Aanchal Tyagi

Tragedy

5.0  

Aanchal Tyagi

Tragedy

निशब्द

निशब्द

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बड़ी शान से आज तिरंगे में लिपटकर चार कंधों की सवारी करते हुए अपने पैतृक गांव वापस आया था रामसेवक।

गांव के गरीब किसान का बेटा, बड़ों का सम्मान करने वाला, सबसे मित्रता पूर्ण व्यवहार करने वाला और पढ़ाई में भी अव्वल। ना डॉक्टर बनना था उसे, ना ही इंजीनियर बनने की कोई इच्छा थी, मन में कूट-कूट कर जज्बा भरा हुआ था तो बस देश सेवा का।

और 12वीं पास करते ही चला गया था भारत मां की सेवा के लिए, अपनी जन्म देने वाली मां को छोड़कर। आज तिरंगे में लिपटे अपने बेटे के पार्थिव शरीर को देखकर उनके मां-बाप के चेहरे पर दु:ख के भाव नहीं थे क्योंकि रामसेवक तो अमर हो चुका था ना केवल उसके प्रिय जनों के मन में अपितु समस्त देशवासियों के मन में भी।

घर में साठ की उम्र पार मां बाप, घरवाली और एक अबोध बच्ची को छोड़कर गया था रामसेवक। उसकी बच्ची जिसे बड़ी होने पर शायद अपने पिता की आंखों देखी शक्ल भी याद न रहेगी परंतु उसके अवचेतन मन में यादें होंगी, उसके पिता के शौर्य और वीरता की। उसे ताउम्र सुनने को मिलेंगी उसके पिता की शौर्य गाथाएं, जिन्हें सुनकर वह गर्व महसूस करेगी।

आज इस दुख की घड़ी में गांव के किसी भी चूल्हे पर तवा ना चढ़ा था, बस एक हुजूम सा जमा था रामसेवक के घर पर।

पड़ोस की काकी ने रामसेवक की पत्नी के कांधे पर होले से हाथ रखा। आखिर उस अमर आत्मा के शरीर का अंतिम संस्कार करने की घड़ी जो आ गई थी, और जब राम सेवक की पत्नी अपनी 9 माह की बच्ची को गोद में लेकर उसके पिता को मुखाग्नि देने ले गई तो मसान में खड़े हर एक व्यक्ति के चेहरे पर गर्व का भाव था और उनके होंठ निशब्द थे।


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