anila tiwari

Tragedy

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anila tiwari

Tragedy

नशा से नाश

नशा से नाश

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 ये कहानी है एक पुलिस इंस्पेक्टर जयेश की जो बिहार सीमा प्रान्त में पदस्थ था । और अपने रसूख एवम कड़क व रौबदार छवि के लिए प्रसिद्ध था ।

  इंस्पेक्टर जयेश की पत्नी (ऋचा) जो एक सीधी साधी घरेलू महिला थीं और एक बेटा सोहम था जो अभी स्कूली शिक्षा ग्रहण कर रहा था ।


कुछ दिनों तक तो सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था परन्तु इंस्पेक्टर जयेश को पता नहीं कैसा अमीर बनने का शौक चढ़ गया । की वह गलत राह पर चल पड़ा।


इन बातों को लेकर जयेश और उनकी पत्नी ऋचा की कहा सुनी चालू रहती ।

इस बात पर इंस्पेक्टर जयेश पत्नी को यह बोलकर शांत करा देता था की अभी सोहम बड़ा होगा इसकी पढ़ाई लिखाई और परवरिश में बहुत खर्च लगना है जो इस शराफत की कमाई से पूरा नहीं हो पायेगा।

पत्नी भी बेचारी क्या करती जयेश के तर्क सुन कर कभी चुप रह जाती तो कभी जबाव देती की हम किसी तरह से गुजारा कर ही लेंगे ।


पर इंस्पेक्टर साहब को तो जैसे अमीरी का नशा ही लग गया था ।

इस बात पर अब घर में छोटी मोटी कहा सुनी ने कलह का रूप ले लिया था और आये दिन झगड़े होने लगे थे ।


जयेश शराब पीकर घर आने लगा था और घर में कलह ये तो आम बात हो गयी थी।

इन सब बातों से जयेश की पत्नी ऋचा बहुत दुखी रहती थी और धीरे धीरे डिप्रेशन में जाने लगी।

पर जयेश को इस बात से कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ रहा था उसकी दिनचर्या वैसी ही थी ।

बल्कि यूँ कहें की जो बात पहले छोटी मोटी रिश्वत तक सीमित था अब वो बड़े बड़े कारनामों में बदल गयी ।

ऋचा जयेश को समझाती और वो आग बबूला हो जाता ।


फिर एक दिन ये लड़ाई झगड़ा मारपीट में बदल गया और ये मार पीट का सिलसिला नियमित का बन गया ।

ऋचा पहले से ही डिप्रेशन में थी अब वो बीमार रहने लग गयी ।

इसी बीच ऋचा का भाई ( जयन्त)आता है ऋचा अपनी तकलीफ अपने भाई को बताती है ।

भाई बोलता है कुछ दिन के लिए घर चलो (मायके )तुम्हारा भी मन बदल जायेगा और अकेलेपन में शायद जीजाजी (जयेश) को भी अपनी गलतियों का अहसास हो जाये।

ऋचा अपने भाई जयेश के साथ मायके आ जाती है और सोहम की स्कूल की लम्बी छुट्टियाँ थी अतः उसको भी अपने साथ ले आती है।


इधर मायके में ऋचा थोड़ा राहत महसूस कर रही थी, क्योंकि रोज रोज के चिक चिक और लड़ाई झगड़े व मारपीट से मुक्त जो थी ।

परन्तु उसे ये कहाँ पता था ये सुकून और शान्ति क्षणिक मात्र थे ।

मायके में पिता राम मनोहर जी एवम् माता सुमित्रा देवी थीं ।

पिता जी रेलवे में तृतीया श्रेणी कर्मचारी थे जो की अब नौकरी से सेवा निवृत्त हो चुके थे एवम माता जी घरेलू महिला थीं ।

कुल मिलाकर मायका एक मध्यम वर्गीय परिवार था।

भाई जयन्त इंजीनियरिग की पढ़ाई पूरी कर किसी प्राइवेट कंपनी में जॉब करने लगा था।


इधर ऋचा अपने मायके में सुकून और राहत महसूस कर रही थी।

उधर जयेश की खुराफातें दिन दूनी रात चौगुनी होने लगीं थी ।

ऋचा जो सब कुछ ठीक होने की कल्पना करके मायके आयी थी उसके बिल्कुल उलट हो रहा था।

अब इंस्पेक्टर जयेश धन लोलुप, शराब, के साथ साथ शबाब का भी आदी हो चुका था ।

साथ ही छोटी छोटी रिश्वतों ने नया रूप अख्तियार कर लिया था जो मादक एवम नशीली दवाइयों के व्यापार में बदल गया था।

दिन दूनी रात चौगुनी आमदनी होने लगी थी पर जयेश का लोलुप बढ़ता ही जा रहा था।


इनके गोरखधन्धे में कई लोग शामिल हो चुके थे और जयेश की वर्दी के संरक्षण में सब बच जाते थे।

जयेश और साथियों का गोरख धंधा बुलंदियों पर था ।

इस नशे के आदी किशोरवय स्कूल कॉलेज के लड़के हो चुके थे ,और जिस जहर का सेवन करके आनन्दित हो रहे थे उन्हें खुद भी यह मालूम नहीं था कि वे काल के गाल में समाते जा रहे हैं।


इस नशे के आदी उच्चवर्गीय परिवार के बच्चे तो थे ही, फिर देखा देखी मध्यम वर्गीय युवा वर्ग शामिल हो गया ।

जयेश और साथियों का धंधा चरम पर था जिन पैसों के ढेर में बैठे थे वो लाशों के ढेर बनता जा रहा था, परंतु इन सब बातों से न जयेश को कोई फर्क पड़ता था न उसके साथियों को ।

जयेश तो वैसे भी दुनिया की नजर में शराफत का लबादा ओढ़े हुए था और वर्दी की आड़ में ये गोरखधंधा फल फूल रहा था ।

लोग जयेश के पास काले कारनामों की शिकायत लेकर आते थे उन्हें ये लगता की इंस्पेक्टर साहब को रिपोर्ट लिखाएँगे और वो कार्यवाही करेंगे।

उन्हें ये कहाँ पता रहता था की ये कारस्तानी जयेश की वर्दी की ही आड़ में चल रही है।

ये भी उनको ये सांत्वना दे देता की आपकी शिकायत पर उचित कार्यवाही की जाएगी ।

भोले भाले मासूम लोग उत्सुकता वश वापस चले जाते की इंस्पेक्टर साहब अवश्य ही कारवाही करेंगे ।

उन सबको जयेश के इस काले कारनामे की जानकारी बिल्कुल भी न थी।

इस काले धंधे के बारे में यदि किसी को पता था तो वो ऋचा थी और ऋचा का भाई जयन्त।

 और बेटा सोहम भी अधिक कुछ नहीं समझता था बस  उसको इतना पता था कि मम्मी और पापा के बीच रिश्ते सामान्य नहीं हैं झगड़े होते हैं किसी बात को लेकर।

इस बात की जानकारी ऋचा ने अपने बूढ़े माँ बाप को भी नहीं दी थी की बूढ़े माता पिता बेवजह परेशान होंगे ।


इसी तरह दिन से महीने, महीने से साल गुजरते जा रहे थे।

इस बीच जयेश की पत्नी ऋचा भी अपने बेटे को लेकर मायके से वापस आ चुकी थी ।

नहीं बदला था कुछ तो उसके पति का रवैया ।

लेकिन अब ऋचा ने कहना सुनना छोड़ दिया था वो भी समझ चुकी थी की अब उसका पति दलदल में पूरी तरह से धँस चुका है ।

कलह से बेहतर है शांति से अपनी दिनचर्या में लगे रहो ।

अब वो मन ही मन बहुत दुःखी रहने लगी थी ।

अब बेटा सोहम भी पुनः स्कूल जाने लगा था उसने पढ़ाई के साथ साथ नए नए दोस्त बना लिए थे।

सोहम अब किशोर वय होने लगा था।

ऋचा को अपने बेटे की निरन्तर चिंता बनी रहती थी ,परन्तु जयेश अपनी दुनिया में मस्त अभी भी बेखबर ही रहता था।

बल्कि यूँ कहें की ये सोचकर खुश होता था कि अब ऋचा झगड़ा फसाद नहीं करती है।

लेकिन ये बात शायद उसको भी नहीं पता थी की काल ने उसके घर की तरफ भी पैर पसार दिए हैं।


एक दिन जयेश अपने पुलिस थाने में कुछ काम कर रहा होता है तभी कुछ झुग्गी झोपड़ी के बाशिंदे रोते गिड़गिड़ाते जयेश के पास आते हैं ..........

माई बाप ,माई बाप ,साहब ,साहब -बचा लो हमारे बच्चों को .......

गरीब असहायों के रुदन से पुलिस स्टेशन में कोलाहल मचा हुआ था ।

सब कुछ जानते हुए अनजान बनने की कोशिश करता जयेश पूछता है आप साफ साफ बताइए हुआ क्या है ?

उन लोगों ने अपनी पीड़ा बयां की कि हमारे बच्चे जहरीले मादक पदार्थों की गिरफ्त में आये और अब मरणासन्न हालत में अस्पतालों में हैं।

जयेश ने आश्वाशन देकर सबको वापस भेज दिया ।

अब कुछ बीमार बच्चे ठीक हो चुके थे कुछ काल के गाल में समा चुके थे ।

पर इन सब बातों से इंस्पेक्टर जयेश को क्या लेना देना था ।

वो तो अपनी कमाई में पूर्ववत लगा हुआ था।


2 साल बाद


सोहम अब 10वीं कक्षा में पहुँच गया था ,जो नए दोस्त बने थे वो उसकी उम्र से बड़े लड़के भी थे और कुछ बराबर उम्र के भी थे।

सोहम भी अपने दोस्तों के साथ सैर सपाटा ,पिकनिक के आनन्द लेने लगा था ।

धीरे धीरे पता नहीं कब नशे की गिरफ्त में भी समा गया ।

अभी ऋचा और जयेश इस बात से बिल्कुल ही अनजान थे ।

स्कूल से जाकर नशा करता ,घूमना फिरना ,आवारागर्दी उसकी आदत में अब शामिल हो चुकी थी।

माँ ऋचा पूछती बेटा ये तेरी आँखें लाल क्यों रहती हैं तो बोल देता माँ वो रात भर जागकर पढ़ाई करता हूँ इसलिए ।

और जयेश को तो इन सब बातों के लिए वैसे भी फुर्सत नही थी ।

अब सोहम जहरीले नशे को घर लाकर रात में भी सेवन करने लगा था।

फिर एक दिन अचानक से सोहम के पेट में असहनीय दर्द उठता है और वो बेहोश हो जाता है ।

ऋचा जयेश को फोन करके सोहम के बारे में बताती है और सोहम को लेकर अस्पताल के लिए भागती है इसी बीच जयेश भी अस्पताल पहुँच जाता है।


डॉक्टर सोहम का इलाज करते हैं बहुत सारी मशीनी जाँचे होती हैं ।

रिपोर्ट में पता चलता है की सोहम नशे का आदी हो चुका है और हालत बहुत नाजुक है दोनो किडनियाँ खराब हो चुकी हैं ।

ऑपरेशन करके किडनी प्रत्यारोपण करना पड़ेगा ।

ऋचा तो यह सुनकर ही बदहवास हो चुकी थी ।

जयेश का भी ये हाल हो चुका था कि काटो तो खून नहीं ।

डॉक्टर ने कहा आप दोनों अपने आप को सम्हालिये ,और जितना जल्दी हो सके किडनी की व्यवस्था कीजिये ।

आप दोनों में से किसी एक की मैच हो जाये तो जल्दी से ऑपरेशन की तैयारी करें ।

ऋचा और जयेश की जाँच चल ही रही थी की नर्स ने जोर से आवाज दी डॉक्टर जल्दी आइए मरीज की हालत बहुत गम्भीर है।

उधर सोहम हांफ रहा था साँस लेने में कठिनाई हो रही थी... 

ऑक्सीजन मास्क चढ़ गया था, डॉक्टर भरपूर कोशिश कर रहे थे सोहम को बचाने के लिए ..............

लेकिन प्रभु की मर्जी के सामने ..............किसी की नहीं चलती ।

सोहम को तीन चार हिचकियाँ आयीं और वो शान्त हो गया

डॉक्टर बाहर आये और ........................वही .....

i am sorry हम सोहम को नहीं बचा पाए

अब जयेश बदहवास और ऋचा तो बेहोश हो चुकी थी ।

किसी तरह घर आये जो क्रिया कर्म था पूरा किया ।

ऋचा अब बीमार रहने लगी थी और गुमसुम रहती थी।

कुछ दिनों के बाद जयेश अपनी ड्यूटी पर जाने लगा था।

अचानक से एक दिन घर के नौकर ने फोन किया साहब जल्दी घर आइए मेम साहब ने फाँसी लगा ली है ।


जयेश भागता हुआ घर आया लेकिन तब तक सब खत्म हो चुका था।

डॉक्टर्स ने बताया इनकी मौत 2 घण्टे पहले ही हो चुकी है आप अस्पताल पहुंचाने में देर कर दिए ।

अब जयेश  निःशब्द ।

जयेश अपने जुएँ के अड्डे, नशीली दवाओं का व्यापार जैसे सब काले धंधे बन्द कर चुका है।

पर अफसोस पहले जैसा कुछ भी नहीं हो सकता है

काश समय रहते ये आँखें खुल गयी होतीं तो आज पत्नी और बच्चे को नहीं खोना पड़ता ।

इस तरह नशे ने कई घरों का नाश कर दिया था

और इस सब में नशे के सौदागर का भी घर तबाह हो चुका था ।



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