अक्स (लघु कथा)
अक्स (लघु कथा)
आज तीज है... रीना अपनी माँ को सुबह से ही याद कर रो रही है।पिछले माह ही तो उनका देहांत हुआ था ।शादी के कुछ सालों तक तो तीज में मायके जाती लेकिन जब से बच्चे शाला जाने लगे ।तब से माँ ही पकवान ,साड़ी व सारा श्रृंगार का सामान भेज देती थी।
"भैया- भाभी से उम्मीद थी कि इस परंपरा को आगे बढ़ाने की पर इस बार माँ के जाने के बाद पहला पर्व है शायद सालभर वे कोई त्यौहार न मनाएँ.......... ऐसा सोचकर अपने बैचेन मन को समझा रही थी पर नाकाम रही.
दोपहर में सासुमां बाजार गई और ढेर सारा समान लेकर वापस लौटी रीना को देते हुए बोली-
"ये सब तुम्हारे तीज के लिए "सुनकर रीना आश्चर्य चकित हो गई ......."मेरे लिए "
सासुमां बोली .... "हाँ तुम्हारे लिए, तुम्हारी माँ नही तो क्या ........आज से मैं तुम्हारी माँ ।"कहते हुए रीना को गले लगा लिया भावातिरेक में दोनों की आंखें छलछला आई..
आज पहली बार सासुमां के चेहरे में माँ का अक्स नजर आया ।