पाँच साल : इकतरफ़ा इश्क
पाँच साल : इकतरफ़ा इश्क


Part - 1
मैं अलग नहीं इस दुनिया से
हूँ मैं थोड़ा अजीब
इश्क़ कर बैठा मैं तुमसे
पर इश्क़ करते कैसे हैं
मुझे नहीं ज़रा भी ख़बर....
आज पूरे पाँच साल की मोहब्बत इक तरफ़ा मोहब्बत के बाद उसने मुझ पर ध्यान दिया। मैं बैठा था अपनी जगह उस चाय की टपरी पर जहाँ उसका रोज का आना होता। रोज की तरह वो आज भी आई और पिछले पाँच साल की तरह मैंने आज भी एक टक उसे देखा, ठीक उसी प्यार भरी नजर से जिससे मैं उसे रोज देखता था। पर आज नजर उसकी नज़रों से जा मिली, नज़रों से जब मिली नजऱ शाँत सा उसका जो चेहरा रोज होता था आज वो चेहरा खिल उठा था। मुस्कुराते हुए आज उसने अपने पल्लू को संभाल लिया था, कुछ अनसमझे से वो इशारे करने लगी थी। धीरे से वो मेरे पास की बेंच पर बैठी अब तक सुनने को जिसकी आवाज़ मैं बस ख़्वाब देखता था। करता था इंतज़ार सुनने को जिसके लफ़्ज़ों की धुन, आज जैसे बारिश से बरसने लगे थे। आकर पास मेरे उसने हाथ हिलाया और फ़िर वही हाथ उसने मेरे हाथ से मिलाया था कुछ ये ख़्वाबों जैसा यकीं करना था मुश्किल सा था। मैं झटपट से उठा और भागा
तभी पीछे से एक आवाज़ आई वही आवाज जिसको सुनने को मैं तरस रहा था, तरस रहे थे मेरे कान पाँच बरस से। उसने कहा अरे रुको, इतने सालों से जिसका इतंज़ार करते थे आज हकीक़त हो रहा तो भाग लिए। मैं वापस मुड़ा ख़ुद को संभाला, हड़बड़ी में कुछ बोला ना गया, बस सिर हाथ हिला दिए
ख़ुद की सफ़ाई में, कहने लगी जिस तरह देखते हो सब नजर आता है, करते हो इश्क़ ये साफ झलकता है, आओ इधर बैठो पास मेरे करनी हैं कुछ बातें बारे तेरे...…
Part - 2
मोहब्बत इकतरफ़ा हो तो डर लगता है
पर इश्क़ करने में मज़ा भी बहुत आता है
मुझे पास बुला कर वो बोली, क्यों करते हो इतनी मोहब्बत मुझसे, एक दिन भी ना बोला गया तुमसे, ये कैसी है मोहब्बत हमसे ? चलो बताओ अपने दिल का हाल, बताओ देख कर कैसे ये धड़क उठता है, कैसे कैसे तुम ख़्वाब देखते हो, ये सब बातें तुम आज मुझे बताओ, मेरे लिए ये सब अब भी एक ख़्वाब था। पाँच साल से जो ना हुआ आज कैसे ख़ुदा मेहरबान था। जैसे तैसे मैंने ख़ुद को आख़िर संभाला, एक गिलास पानी पीने के बाद, अपने मुँह से पहला लफ़्ज़ बोला, "थी मोहब्बत तो तुम्हें भी शायद वरना छुट्टी के दिन भी चाय पीने के लिए कौन घर छोड़ कर टपरी पर आता है।" मेरी इस बात पर उसकी हँसी निकल गयी, हँसती देख कर उसको मेरी भी हिम्मत बढ़ गयी। अब मैं भी शाँत हो चुका था, जाकर उसके पास वाली कुर्सी बैठ गया। फ़िर कुछ पल की शांति के बाद, मैंने फ़िर पूछा, "जब तुम्हें भी थी मोहब्बत तो इतना इंतज़ार क्यों कराया ? क्यों तुमने कभी कोई इशारा नहीं किया ? परख रही थी मोहब्बत मेरी ? या तुम भी डर रही थी मेरी तरह ?" इससे पहले मेरे सवालों का सिलसिला आगे बढ़ता, उसने मुझे रोका, रोक कर बोली "हर सवाल का जवाब नहीं होता, होती जो मोहब्बत इतनी आसान तो यूँ चाय की टपरी इश्क़ की पहचान ना होती। इश्क़ अपने की बस यहीं तक मंज़िल है यही है अपनी किस्मत यही है अपनी मोहब्बत का अंत।" इंतज़ार उसका अगले एक महीने तक किया मैंने, जो पिछले पाँच साल से कभी देरी से ना आई वो अब नज़र ना आई, शायद वो दिन आखिरी था, इसलिए उसने ही इज़हार किया था
ना हो सकती मोहब्बत परवान, ऐसा लफ़्ज़ों में ज़िक्र किया था........
Part - 3
मोहब्बत में किया इंतज़ार कभी जाया नहीं होता
या तो तुम्हें वो रब मिलता है जिसे बस तुमने रब माना था
या वो सब मिलता है जो तुमने कभी चाहा ना था
इंतज़ार जो मैं पाँच साल से कर रहा था बिना किसी आस के अब उस एक दिन की बातचीत ने सब बदल दिया था। दिन प्रतिदिन मैं अपना धीरज खो रहा था
अब ना जाने क्यों मेरा इश्क़ इक तरफ़ा इश्क़ में कुछ कमी सी आ गयी थी। जबसे हुई है ख़बर उनकी मोहब्बत की ना जाने क्यों अपने इश्क़ पर मुझे
घमंड सा हो गया है, कि आख़िर जो इतने दिन से आती थी अब क्यों नहीं आ रही है? अब इंतज़ार करते करते मैं भी ऊब सा गया था। यूँ ही चल पड़ा मैं एक दिन उसके आने के वक़्त पर, हाँ उसे आये हुए अब लगभग छः महीने हो गए थे। इश्क़ मेरा अब फ़ीका पड़ रहा था इंतज़ार करने के बाद जब मैं वहाँ से चला तो एक व्हीलचेयर सड़क के दूसरे किनारे पर दिखी, ये सड़क का वो किनारा था जिसे मैंने पिछले साढ़े पाँच साल से नज़रअंदाज़ किया था। मैं जब गया देखने की कौन है कर देता हूँ मदद शायद आना हो उसे इस पार। जब मैं वहाँ गया तो साँस अटक गई, मेरी आँखें एक टक वहीं रुक गई, एक पल के लिए मुझे ख़ुद से होने को नफ़रत लगी मोहब्बत में आज मैं इंतज़ार करके थका था वहीं चेहरा आज फ़िर से मेरी आँखों के सामने आकर खड़ा था।
देख कर उसकी वो हालात मुझे रोना आ गया जब चाहा उसको लगाना गले से तो मैं हक्का बक्का रह गया, वो पल भर में ना जाने कहाँ ग़ायब हो गई
जब पूछा मेरे पीछे खड़े टपरी वाले से तो जैसे पसीना छूट गया, बताया टपरी वाले ने जब एक हादसे के बारे में जो हुआ था करीब छह साल पहले......
Part - 4
थक जाओ ग़र इश्क़ में
तो याद उस दिन को कर लेना
कर लिए थे मोहब्बत जिस दिन
उनके बिन बोले से
टपरी वाले ने मुझे कुर्सी पर बैठाया और हुलिया लगा पूछने मुझसे, लगा पूछने कि कब से मुझे इश्क़ हुआ ? कैसे कैसे यकीन दिलाता मैं उसको, उसके हाथ की बनी चाय पीने वाली का जब उसने बताया वो हकीक़त नहीं। अरे रोज वहीं पर तो वो आती थी, सबके सामने भरी दोपहर में, कैसे फ़िर इतने साल वो मेरी बस मात्र मेरी वो मृगतृष्णा साबित हो रही थी। फिर टपरी वाले ने एक पुराना अखबार दिखाया, अखबार में जो छपा था वो चित्र दिखाया, पूछा उसने फ़िर से जब हुलिया, हुलिया मेरी महबूबा का हूबहू वही चित्र मुझे मेरी आँखों के सामने नजऱ आया। मैं वहां से चल दिया उठ कर पहुंचा उसी किनारे पर वापस व्हीलचेयर अब मुझे फिर से नजर आने लगी थी। व्हीलचेयर पर बैठा मेरा इश्क़ भी अब फ़िर से मुस्कुराने लगा था, आज शायद मुझे इश्क़ फ़िर से होने लगा था, वहीं साढ़े पाँच साल पुराना इकतरफ़ा इश्क़....अधूरा इश्क़........या शायद था वो कहीं ना कहीं पूरा इश्क़....
क़िस्सों में यूँ तो रात निकल जाती है
खोजने लगो तो कोई बात निकल जाती है
ग़र हो मोहब्बत सच्ची
तो इकतरफ़ा मोहब्बत में भी
यूँ ही हँसते हँसते जन्मों पहले की हुई
वादों की हल्की सी एक याद निकल जाती है।