SEEMA NIGAM

Inspirational

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SEEMA NIGAM

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अपना घर (परिवार)

अपना घर (परिवार)

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"हर स्त्री का सपना होता है कि उसका अपना घर बने और अब जब मेरा सपना पूरा हो रहा है तो आप भूले से भी अम्मां - बाबूजी को साथ चलने को मत कहना।" मानसी की बात सुनकर उसके पति अमित का मन अस्थिर हो उठा उसे समझ में नहीं आ रहा था क्या करें? 

   जब अम्मां-बाबूजी ने सुना तो उन्हें समझते देर नहीं लगी पिछले कुछ महीनों से वे मानसी का रवैया देख रहे थे, जब से उनके बड़े बेटे ने अलग घर बनवाया था तभी से वह अमित के पीछे पड़ गई थी और उसने नई कालोनी में अपने लिए किश्तों में घर बुक करवा दिया था।

   "इतना बड़ा निर्णय कैसे ले लिया, एक ही शहर में हम लोग अलग-अलग रहे यह भला कैसे संभव होगा? " पिता जी के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रही थी। 

   जीवन में कई बार ऐसे क्षण आ जाते हैं जब हमें न चाहते हुए भी कटू निर्णय लेने पड़ते हैं पर तुम चिंता मत करो" अम्मां जी ने अमित को समझाया " वह अलग रहना चाहती है तो इसमें हर्ज क्या है? वक्त के साथ भी सोच बदल गई है, तुम किसी प्रकार की चिंता मत करो नये घर में खुशी-खुशी जाओ तुम्हें प्रसन्न देखकर हम भी अपना समय अकेले काट लेंगे।" अम्मांजी का स्वर स्पष्ट पर आदेशात्मक था। 

     नये घर में आकर मानसी को लग रहा था कि वह नये संसार में आ गई है। नये घर का आकर्षण, अकेले रहने का रोमांच, मनमानी करने की स्वतंत्रता उसे ऐसा लग रहा था मानो जिंदगी में सुख ही सुख हो।

   अमित ने भी परिस्थिति से समझौता कर लिया था, उसे अम्मां-बाबूजी की चिंता हमेशा सताती रविवार व छुट्टियों के दिन वह बच्चों को लेकर अम्मां-बाबूजी से मिलने जाता व उनकी दवाइयाँ और जरूरी समान रख आता

  समय अपनी गति से गुजरता रहा अपने घर में आए मानसी को लगभग छः महीने हो रहे थे, वह खुश और प्रसन्न रहती है, फिर धीरे-धीरे कई समस्याएं उसके सामने आने लगी जिससे वह परेशान रहने लगी शहर से दूर कालोनी होने के कारण काम वाली बाई का मिलना मुश्किल था, अमित की ड्यूटी ही ऐसी थी कि सुबह निकलते तो देर रात तक वापस घर आते, इस बीच बच्चों की स्कूल छोड़ना लाना, मार्केट जाकर घर के सामान लाने की जिम्मेदारी उसी पर थी, वहाँ तो पिताजी यह सब काम करते तो वह निश्चिंत रहती थी।

  पिताजी के पेंशन और अमित की तनख्वाह से घर खर्च आसानी से चल जाते कभी किसी प्रकार की आर्थिक परेशानी नहीं हुई। यहाँ अमित की कमाई का एक हिस्सा घर के लोन चुकाने में चला जाता था, वह मन की मन सोचती घर से अलग होकर उसे कौन सा सुख मिल गया? 

     जीवन में कई बार अनचाही घटनाएं हो जाती है मानसी बच्चों को स्कूल छोड़कर जैसे ही पलटी एक ट्रक उसे रौंदता हुआ चला गया। उसे प्लास्टर बांधा गया था, डाॅ. ने दो माह उसे आराम करने को कहा था उसके मन में चिंता होने लगी- "घर कौन संभालेगा ?"

घर पहुँचे तो अम्मां बाबूजी पहले से आ चुके थे अम्मा जी बोली-

   "सुख-दुख में अपने काम नहीं आयेंगे तो कौन आयेगा। तुम्हारे अलग रहने से हम क्या अपना उत्तरदायित्व भूल जायेंगे हम तो बड़े होने का कर्तव्य निर्वाह कर रहे हैं बस थोड़े ही दिनों में तुम ठीक होकर अपनी गृहस्थी फिर संभालने लगोगी, फिर हम अपने घर चले जायेंगे।" 

    मानसी की बड़ी बहन उससे मिलने आई तो समझाने लगी-

   "मुझे तो हर समय तुम्हारी ही चिंता लगी रहती है सुना है तुम्हारी सास बिना बुलाए ही आ गई है, कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारी बीमारी का बहाना कर वह हमेशा के लिए यही रूक जाय और बाद में तुम्हें पछताना पड़े।"

   कुछ पल की खामोशी के बाद मानसी ने दृढ़ स्वर में अपनी दीदी से कहा- "बस दीदी पहले भी आप लोगों के बहकावे में आकर मैंने बहुत बड़ी गलती कर दी है। अकेले रहकर मैंने महसूस किया है कि परिवार हमारे जीवन में कितना महत्व हैं घर का सुख तो अपनों के साथ रहने में ही है।"

    दोनों बहनों की वार्तालाप अम्मां जी दरवाजे के पास खड़ी सुन रही थी, मानसी ने अपनी खुशी की खातिर परिवार के महत्व को नकारा था, अब परिवार का महत्व उसके सम्मुख आया और वह यथार्थ की धरातल पर गई है, मानसी का मन उनसे माफी मांगने को अधीर हो उठा था।

     मानसी के ठीक होने के बाद अम्मां-बाबूजी लौटने की तैयारी करने लगे अगली सुबह नाश्ता करने के बाद अम्मां जी बोली-

   " अमित तुम हमें अभी वहाँ छोड़ दो।" 

जब मानसी ने सुना तो बोली- "मैं आप लोगों से बहुत दिनों से कहना चाह रही थी, आप लोग यही रहें।" उसके स्वर में गहरी वेदना था जिसे सुनकर अम्मां जी बोली- 

   "हमें खुशी है कि तुम्हें समय रहते परिवार के महत्व समझ में आ गया है पर अब हम तुम लोगों पर बोझ बनकर नहीं रहना चाहते।"

   पिता जी बोले "अमित चलो उस घर का सामान ले आते हैं और उसे किराये से दे देंगे, आखिर इस घर के लोन की किश्त भी तो पटानी है।"

   "हां, मैं भी यही सोच रही हूं", अम्मां जी ने पिता जी के बातों का समर्थन किया तो अमित मुस्कुरा दिया, बच्चे तो खुशी से उछल पड़े , उनकी तो मन चाही मुराद पूरी हो गई, मानसी के मन का बोझ उतर गया आज बहुत दिनों बाद अपने दिलो-दिमाग को हल्का महसूस कर रही थी।



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