अपशकुनी
अपशकुनी
आज सुधा की बेटी रिया का विवाह था, बारात आने में अभी समय था , सब मेहमान आ चुके थे सारे सगे संबंधी बारात के स्वागत की तैयारियों में लगे थे।
घर के पिछवाड़े में बने बरामदे और उससे सटे हुए मैदान में हलवाइयों के साथ भोजन की निगरानी का जिम्मा सुधा के हाथ में था की कहीं भूल से भी भोजन व्यवस्था में गड़बड़ी न हो जाए क्योंकि हम बेटी वाले हैं।
अंदर की सारी तैयारियां सुधा की जेठानी उर्मिला और उनके पति नरेश जी सम्हाल रहे थे।
रिया को हल्दी लग चुकी थी अब उसको बाहर निकलना मना है।
वो कमरे से घर के आंगन में भी नहीं आ सकती थी।
बीच - बीच में उसकी सहेलियां और हम उम्र चचेरी ममेरी बहनें जाकर छेड़ती रहतीं थी।
लेकिन रिया का मन तो अपनी मां के बिन उदास था, वो यह सोच - सोच कर परेशान थी की यह कैसी रीत है जो हम अपनी मां से भी नहीं मिल सकते। इन सड़ी गली रस्मों से उसे चिढ़ होने लगी थी। परंतु कुछ कर भी नहीं पा रही थी अपनी मां के लिए।
अचानक से उसे याद आया गौरव ( रिया का होने वाला पति ) मदद कर पाएगा इसमें, और झट से उसने गौरव को फोन मिला दिया।
उधर से गौरव के कॉल रिसीव करते ही सारी परेशानी उसको फोन पर बता दी।
गौरव ने आश्वस्त किया की 4 - 6 घंटे की बात है मैं सब सम्हाल लूंगा।
तुम्हारे हर दुःख सुख अब मेरे हैं रिया, तुम बिलकुल भी चिंता मत करो।
देखते ही देखते बारात आने का समय हो गया रिया की मां वहीं हलवाइयों के पास ही बैठी थी, यहां शादी की सारी तैयारियां अन्य लोग कर रहे थे, और ये कैसी विडम्बना है की मां सामने भी नहीं आ सकती थी ?
कुछ समय पश्चात बारात आई स्वागत सत्कार हुआ उसके बाद बारात द्वार में लगनी थी ( द्वार पूजा ) द्वार पूजा होने के बाद जब वरमाला का समय आया तब गौरव ने रिया की बड़ी मां और बड़े पापा ( उर्मिला और नरेश जी ) से पूछा की मां कहां पर हैं वो दिखाई नहीं दे रहीं ?
उर्मिला जी ने झट से जबाव दिया की वो चाहती है की भोजन में कोई गड़बड़ी न हो इसलिए अपनी निगरानी में भोजन व्यवस्था करवा
रही है।
गौरव ने कहा ऐसी कौन सी व्यवस्था बड़ी मां जो अपनी बेटी की शादी में 5 मिनट आकर खड़े होने की फुरसत नहीं है ?
और सुधा को बुलाने के लिए गौरव ने रिया की सहेलियों को भेजा।
तब पीछे से नरेश जी ने आवाज लगाई गौरव बेटा दरअसल हमारे यहां का रिवाज है की विधवा औरत शुभ कामों में सामने नहीं आती अपशकुनी होती है।
गौरव ने कहा - ताऊ जी फिर आप एक काम करिए आप अपने बेटी को घर बैठाकर रखिए ऐसे सड़े गले वाले विचारों वाले घर से हम लड़की ब्याह कर नहीं ले जा सकते, क्योंकि यही खोखले रिवाज ये हमारे घर में भी फैलाएगी।
हम बारात वापस लेकर जा रहे हैं।
और एक बात ये बताएं आप फिर दादी जी क्या कर रही हैं घर में और ये मामी ( उर्मिला की भाभी ) ये भी तो विधवा है ? उर्मिला और नरेश जी के पास कोई जवाब नहीं था ।
मेरे घर में भी मेरी चाची और मेरी बहन भी विधवा हैं आपकी बेटी यही संस्कार वहां ले जायेगी इसलिए हमें क्षमा करें।
इसके बाद रिया के ताई ताऊ ने क्षमा मांगी गिड़गिड़ाने लगे।
सुधा को बुलाया और सारी रस्में भी मां के द्वारा सम्पन्न कराई गईं।