निश्चय
निश्चय
पितृ पक्ष शुरू होते ही अंकिता पंडित जी को बुला लाई अपने पिता के तर्पण के लिए सारी तैयारी करने के बाद पंडित जी बोले-
"एक बार फिर सोच लो पितृ पक्ष में पंद्रह दिन तक पुत्र के हाथों पानी देने का विधान है तभी आत्मा को तृप्त होकर मोक्ष को पाती है।"
"लेकिन पंडित जी जो पुत्र जीते हुए अपने कर्तव्य को भूल जाए फिर उसे पानी देने का अधिकार क्यों??"
"यह तो सदियों से होता आया है "
पंडित जी ने कहा तो उसका मन तड़फ उठा। सेवानिवृत्ति के बाद पिता जी अकेले गाँव में रहने लगे थे चूँकि माँ का देहांत बहुत पहले ही हो गया था। भैया- भाभी शहर में नौकरी व अपने बच्चों में व्यस्त। पिताजी के गिरते स्वास्थ्य को देख कर वह उन्हें अपने साथ ले आई। बेटे होने का गर्व जो पहले पिता जी के चेहरे में दिखाई देता था वह धीरे धीरे धूमिल होने लगी। अंतिम समय में बेटे की उपेक्षा से आहत ज्यादा दिन जी नही पाए।
अंततः उसने निश्चय किया कि वह अपने पिताके आत्मा की तृप्ति के लिए खुद ही तर्पण के लिए पानी देगी।