फोन !
फोन !
गोपाल अपने मित्रों के संग मेट्रो में जा रहा था। अचानक उसको याद आया वो अपना बैग भूल आया हैं। जिसकी वजह से परेशान होकर वो इधर उधर नजर दौड़ने लगा। उसको उसका बैग नजर नहीं आया।अपने मित्र से पूछने के बजाए, अपने जेब में हाथ डालते हुए फ़ोन निकाला और नंबर डायल कर कान में लगाया। और मन ही मन में बड़बड़ाने लगा, 'ना जाने कहाँ छोड़ आया अपना बैग ?' तभी उनके मित्र बोल पड़े,
"अरे गोपाल क्या हुआ ? किसको फोन लगा रहा हैं ?"
"कुछ नही एक मिनट रुक" गोपाल ने तुरंत प्रतिक्रिया देते हुए कहा।
फिर फोन पर बोलने लगा, 'भाई साहब एक रेड कलर का बैग आपकी दुकान पर छूट गया हैं क्या..?"
उधर से जबाब मिला, "नहीं मेरे शॉप में तो दिख नहीं रहा हैं जहाँ तक मुझे याद हैं आप ले गए थे यहां से !"
परेशान होते हुए फोन कट कर दिया और लगा अपने फोन में और नंबर ढूंढने। तभी उसका मित्र ने फिर से टोका
"क्या हुआ बे क्यों परेशान है ?"
गोपाल बताने के बजाए अपने फोन में लगा रहा और ऊँचे स्वर में बोला "चुप बैठ ५ मिनट"
मित्रमंडल सहमते हुए बोला "जा मर साले मुझे क्या !"
फिर गोपाल ने ना जाने कितनों को फोन लगाकर पूछा लेकिन निराशा ही हाथ आइ। परेशान होते हुए अपने मित्रों के पास बैठते हुए बोला, 'साली मेरी भी मती मारी गई आज बैग का कोई खास काम था नहीं फिर भी हीरोगिरी झाड़ते हुए अपने पीठ पर गदहा के तरह टांग लाया था।
तभी उनके मित्रमंडल में से एक बोल पड़ा, "क्या हुआ तुझें बताएगा ?"
तबतक नरम पड़ चुका गोपाल भी थके हुए स्वर में बोला, "यार मैं अपना बैग भूल आया कहीं पर।"
तभी कोई उन्हीं में से बोल पड़ा, "अबे ये रहीं। पूछ तो लिया होता" अपने बैग के नीचे से उसका रेड कलर का बैग उठाकर दिखाते हुए कहा !
गोपाल चौक गया और बोल पड़ा, "साला ये फोन नहीं था तो ठीक था। कम से कम अपने आस पास भी नजर रखते थे। अब तो लोग घर बैठे पूरे दुनिया पर नजर गड़ाता हैं, लेकिन अपने आसपास की चीजो के प्रति लापरवाह हो जाते हैं।
सभी खिलखिलाते हुए हँसने लगा।