पहिया

पहिया

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पिता रूपी गाड़ी का एक पहिया आज से दस साल पहले ही पंचर हो चुका था ।जिसकी वजह से गाड़ी एक जगह बस रुकी ही रह गई थी ।.बेशक वो घर में एक कमरे में थम गए थे,लेकिन बावजूद उसके उनका प्यार से हमारे सिर पर आशीर्वाद स्वरूप हाथ फेरना दुनिया के तमाम तीर्थ स्थलों की दुआओं से बढ़कर था।

हम आम बच्चों की तरह उनसे मेला घुमाने की,स्कूल जाने की, इम्तिहान दिलवाने की,दूसरे शहर पहुंचाने की,जिद अब नहीं कर सकते थे,लेकिन हमारे कहीं भी जाने से पहले उनका हमेंं बुलाकर ये बोलना कि "बिटिया पर्स से रुपया निकाल लो और कुछ किराए के लिए रख लो और कुछ खा पी लेना"ही हमें जहां भर का सुकून दे देता था ।इन दस सालो में मां ने उनका ख्याल अपने चौथे बच्चे की तरह रखा,और हम लोग उनसे ऐसे व्यवहार करने लग गए थे जैसे हम उनके बच्चे नहीं वो हमारे बच्चे हैं ।

सुबह उठते ही उनका ब्रश, चाय से लेकर नहलाना धुलाना नियमित नाखून काटना साफ सफाई करना हर रोज की दिनचर्या बन चुकी थी ।उनकी आवाज से सुबह शुरू होती थी,और रात में जब तक वो सो नहीं जाते थे कोई सो नहीं सकता था..ये दस साल की हम सब की ज़िन्दगी सिर्फ उन्हीं के इर्द गिर्द घूम रही थी,..पूरा घर उनकी आवाज से गूंजा करता था । दस सालो में वो घर से बहुत कम ही निकले थे,हमेंशा वो अपने पसंदीदा कमरे में लेटे या बैठे रहते थे,शायद इस घर को भी उनकी एक आदत हो चुकी थी।

तभी तो ,आज हम सब की मौजूदगी के बाद भी ये घर पूरी तरह से शांत है,चारो तरफ एक अजीब सा सन्नाटा छाया हुआ हैसिर्फ एक उनकी कमी आज हम चार लोग भी पूरी नहीं कर सकते।उनकी उपस्थिति मात्र ही हमारे जीवन भर का सहारा थी । दस साल पहले हमसे जो कुछ छिना था उसकी भरपाई तो अभी हो नहीं पाई थी, कि किस्मत ने हमसे उनकी मौजूदगी भी छीन ली !!!अब सब कुछ खत्म हो चुका है ।और दस साल पहले जिस गाड़ी का एक पहिया ही पंचर हुआ था,आज उस गाड़ी के दूसरे पहिए के साथ साथ पूरी गाड़ी ही हमेंशा के लिए बंद हो चुकी है।



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