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आँचल त्रिपाठी

Tragedy Classics Inspirational

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आँचल त्रिपाठी

Tragedy Classics Inspirational

पहला किस्सा...

पहला किस्सा...

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मैं शुरू से ही इंट्रोवर्ट हूँ मतलब जितना मेरे मन में होता है उसका तिहाई हिस्सा भी बड़ी मुश्किल से बता पाती थी और वो भी सिर्फ उसी इंसान से जिस पर मुझे भरोसा होता कि ये मेरी बातों को समझेगा !

एक बार हुआ यूँ कि मेरी माँ ननिहाल गई हुई थी, उस वक़्त मेरी परिक्षाएँ चल रही थी तो मैं नहीं जा पायी। एक दिन मैं परीक्षा देने जा रही थी उस दिन मेरी गणित की परीक्षा थी, बहुत देर हो रही थी इसलिए मैं रोजाना जिस रास्ते से जाती थी उस रास्ते से ना जाकर मैंने दूसरे रास्ते से जाने का सोचा, जोकि थोड़ा सूनसान पड़ता था उधर से लोग जरा कम ही आते जाते थे। मुझे डर भी लग रहा था क्योंकि मैं अकेली थी और मेरी कोशिश यही रही कि मैं कितना जल्दी वहाँ से निकलकर सड़क पर पहुँच जाऊँ , मैं काफी डरी हुई थी इसलिए भगवान का नाम लेते हुए चली जा रही थी तभी अचानक मुझे कुछ आवाज सुनाई दी, मुझे डर तो लग ही रहा था साथ में देर से पहुँची तो पेपर न बँट जाए, यह ख्याल भी मन में चल रहा था लेकिन मेरे अंदर जिज्ञासा भी बहुत थी मैंने सोचा चलो देख ही लेते हैं कहाँ से आवाज आ रही है।

मैं वहाँ गयी जहाँ से आवाज आ रही थी, मैंने देखा एक छोटा-सा खरगोश का बच्चा झाड़ियों में फँसकर आवाज कर रहा था, उसके शरीर पर कई काँटे लगे थे और खून रिस रहा था, मुझे एक बार लगा कि मैं मार्केट में पहुँचूँगी तो किसी से कह दूँगी तो वह इस खरगोश के बच्चे को झाड़ियों से निकाल लेगा लेकिन मेरी भावुकता उस वक़्त मेरी समझदारी पर भारी पड़ी मैंने सोचा जो होगा देखा जायेगा पहले इसे बचा लूँ, हो सकता है शायद यही वजह रही हो आज इतने दिनों बाद इस रास्ते से गुजरने की, फिर मैंने उसे झाड़ियों से निकाला और बड़ी मुश्किल से उसके शरीर से काँटे निकाले फिर मैं सोचने लगी दवा तो हैं नहीं फिर क्या करूँ वो दर्द से तड़प रहा था, और तभी माँ की बात याद आई कि अगर कभी चोट लग जाए और कोई दवा ना मिले तो मिट्टी डाल दो खून रूक जायेगा, मैंने वैसा ही किया और देखा कि वो शांत होने लगा फिर मैंने अपने बोतल में से उसे पानी पिलाया और उसे अपने साथ ले ली और मार्केट पहुंचकर मेरे भैया के दोस्त जिनका घर मेरे स्कूल के पास ही था उनके यहाँ उसे रखवा दी और स्कूल पहुंची, फिर शुरू हुआ सवालों का दौर क्युकिं मैं 45 मिनट लेट थी लेकिन मैं एकदम शांत थी कुछ नहीं बोल रही थी, फिर सर ने पापा को फोन किया पापा बोले उसकी मम्मी को फोन करिये और उसको फोन थमा दीजिये सर ने मम्मी को फोन किया तब मम्मी ने मुझसे पूछा क्या बात थी क्यों देर हुई, और मैं एक ही साँस में सारी बात बोल दी, फिर सर ने भी बोला बहुत अच्छी बात बेटा, कोई बात नहीं अभी तो 9th का एक्जाम हैं लेकिन बोर्ड में समय का बहुत महत्व होता इसलिए ध्यान रखना आगे से अभी जाओ और एक्जाम दो तुम्हें एक्स्ट्रा टाइम दिया जायेगा। ये बात सुनकर मेरी जान में जान आई और मैं पेपर देने चली गई। उसके बाद उस खरगोश के बच्चे को मैं अपने घर ले आई। यह वाकया जब भी याद आता हैं, तो मुझे लगता हैं कि वाकई हर वक़्त समझदारी अच्छी नहीं होती, कभी-कभी कुछ भावुक निर्णय जिंदगी के लिए सुकून भरी यादें बन जाते हैं !


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