम थे।
दादी तो जैसे चुप सी हो गई थी। हर समय मंदिर के सामने बैठी ईश्वर से रोशनी के ठीक होने की कामना किया करती थीं।
उधर अस्पताल में सब डाक्टर व मरीज उसके ठीक होने की कामना किया करते थे। मरीजों की आंखों में आँसू भरे रहते थे। दो बूढ़े मरीज तो ये भी कहते कि ईश्वर हमें उठा ले पर इस बच्ची को ठीक कर दे। अभी इसकी उम्र ही क्या है। देश को भी इसकी जरूरत है।
बार बार चैकिंग होती पर रोशनी पौसिटिव ही आती। उसके इलाज से काफी मरीज ठीक होकर घर जा चुके थे। उस पर काफी कोरोना का असर था जो ठीक होने का नाम नहीं ले रहा था। आखिर सबकी प्रार्थना रंग लाई। पता चलु कि अब रोशनी पर दवाई का असर होना शुरू हुआ है। अब उसके बचने की उम्मीद लग गयी थी।
रोशनी की दादी ने तो अन्न जल न लेने का वर्त ले लिया था। और मंदिर के आगे ही आसन लगाकर बैठी रहीं।
ईश्वर ने सब डाक्टर सब मरीजों व घरवालों की सुन ली। और टेस्ट होने पर रोशनी नैगेटिव पाई गई। लेकिन अभी भी उसे पूरा ध्यान रखना पड़ेगा।
उसे अस्पताल से घर जाने को बोला गया।
सब डाक्टर और मरीजों ने खूब तालियां बजाईं। उस पर फूलों की वर्षा की।
रोशनी इतना प्यार देखकर शर्म से गढ़े जा रही थी। पर याद कर रही थी, उस समय को जब उसने डाक्टर बनने का विचार किया था। फर्ज निभाने की शपथ ली थी।
घर आकर दादी ने सबसे ज्यादा उसकी पीठ थपथपाई कि बेटी तूने मरीजों को बचाकर कितना बड़ा काम किया है। आज मुझे व सब घरवालों को तुम पर गर्व है।
मैं तो कहती हूँ कि हर घर से चाहे वह लड़की हो या लड़का एक को तो डाक्टर बनना चाहिए। अपना फर्ज़ निभाना चाहिए।
रोशनी खुशी से फूले नहीं समा रही थी।