हरि शंकर गोयल

Fantasy Inspirational

3  

हरि शंकर गोयल

Fantasy Inspirational

पगलैट : भाग -1

पगलैट : भाग -1

16 mins
324


रामजी की किराने की दुकान पर बहुत भीड़ लग रही थी। और लगे भी क्यों नहीं ? आखिर बिना लाभ लिये माल बेचते थे रामजी। सारी जिंदगी खूब कमाया। अब और कमाने की क्या जरूरत है ? दोनों बेटे बढ़िया जॉब कर रहे हैं। पचास पचास लाख रुपए का पैकेज है दोनों का। बेटी अपनी ससुराल में मस्त है। उसको भी पैसे धेले की कोई कमी नहीं है। रामजी ने अपनी पूंजी कुछ तो दुकान खरीदने में लगा दी जिनसे अब पच्चीस तीस हजार रुपए महीने का किराया आ रहा है। बाकी पैसे बैंक और म्यूचुअल फंड में जमा करा दिये जिनसे हर महीने लगभग पचास हजार रुपए का ब्याज आ जाता है। दोनों मियां बीवी को कितना चाहिए ? इसलिए रामजी ने तय कर लिया कि अब वे अपनी दुकान में से लाभ नहीं कमाएंगे। बस, जनता की सेवा करेंगे। 

रामजी के दोनों बेटों लव तथा कुश ने बहुत कहा कि दुकान बंद कर के दोनों मम्मी पापा उनके साथ रहें लेकिन रामजी ने उन दोनों बेटों को स्पष्ट कहा दिया कि दिल्ली में उनका मन नहीं लगता है। दुकान पर दिन भर लोग मिलते रहते हैं इस तरह समय आराम से गुजर जाता है। बस, दिन भर व्यस्त रहने के लिए ही वे दुकान चला रहे हैं। "नो प्रोफिट नो लॉस" के फंडे से दुकान चल रही है उनकी। इसलिए सभी सामान की रेट अन्य दुकानदार से कम से कम दस प्रतिशत कम होती है। लोगों को अच्छी क्वालिटी का सामना कम कीमत पर उपलब्ध हो रहा है इसलिए भीड़ लगी रहती है उनकी दुकान पर। सुबह नौ बजे दुकान खोलते हैं और एक बजे लंच में चले जाते हैं। फिर तीन बजे आते हैं और सात बजे दुकान बंद कर घर चले जाते हैं। इस तरह आराम से काम हो रहा था। दस नौकर दुकान में और लगभग पंद्रह गोदाम में काम करते हैं। 


बड़ा बढ़िया सिस्टम कर रखा था उन्होंने। बाहर एक स्टैंड बना दिया था जहां पर खाली कागज, पैन वगैरह रखे रहते थे। ग्राहक अपनी आवश्यकता वाले सामान की पर्ची बनाकर रामजी को दे देते। रामजी उसे अपने किसी सेवक के साथ में पकड़ा देते। वह सेवक उस ग्राहक से उस पर्ची पर लिखी चीजों की वैरायटी और मात्रा कन्फर्म कर लेता था। फिर वह सारा सामान निकाल कर बिल बनाने के लिए काउंटर पर दे दिया जाता था। बिल बनकर रामजी के पास आ जाता था। रामजी पैसा ले लेते या ऑनलाइन पेमेंट लेकर सामान ग्राहक को दे दिया जाता था। इस तरह उनका काम धाम बहुत शानदार तरीके से चल रहा था। नौकरों पर निगरानी के लिए सीसीटीवी लगवा रखे थे। नौकरों को तनख्वाह भी औरों से ज्यादा देते थे। इस कारण और सेठजी के व्यवहार के कारण सब नौकर चाकर खुश थे। 


एक बजने में दस मिनट शेष रह गये थे। रामजी ने सबको कह दिया कि सभी लोग पर्ची दे जायें। लंच टाइम में आप सबका सामान और बिल तैयार मिलेगा तब आकर ले जाना। सभी लोगों ने पर्ची रामजी को दे दी। रामजी ने सभी पर्चियां अपने सबसे विश्वस्त और सबसे पुराने नौकर सेवक राम को दे दी। सेवक राम अब नौकरों का हैड बन चुका था। सेवक राम ने वे पर्चियां अलग-अलग नौकरों को पकड़ा दीं और कहा कि ये सामान निकाल कर बिल बनाकर तैयार रख लो। तीन बजे जब दुकान खुलेगी तब इनको दे देंगे। 


रामजी के पास घर से दो बार फोन आ चुका था कि खाना तैयार हो गया है जल्दी आ जाओ। रामजी चलने को तैयार हुए ही थे कि अचानक एक चमचमाती "ऑडी कार" उनकी दुकान के सामने आकर रुकी। उस कार में से एक खूबसूरत सा, स्मार्ट दिखने वाला छरहरे बदन का मालिक एक बीस पच्चीस साल का नवयुवक बाहर निकला। उसने सेठजी पर एक निगाह डाली और हल्के से मुस्कुरा दिया। ना जाने कैसी सम्मोहिनी शक्ति थी उस मुस्कान में कि सेठ रामजी उस मुस्कान में खो गए। 


"सेठजी, मुझे पहचाना नहीं क्या ? "

रामजी ने अपना चश्मा आगे पीछे , ऊपर नीचे करके देख लिया। पलकें भी दो तीन बार झपका ली , मगर रामजी उसे नहीं पहचान पाये। रामजी को इस तरह आश्चर्य जनक मुद्रा में देखकर युवक के होंठों पर मुस्कान और गहरी हो गई। वह समझ गया कि सेठजी ने उसे पहचाना नहीं है। इसलिए वह आगे बढ़ा और सेठजी के पैरों की ओर झुकते हुए कहा 

"पांय लागी , पप्पा" 

ये शब्द सुनते ही सेठजी भौंचक्के रह गये। आंखें फटी की फटी रह गई। मुंह खुला का खुला रह गया। उनके मुंह से आश्चर्य मिश्रित आवाज निकली 

"अरररे , पगऽऽऽलैऽऽऽट" ! 

वह नवयुवक सेठजी के पैरों पर गिर पड़ा। 

"आपने मुझे पहचान लिया , पप्पा। इतने सालों के बाद भी। मुझको माफ़ कर देना पप्पा। मैं बिना बताये ही चला गया था"। और उस युवक ने सेठजी के दोनों पैर पकड़ लिए और वह वहीं जमीन पर बैठ गया। 


सेठजी तो जैसे वहां थे ही नहीं। आंखों से झर झर आंसू गिरने लगे जो उस नवयुवक के बालों में गिरकर कहीं खो जाते थे ‌। बड़ी मुश्किल से सेठजी को होश आया। होंठ ही क्या , उनका पूरा बदन कांप रहा था। कांपते हाथों को रामजी ने युवक के सिर पर रखा। युवक को ऐसा महसूस हुआ कि जैसे भगवान ने उसके सिर पर हाथ रख दिया हो। 


बड़ी मुश्किल से रामजी ने युवक को उठाया और उसका चेहरा अपनी दोनों हथेलियों में लेकर गौर से देखने लगे। कितने साल बाद देख रहे थे वे इस पगलैट को। पंद्रह साल बाद। पूरा हुलिया ही बदल गया था इस पगलैट का। कहां वह मरियल सा लड़का और कहां यह स्मार्ट ब्वाय ? कोई मेल ही नहीं खा रहा है। सेठजी ने उसे अपने कलेजे से लगा लिया। उनके मुंह से अपने आप शब्द निकल रहे थे 


"कहां चला गया था मेरे बच्चे ? हमसे ऐसी क्या गलती हो गई थी जो इतनी बड़ी सजा दे दी हमको। कहां कहां नहीं ढूंढा तुझे , मगर तेरा कोई निशान नहीं मिला। पंद्रह साल बाद आज याद आई है तुझे हमारी ?" उलाहना देते हुए रामजी ने उसके गालों पर हल्की सी चपत लगा दी थी। 


दुकान पर मौजूद नौकर चाकर , ग्राहक सभी लोग इस "मिलाप" को बड़े आश्चर्य से देख रहे थे। दोनों के आंसू नीचे जमीन में गिरकर एक हो रहे थे। अब सेवक राम भी पहचान गया था। बोला 

"अरे भैय्या जी , आप" ! 

"हां , सेवक काका मैं सुंदर उर्फ पगलैट। कैसे हैं आप सब "? 

"आप देख ही रहे हैं। सब एकदम से बढ़िया हैं। कभी हमारी याद नहीं आई " ? सेवक राम ने भी उलाहना देते हुए कहा। 

"आई क्यों नहीं काका ? बहुत याद आई। हर वक्त, हर पल " 


इतने में सेठजी को ध्यान आया कि अभी तक सुंदर खड़ा खड़ा ही बातें कर रहा है। वे झट से बोले 

"अरे , बैठो ना बेटा। ये दुनियादारी तो चलती ही रहेगी। बैठो बैठो। "

रामजी सेठ ने सुंदर को बैठने के लिए कहा तो सुंदर बोला 


"अब तो लंच टाइम हो गया है पप्पा , चलो घर चलते हैं। मम्मा से मिलने की बहुत जल्दी लग रही है। कितने सालों से उनके पैर नहीं दबाए हैं ना। आज मेरे बाजू फड़क रहे हैं उनके पैर दबाने को। घर चलकर ही बातें करेंगे, तीनों।" इतना कहकर सुंदर रामजी का हाथ पकड़कर दुकान से बाहर ले आया। सेवक राम ने दुकान बंद कर दी और चाबी सेठजी को दे दी। 


रामजी सेठ को सुंदर ने अपनी गाड़ी में बैठा लिया और गाड़ी घर की ओर चल पड़ी। उधर रामजी के दिमाग में भी पच्चीस साल पुरानी घटनाएं चलचित्र की तरह चलने लगी। 


पच्चीस साल पहले उसकी ससुराल में उनके चाचा ससुर के बेटे की शादी थी। उस शादी में शिरकत करने के लिए रामजी और उनकी पत्नी सीता ने कितने चाव से सारी शॉपिंग की थी। महिलाएं अपने पीहर में यह दर्शाना चाहती हैं कि वे अपनी ससुराल में बहुत सुख सुविधा के साथ रह रहीं हैं। इसके लिए वे कपड़ों और आभूषणों पर खूब खर्च करती हैं। पति भी इस खर्च से आंखें मूंद लेते हैं। यह सोचकर कि इस खर्च के कारण ही ससुराल में उसकी इज्जत में चार चांद लगेंगे। अगर बीवी खुश तो पूरी ससुराल खुश। फिर अपने साढू भाई को भी तो "जलाना" है ना। इसलिए जमकर खरीददारी की। खूब अच्छे से तैयार होकर अपने तीनों बच्चों लव उम्र पांच साल, कुश उम्र तीन साल और गुड्डी उम्र एक साल के साथ ससुराल शादी में जाने के लिए पत्नी सीता के साथ बस स्टैंड पर आ गए।


सीता के चेहरे पर गजब का उत्साह, उमंग और उल्लास था। कोई भी स्त्री चाहे वह कितनी ही उम्र की क्यों ना हो , जब अपने मायके जाती है तो उसके चेहरे पर एक विशेष प्रकार का नूर आ ही जाता है। उसके चेहरे से बालपन वाली मासूमियत और चंचलता छलकती है। बचपन की मधुर स्मृतियों में खोने का मौका जो मिलने वाला है उसको। कुछ पुरानी सहेलियां या परिचितों के मिलने की आस बंधती है। पुराने स्थानों से जुड़ी हुई स्मृतियां ताजा होने लगती हैं और अगर कहीं कोई पुराने प्रेम के गवाह कुछ पेड़ पौधे दिख जायें तो कहने ही क्या ? मायके जाने का आकर्षण हमेशा बरकरार रहता है औरतों में। शायद वहां से नई ऊर्जा लेकर आती हैं स्त्रियां। और बच्चे ? उनकी तो पूछो ही मत ! नानी नाना की आंखों के तारे , मामा मामी के दुलारे और मौसी के ? सबसे अधिक आनंद बच्चों के ही हैं। दसों उंगलियां घी में और सिर कड़ाही में रहता है उनका। एक तो नाना नानी का लाड़ प्यार और उस पर मम्मी की फटकार भी नहीं। ये तो सोने पे सुहागे वाली बात हो गई। आदमी का क्या है ? जब तक साली है तब तक ससुराल जाने का आकर्षण बरकरार रहता है। जैसे ही साली की शादी हो जाती है , ससुराल भी छूट जाती है। हां, अगर कोई खुशमिजाज सी सलहज आ गई तो थोड़ा सा चार्म फिर से बन जाता है वरना तो ससुराल रेगिस्तान का घर बन जाती है। 


रामजी , सीता और बच्चे बड़े खुश दिख रहे थे। चेहरे पर शादी में शरीक होने की कांति भी थी। रामजी अपनी पत्नी सीता को छेड़ भी रहे थे। दोनों का प्यार एक मिसाल की तरह था। कुछ लोग कहते हैं कि बच्चे होने के बाद पति-पत्नी का प्रेम कम हो जाता है। रामजी कहते हैं कि बच्चे होने के बाद प्रेम सागर की तरह और भी गहरा हो जाता है। आप लोगों का क्या मानना है इस बारे में ? 


बस आने में अभी थोड़ा समय था। लव कुश ने अपनी फरमाइशों की झड़ी लगा दी थी। कभी चिप्स तो कभी "टेढ़ा है पर येड़ा है" तो कभी कोल्ड ड्रिंक्स। बच्चे और बीवियां बहुत चालाक होतीं हैं। वे देख लेते हैं कि ऐसे सार्वजनिक स्थलों पर पापा डांट भी नहीं सकते हैं इसलिए ऐसे स्थानों पर उनकी फरमाइशें बहुत बढ़ जाती हैं। बीवियां पति का मनोविज्ञान जानती हैं कि मैके जाने के लिए पतिदेव जो चाहें , दिलवा देंगे। आखिर ससुराल में उनकी इज्जत का भी तो सवाल है ? इसलिए मैके जाने के लिए सब कुछ मंजूर। इस प्रकार सब लोग खूब सज धज कर वहां पर बैठकर कुछ खा पी रहे थे। 


इतने में एक पागल औरत वहां पर आ गई। एकदम प्राकृतिक अवस्था में। वस्त्र के नाम पर सूत का एक धागा भी नहीं। बाल छोटे छोटे लेकिन उलझे हुए। बदन पर मैल की एक मोटी परत चढ़ी हुई थी। पता नहीं कब नहाई होगी ? नाखून बड़े बड़े। दांत भी पीले पीले से थे। शायद कुछ दिनों से मंजन भी नहीं किया था उसने। 


पागल औरत के साथ साथ लोगों की एक टोली चल रही थी। उस टोली में बच्चे , जवान और बूढ़े आदमी भी थे। बच्चे उस पागल औरत पर पत्थर मार रहे थे। वह औरत बंदर की तरह बच्चों की ओर गुर्राती और उनको मारने दौड़ती थी। बच्चे उससे दूर भाग जाते थे। जब वह "पगली" अपनी चाल चलकर आगे बढ़ जाती तब बच्चे फिर से वैसा ही काम करते थे। यानी कि फिर से पत्थर मारने का काम। 


जवान आदमी उस शरीर को देखकर बेशर्मी से खी खी करके हंस रहे थे। उस पगली की खिल्ली उड़ा रहे थे। उसे तंग कर रहे थे , चिढ़ा रहे थे। कुछ बूढ़े लोग बच्चों को डांट रहे थे और पगली के "प्राकृतिक अवस्था वाले शरीर" को देखकर नीची गर्दन करके मुस्कुरा रहे थे। मन ही मन आनंदित हो रहे थे। 


वहां पर बहुत सी औरतें भी बैठी हुई थीं। वो भी उस पगली को देखकर दांत फाड़कर हंस रही थीं। रामजी को बड़ा गुस्सा आया उन औरतों पर। एक औरत जिसका दिमाग ठीक नहीं है , उसके नग्न शरीर को देखकर हंसने वाली औरतों पर गुस्सा नहीं आयेगा तो क्या प्यार आएगा ? 


सीता भी कौतूहल से उस पगली को देखने लगी। उसकी गोदी में गुड्डी तो पहले से थी ही लेकिन इस मंजर को देखकर उसने अपने दोनों लड़के लव और कुश को भी अपने पास बैठा लिया। उसने शर्म से नजरें नीची कर लीं और बच्चों की आंखों पर हाथ रखकर उसे देखने से रोकने लगी। 


रामजी थोड़ी देर तक तो यह नजारा देख रहे थे। मगर उन्हें लगा कि अब कुछ ज्यादा ही हो रहा है इसलिए वे सीट छोड़कर खड़े हो गए और लगभग दौड़ते हुए उस पगली के पास जा पहुंचे। छोटे छोटे पत्थरों की वर्षा अभी भी हो रही थी उस पगली पर। एक मसखरा कांटों का ताज ले आया तो एक मनचला फटे जूतों की माला। सब लोग उसके चारों तरफ घूम घूम कर नाचने लगे। 


रामजी इस दृश्य को देखकर तिलमिला उठे। कड़क कर बोले 


"अगर थोड़ी बहुत शर्म बची हो तो जाकर कहीं चुल्लू भर पानी में डूब मरो। अरे बेशर्मों , वह तो पागल है। उसे अपने तन और मन का कोई खयाल नहीं है। मगर तुम लोग तो उससे भी बड़े वाले पागल निकले। अगर यह तुम्हारी बहन होती तब भी क्या तुम ऐसा ही सलूक करते ? इन बच्चों के साथ साथ तुम लोग भी बच्चे बन रहे हो। बेशर्मों, बेगैरत इंसानों और निर्लज्जों ! कुछ तो लिहाज करो। तुम लोग भी दुशासन और दुर्योधन की तरह व्यवहार कर रहे हो। ये तो नहीं कि बच्चों को डांट कर भगा दें ? बच्चों के साथ बच्चे बन रहे हो। नालायक कहीं के। 


रामजी की दहाड़ सुनकर एकदम सन्नाटा छा गया। बच्चे डरकर भाग खड़े हुए और जवान तथा बुजुर्ग आदमी मुंह नीचे कर एक एक कर जाने लगे। रामजी ने वहां बैठी हुई औरतों की ओर देखकर कहा 


"आप लोगों को भी शर्म आनी चाहिए। एक औरत की अस्मिता का अपमान हो रहा है और आप लोग बैठी बैठी देख रहीं हों। आप लोगों से इतना भी नहीं बन पाया कि इस पगली को कोई दुपट्टा या साड़ी ही ओढ़ा दे ! कम से कम कुछ तो लाज शर्म बनी रहे। या फिर वह भी बेच खाई " ? 


वहां पर बैठी समस्त स्त्रियों के सिर शर्म से झुक गये। पूरे बस स्टैंड पर एकदम सन्नाटा छा गया। तेज तेज कदमों से चलते हुए रामजी अपनी पत्नी सीता देवी के पास आए और एक साड़ी देने को कहा। 


यद्यपि सीता अपनी कीमती साड़ी इस पगली को देने के लिए तैयार नहीं थी लेकिन रामजी का कठोर और गुस्से से भरा चेहरा देखकर वह चुप ही रही और अपना सूटकेस खोलकर उसमें से एक साड़ी निकाल कर रामजी को पकड़ा दी। रामजी वह साड़ी लेकर पगली के पास पहुंचे। पगली को साड़ी पकड़ा दी। पगली ने वह साड़ी फेंक दी और वह जोर जोर से बंदर की तरह किटकिटाने लगी।  


इस गंभीर स्थिति को समझ कर रामजी ने सीता की ओर देखा। सीता रामजी की भंगिमा तुरंत समझ गई और वह उठकर रामजी के पास आ गई। पहले तो गोदी में बैठी गुड्डी को रामजी को दिया फिर साड़ी उठाकर पगली को बांधने लगी। 


इतने में उनकी बस आ गई। सब लोग बस में बैठ गये। फिर बस चल दी। 


तीन दिन बाद रामजी का परिवार शादी में सम्मिलित होकर वापस अपने गांव आ गया। रामजी अपनी किराने की दुकान पर आ गए। वे ग्राहकों को सामान देने और पैसे लेने में व्यस्त थे कि अचानक कोलाहल से वे चौंके। नेपथ्य में कुछ बच्चों की आवाज आ रही थी और कुछ लोगों के हंसने की आवाज़ आ रही थी। रामजी अपनी दुकान पर थोड़ा आगे आये और बाहर सड़क के दोनों ओर देखा। उस मंजर को देखकर उनका दिल दहल गया। 


वही पगली औरत नंग धड़ंग इधर ही आ रही थी। कुछ बच्चे उस पर पत्थर मार रहे थे। कुछ जगह उसके घाव भी हो गये मगर बच्चे बेशर्मी से उस पर छोटे छोटे पत्थर बरसा रहे थे। कुछ जवान और बूढ़े आदमी भी उसके पीछे पीछे चल रहे थे मगर बच्चों को पत्थर मारने से कोई नहीं रोक रहा था। बेचारी पगली कभी कभी गुस्से से अपने दांत किटकिटा कर बच्चों को डराने का प्रयास करती थी। 


रामजी ने नोट किया कि उसने जो साड़ी तीन दिन पहले उसे दी थी वह नहीं थी। पता नहीं क्या हुआ उसका ? वह कुछ और सोच पाता इससे पहले ही वह पगली उसकी दुकान के सामने से गुजरने लगी। रामजी ने बच्चों को मारने का इशारा कर भगा दिया। पगली को हाथ के इशारे से रुकने को कहा। पगली तो पगली थी। अगर इतना ही समझती तो फिर पागल क्यों कहलाती ? इतने में रामजी के नौकर सेवक राम ने कुछ काजू , बादाम पगली को दिखाये। उनको देखकर पगली के कदम ठिठक गए। उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई। वह दुकान के और नजदीक आ गई। सेवक राम ने कुछ काजू , बादाम उसे दे दिये। पगली वहीं बैठकर खाने लगी। रामजी ने एक गिलास में पानी दिया तो उसने वह गिलास लेकर पानी पी लिया। रामजी ने अपनी दुकान में जो कुछ खाने का सामान था , बिस्कुट वगैरह भी दे दिए। पगली ने बड़े चाव से खाया। फिर पानी पिया और एक जोर की डकार मारी। फिर वहीं लेट गई। दुकान के बाहर मजमा लग गया। अब रामजी को लगने लगा कि पगली को यहां पर नहीं होना चाहिए। इससे उसकी दुकान प्रभावित हो रही है। मगर उसे ऐसे छोड़ा भी तो नहीं जा सकता है ना। 


रामजी अपने मित्र हनुमान के पास गए। हनुमान की कपड़े की दुकान थी। हनुमान को अपने साथ लेकर आए और बोले 

"इस पगली के लिए कोई ऐसा कपड़ा सिलवा दो जिससे वह उसे हटा नहीं पाये। तीन दिन पहले इसे मैंने एक साड़ी दी थी वो शायद इसने फाड़ दी है। अब ऐसा कुछ सिलो कि यह उसे हटा नहीं पाये"। 


हनुमान ने अपनी दुकान पर बैठे दर्जी को बुलवा लिया और उससे सारी बातें कह दीं। फिर पूछा कि इसके लिए क्या कपड़ा बनाया जाना चाहिए ? इस पर उस दर्जी ने सुझाया कि इसके लिए एक गाउन सिल देते हैं। उसे हटा नहीं पायेगी यह। यह सुझाव रामजी और हनुमान दोनों को सही लगा। हनुमान ने दर्जी को कपड़ा बताया और कहा कि फटाफट जाकर एक गाउन सिल कर ला दे। दर्जी चला गया। 


रामजी ने देखा कि पगली के शरीर पर घाव हो रहे हैं। उसने डॉक्टर अलका को बुलाने के लिए सेवक राम को भेजा। दरअसल डॉ अलका रामजी को अपने भाई की तरह मानती थीं। डॉक्टर अलका आतीं इससे पहले ही दर्जी गाउन लेकर आ गया। सबने मिलकर पगली को वह गाउन पहना दिया। 


थोड़ी देर में डॉक्टर अलका भी आ गई। उसने पगली का अच्छी तरह से मुआयना किया और कहा "इसको अच्छे से साफ करना होगा पहले फिर बैंडेज बांधे जाएंगे। एक दो टेस्ट करने पड़ेंगे। इसलिए इसे अस्पताल में भिजवा दो"। 


रामजी और हनुमान दोनों ने एक रिक्शा किया और पगली को उसमें बैठाकर अस्पताल ले गए। वहां पर डॉक्टर अलका ने पगली के सारे घाव साफ किये। फिर उसकी अच्छे से ड्रेसिंग की। एक दो टेस्ट भी किये। डॉक्टर अलका ने रामजी को कहा "भैया , एक बहुत गंभीर बात है। यह पगली मां बनने वाली है"। 


इस बात से रामजी और हनुमान ऐसे चौंके जैसे एक हजार वाट का करंट लगा हो। दोनों के चेहरों से हवाइयां उड़ने लगीं। एक दूसरे का मुंह ताकते रह गए दोनों। 


डॉक्टर अलका ने उनकी तंद्रा भंग की। कहा "एक दो दिन इसे अस्पताल में रखना होगा। इसके ये सब घाव भर जाएंगे तब तक और शरीर को भी कुछ आराम मिलेगा तथा कुछ पोषक तत्व भी मिलेंगे यहां पर। अब आप लोग अपना अपना काम करो। ये यहां सुरक्षित है। कोई आवश्यकता होगी तो मैं बुला लूंगी"। 


रामजी और हनुमान दोनों अस्पताल से बाहर आ गए। दोनों सोच में पड़े हुए थे कि क्या करें ? हनुमान ने कहा "वो अपना पीपल वाला मंदिर है ना। क्यों नहीं हम लोग एक कुटिया वहां बना दें और इसको वहां रख दें। कहो कैसा आइडिया है" ? 

"एकदम परफेक्ट। लाजवाब"। रामजी ने हनुमान को आवेश में बांहों में भर लिया। 


दोनों दोस्त पीपल वाले मंदिर की ओर चल दिए। पुजारी को सारी बातें बताई और एक कुटिया बनाने की बात बताई। भगवान की इच्छा समझकर कुटिया बनाने पर पुजारी ने सहमति दे दी। 


दोनों दोस्त कुटिया बनाने की तैयारी में लग गए। 


क्रमशः 



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Fantasy