Sangeeta Agarwal

Children

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Sangeeta Agarwal

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पैसा या प्यार ?

पैसा या प्यार ?

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मनु जैसे ही स्कूल से लौटकर घर में दौड़ता हुआ आया,घर में बड़ी रौनक और गहमागहमी सी थी।तेज गाने म्यूजिक प्लेयर पर बज रहे थे,काफी लोगों की हँसने बोलने की आवाजें आ रही थीं।कितनी सारी लेडीज कमरे में मौजूद थीं।मनु की मम्मी की किटी पार्टी चल रही थी आज।

मनु बेचैनी से अपनी मां को ढूढने लगा,उसकी आँखों में घर में बनी भीड़ से घबराहट और गुस्सा साफ पढ़ा जा सकता था।

मम्मा,कहाँ हो आप,वो हौले से बड़बड़ाया

रुचि ने जैसे ही उसे अपने पास आते हुए देखा,अपनी मेड सरला को आवाज लगाई

सरला,देखो मनु बाबा आ गए हैं,उन्हें जल्दी अंदर ले जाओ

मनु माँ तक पहुंच भी न पाया था,रुचि ने उसके बढ़े हाथ झटक दिए,झुंझलाई हुई बोली वो

जाओ सरला ऑन्टी के पास,वो आपको चेंज करा देंगीं

मनु भी जिद पर अड़ा था:नहीं मैं आपके साथ ही अंदर जाऊंगा

रूचि:जिद नही करते अच्छे बच्चे, जाओ अंदर,देखो मैं आपके लिए कितनी सुन्दर साइकिल लाई हूँ

मनु:नहीं, नहीं, मुझे आप चाहिए,साइकिल नहीं मम्मा

सारी लेडीज के आगे मनु का यूं जिद करना रुचि को अपना अपमान लग रहा था,खिसियाई हुई तेज आवाज में बोली:चुपचाप अंदर जाओ

मनु(बाल हठ करते हुए)नही जाऊंगा जितनी बार चाहे कहो आप

अचानक रुचि का हाथ घूम गया और नन्हें मनु के गाल पर छप गया।

सरला दौड़ती हुई आकर सुबकते हुए मनु को लगभग घसीटती हुई अंदर ले जाती है।

मिसेज शर्मा:अरे नाहक ही बच्चे को रुला दिया।चलीं जाती न थोड़ी देर उसके साथ अंदर

मिसेज अरोड़ा:लेकिन एक बात है,बच्चा जिद्दी बहुत है,हमारे बच्चे ऐसा नही करते,मजाल है मेरा कहा टाल दें,मेरे बच्चे

मिसेज चैहान:कोई बात नहीं,मेरे बच्चों को तो घर आते ही सबसे पहले मैं ही चाहिए होती हूँ, न दिखूं तो सारा घर सिर पर उठा लेते हैं

मिसेज वर्मा:अरे आपकी तो बात ही निराली है,हमने तो सुना है आपके मिस्टर भी ऐसा ही कुछ करते हैं आपके बिना

सब ठहाका लगा कर हँसने लगते हैं।

रुचि का मूड ऑफ हो चुका था।रह रह के उसे मनु पर गुस्सा आ रहा था।पता नही ये बच्चा चाहता क्या है,सब के सामने कितनी बेइज्जती करवाई उसने।

उधर मनु भी सरला के संभाले नहीं संभल रहा था।साइकिल की तरफ उसने एक निगाह तक न डाली।ऐसा ही भूखा-प्यासा सुबकता हुआ सरला की गोद में सो गया वो।

शाम को अमित घर आये तो घर में कुछ ज्यादा ही चुप्पी थी।

क्या बात,आज हमारा राजा बेटा बड़ा चुप है,अमित ने मनु को छेड़ा

मनु अभी भी मुंह फुलाये था।

रुचि ने खूब नमक मिर्च लगाकर दोपहर का किस्सा उसे सुनाया।

अमित:अरे कैसी मां हो,अपने ही बच्चे के खिलाफ ऐसी बातें?

रुचि:तुम तो इसीका पक्ष लोगे न ,तभी तो कोई मैनर्स सिखा नही पाई आजतक

अमित(गुस्से से): तुम मुझे भी लपेट रही हो,बिहेव योरसेल्फ रुचि

रुचि:हां, हाँ, तुम्हें मेरी जरा भी खुशी देखी नही जाती,कभी हाई सोसाइटी में उठे बैठे हो तभी तो जानोगे

अमित और रुचि में बहस बढ़ती ही जा रही थी,मनु ये देखकर सहम गया।

अमित से लिपटते हुए बोला:पापा सॉरी,मम्मी सॉरी,आगे से मैं कभी जिद नही करूंगा,प्लीज आप दोनों मत लड़ो।

रुचि अभी भी बड़बड़ा रही थी,क्या चीज नही लाते इसके लिए,एक से एक बढ़िया खिलौने दे रखें हैं,मंहगे स्कूल में पढ़ाते हैं,ब्रांडेड कपड़े पहनाते हैं,खाने में पैसा पानी की तरह बहाते हैं पर मिज़ाज??बिल्कुल अपने मिडिल क्लास पापा की तरह।

अमित के कानों में उसके शब्द नश्तर की तरह चुभ रहे थे पर मासूम मनु पर इस झगड़े का कितना बुरा असर होगा ,ये सोचकर वो खून का घूंट भरकर रह गया।

रुचि की ऐसी आदतों से वो भलीभांति परिचित था।खुद तो जैसे तैसे करके वो एडजस्ट किये हुए था पर मनु के बालमन पर इसके पड़ते बुरे असर को लेकर वो हमेशा चिंतित रहने लगा था।

बहुत बार उसने रूचि को समझाया भी पर उसके दिमाग में बस एक ही बात हावी थी कि अगर आप पैसेवाले है,आप अपने बच्चे की सारी जरूरतें पूरी कर रहे हैं तो आप एक आदर्श मां बाप हैं।पैसे के अलावा प्यार,रिश्ते की क्या अहमियत है,वो बिल्कुल अनजान थी।

अमित से रुचि की शादी को आठ साल हो चुके थे।बड़े चाव से अमित की माँ रूचि को बहु बना के लायीं थीं,रुचि सुन्दर, धनी बाप की इकलौती बेटी थी।उसके दान दहेज से उनकी आंखें और दिमाग सब चुंधिया गए थे।

अमित एक होनहार लड़का था,बड़ी छोटी उम्र में उसकी क्लास वन जॉब लग गयी थी, लेकिन रुचि से शादी करने के थोड़े समय बाद ही उसे ये अहसास हो चला था कि एक मिडिल क्लास से उठा हुआ लड़का कितना भी अच्छा कमा ले पर किसी भी कीमत पर एक पैसेवाले बाप की लड़की के नखरे नहीं उठा सकता।

रुचि सूरत से जितनी ज्यादा खूबसूरत थी,सीरत में उतनी ही तंग।कहने को तो पोस्ट ग्रेजुएशन किया था उसने पर हर चीज़ को सिर्फ और सिर्फ पैसे से तौलती।छोटे से छोटे गिफ्ट से लेकर बड़े से बड़े परिवार के मसले उसकी पैसे की तराजू पर जांचे जाते।अमित को लगता जैसे दिनभर किसी व्यापारी से सौदेबाजी सी करता हो।धीरे धीरे वो चुप रहने लगा था पर अब जब मनु समझदार हो रहा था,अमित की परेशानियां बढ़ती जा रहीं थीं।

अमित जितनी ज्यादा कोशिशें करता रुचि को समझाने की,वो जरा न सुनती।उसे उन दोनों बाप बेटों पर बहुत गुस्सा आता था।

सरला ,उसकी मेड ,भी गाहेबगाहे दबी जुबान में रुचि को समझाती पर रुचि ने किसी की भी एक न सुनी।बल्कि एक दिन कुछ ऐसा हुआ कि उसने गुस्से में सरला को नौकरी से ही निकाल दिया।

दरअसल सरला उसे डरते डरते समझाना चाह रही थी:मनु बाबा अब बड़े हो रहे हैं,वो सब समझने लगे है मैम।आप उनसे प्यार से बोला करो।

रुचि तिलमिला उठती है,ये दो टके की अनपढ़ कामवाली मुझे सिखाएगी कि बच्चे को कैसे रखना है।

उसने आव देखा न ताव,सरला का हिसाब कर दिया।

अब तो स्तिथि बद से बदतर होती चली गयी।नई वाली मेड की मनु छुआई न खाता और अक्सर इसी बात पे रुचि उसपर हाथ उठाने लगी।वह भी समझ नहीं पा रही थी कि मनु को कैसे हैंडल करे।

बाहरी कोई व्यक्ति देखता तो सोचता जैसे कोई सौतेली मां हो।

सौतेली मां तो खामखां बदनाम होती हैं,यहां तो असली सगी मां ही अपने बच्चे की जान की दुश्मन बन बैठी थी।

फिर एक दिन कुछ ऐसा घटा जिसकी आशंका ऐसी परिस्थितियों में बहुत स्वभाविक थी।

छोटा सा मनु उस दिन स्कूल से घर ही न लौटा।एकाध घंटे तो रुचि को पता ही न चला पर ज्यादा देर होने पर उसने मेड को बुला पूछा।

रुचि:बाबा को खाना खिला सुला दिया तुमने

कमला(नई मेड)मनु बाबा तो अभी आये ही नहीं

रुचि(चीखते हुए)तो इतने समय तक क्या सो रही थीं।तुम्हे इतना पैसा किस बात का देती हूं।

रुचि झट उसके स्कूल फ़ोन करती है,वहां पता चलता है कि मनु ठीक समय स्कूल वैन से घर के लिए चल था।एक एक करके सबके यहां फ़ोन किये पर कोई बच्चा कुछ नहीं बता पाया।

घबरा के उसने अमित को फ़ोन किया जो ये सुनते ही बेक़ाबू हो गया।झटपट घर आकर वो रूचि पर बरस पड़ा।"कितनी बार कहा है कि बच्चे का ख्याल खुद रखा करो पर तुम किसी की सुनो तब न"

रुचि रोये जा रही थी जैसे पहली बार उसे अपनी गलती का अहसास हो रहा था।

"अमित,प्लीज,कुछ भी करो,मेरे बच्चे को ढूंढ लाओ,मैं आपकी सब बातें माना करूंगी।

शाम हो चली थी।उन्हें लगा कि अब पुलिस में रिपोर्ट करा देनी चाहिए।मनु के साथ के सब बच्चों के घर जाकर पता कर चुके थे,अनजानी आशंकाओं से दिल दहल रहा था।अगर किसी ने किडनैप भी किया है तो क्यों,वो ठीक तो होगा आदि आदि।

अचानक उनकी पुरानी मेड सरला गोद में सोते हुए मनु को ले कर आती है और उसने जो बात रुचि को सुनाई उससे उसका सिर शर्म और पश्चाताप से झुक गया।उसने बताया,कैसे मनु बाबा उसके पास छुट्टी में आ गए थे और बिलख के रोते हुए उससे कहा:सरला ऑन्टी ,क्या मैं आपका बेटा नहीं बन सकता,आप मुझे कितना प्यार करती हो,अपने हाथ से खाना खिलाती थीं,अपनी पीठ पर घोड़ा बन मुझे सवारी कराती थीं,आप मुझसे क्यों नाराज़ हो कर यहां आ गईं।

मैंने मनु बाबा को बहुत समझाया पर वो रोते रोते वहीं रुकने की जिद करते रहे,उन्हें बहुत तेज बुखार था।अभी अभी मैं डॉक्टर को दिखा दवाई दिल के ला रही हूं।रास्ते मे वो सो गए, ये कहते हुए सरला प्यार से उसका माथा सहलाने लगी।

रुचि शर्म से जमीन में गड़ी जा रही थी।उसने मनु को गोद मे लिया और बेतहाशा उसे चूमने लगी।सरला का धन्यवाद जितने शब्दों में करे, कम था।

लेकिन आज उसे समझ आ रहा था, बच्चे पैसे के नहीं सिर्फ प्यार के भूखे होते हैं।


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