पदमश्री

पदमश्री

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आहा! कितनी सुंदर जगह, शांत वातावरण, हर एक चीज सुव्यवस्थित ढंग से, बड़े करीने से सजी हुई। कितनी जानी-मानी हस्तियां बैठी हुई हैं, कोई राजनीति से है, कोई विज्ञान के क्षेत्र से, तो कोई खेल की दुनिया का जाना माना चेहरा, इन्हीं सबके बीच अचानक कैमरे का फोकस एक आदमी पर आकर ठिठका। कुर्ता- पायजामा पहने हुए, कंधे पर लाल धारी वाला गमछा और पैरों में हवाई चप्पलें और हां ताव वाली मुछें भी थी।


फिर कैमरे का फोकस उस आदमी से हटकर स्टेज की तरफ गया जहां पर राष्ट्रपति महोदय का आगमन हो चुका था सभी उपस्थित गणमान्य लोग महामहिम के आदर में अपनी सीटों से खड़े हो गए और कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। यह नज़ारा था राष्ट्रपति भवन का जहां पदमश्री ,पदम विभूषण अवॉर्ड्स सेरेमनी हो रही थी।

"दामोदर सिंह" जब यह नाम पुकारा गया तो कैमरे का फोकस फिर से उसी इंसान पर रुका। देखने में साधारण सा दिखने वाला आदमी, जिसने देहाती की तरह कंधे पर गमछा डाला हुआ है। आखिर इस ने ऐसा क्या किया है जो इसे पदमश्री से नवाजा जा रहा है।रात का अंधेरा और ऊपर से झमाझम पड़ती बारिश।


 बारिश के शोर के साथ साथ किसी के कराहने की आवाज भी वहां कुछ सेकंड के अंतराल पर दम भरती हुई सुनाई पड़ रही थीं।

 दूर एक छोटे से घर से ये आवाजें आ रही थीं।

 साधारण सा घर जिसके बरामदे में टाट को पर्दे की तरह टांगा गया था।

 एक औरत जिसकी उम्र बस 25 से 26 वर्ष के बीच रही होगी एक सूती साड़ी में लिपटी हुई , बरामदे में एक खाट पर लेटी हुई थी। देखने में उसकी हालत कुछ ठीक मालूम नहीं हो रही थी।

शायद यही वह औरत थी जिसकी कराह थोड़ी थोड़ी देर में सब के कानों को अपनी तरफ आकर्षित कर रही थी।


बस थोड़ा हौंसला रख सविता , डा. साहब ने कहा है कि खाने की वजह से पेट में थोड़ी दिक्कत है सब ठीक हो जाएगा।


परंतु सविता के मुंह से कराहने के अलावा एक शब्द भी नहीं फूट रहा था।


दामोदर ने सोचा कि आज इंद्रदेव भी रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं ऐसे बरस रहे हैं जैसे आज ही पूरे गांव को बहाकर ले जाने का संकल्प कर आए हैं ऐसी बरसात में दामोदर को पत्नी को अस्पताल में ले जाने की कोई राह नजर नहीं आ रही थी बस हाथ जोड़कर यही प्रार्थना ईश्वर से कर रहा था कि इंद्रदेव शांत हो जाए तो वह किसी तरह बंदोबस्त कर सविता को शहर के बड़े अस्पताल ले जाए।


सुबह होने को आ गई, परंतु इंद्रदेव का क्रोध अब तब शांत ना हुआ।

 

इसी बीच सविता की जिंदगी को काल लील गया।

फूड पॉइजनिंग हुई थी सविता को ,उसने चांट पकोड़े या बाजार में गंदी जगह पर मक्खियों से भिन भिनाती जलेबीयां नहीं खाई थीं, खेतों में उगी सब्जियां जिसमें उर्वरकों का इतनी ज्यादा मात्रा में प्रयोग कर दिया गया था कि उसका बहुत ज्यादा असर पकने के बाद भी सब्जी में रह गया था। इन्हीं केमिकल्स का शिकार हो गई थी सविता।


*****


कृषि विश्वविद्यालय से स्नातक दामोदर के खेत में जब मेहनत करने के बाद भी अच्छी मात्रा में फसल नहीं उग रही थी।

तो वह विश्वविद्यालय के प्रोफेसर के पास इस बारे में मदद मांगने गए । प्रोफेसर ने कहा कि उर्वरकों और कीटनाशकों का छिड़काव थोड़ा बढ़ा दो तो खेतों में ज्यादा पैदावार होगी। पर यह तरीका उसी के परिवार पर उल्टा पड़ गया और उसकी पत्नी उन्हीं उर्वरकों का शिकार हो गई।



यहीं से दामोदर सिंह का "पदम श्री दामोदर" बनने का सफर शुरू हुआ ।उन्होंने खेती की एक नई व्यवस्था, जिसमें किसी भी रसायन का प्रयोग नहीं होगा चाहे वह संश्लेषित माध्यमों से बना हो या फिर ऑर्गेनिक माध्यमों से,उसके स्थान पर देसी गाय के गोबर और मूत्र को मिलाकर खाद तैयार किया जाएगा। केंचुआ जिसे किसानों का मित्र कहा जाता है का उपयोग इस खेती में किया जाएगा।


 शुरू में आसपास के लोगों ने कहा ऐसा नहीं होगा तुम बिना खाद का प्रयोग किए अच्छी पैदावार नहीं कर पाओगे ।


दामोदर ने खूब मेहनत कर रसायनिक खाद का प्रयोग किए बिना ही देसी तरीकों से खेती की गुणवत्ता को बढ़ाया ,और यह देखकर सभी हैरान थे कि बिना खाद का प्रयोग किए भी अच्छी पैदावार हो सकती है। धीरे-धीरे आसपास के लोग और फिर धीरे-धीरे गांव के गांव इस खेती के गुर सीखने लगे।


 दामोदर ने वर्कशॉप आयोजित कर इस खेती के बारे में लोगों में जागरूकता को बढ़ावा दिया। 


 देसी गाय का उपयोग होने से उनको पालने वाले लोगों की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई।


 गायों के गोबर का प्रयोग खाद के रूप में इस खेती में किया जाता। 

यह खेती जैविक खेती से भी सस्ती थी क्योंकि इसमें जैविक खादों का प्रयोग भी नहीं होता था अपितु शून्य लागत से अच्छी पैदावार इस खेती के द्वारा की जा सकती थी।

 दामोदर जी ने दूसरे राज्यों में जा-जाकर इस तकनीक को बढ़ावा दिया और किसानों को विश्वास में लिया।


 खेती की इस "बिना लागत खेती" पद्धति लिए ही आज उन्हें पदम श्री से नवाजा जा रहा है।


🙏🙏



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