Nishabd zindagiya....stabdh saanse
Nishabd zindagiya....stabdh saanse
शहरों की ज़िदगी भी बड़ी व्यस्त होती है। भाग दौड़ भरी ज़िदगी ...किसी के पास भी वक्त नही होता कि दो घड़ी किसी के दुःख दर्द की खबर ले । बात हमारे शहर गाज़ियाबाद की है....
यही एक कालोनी में श्रुति और निशान्त रहा करतै है। इनकी शादी अभी करीब आठ महीने पहले ही हुई थी। उनकी शादी घर वालों की मर्जी से नही हुई थी। वास्तव में, निशान्त बिहार का रहने वाला था, जो कि यही मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट में प्रोफेसर के पद पर नियुक्त था। श्रुति के भाईयो व पूरे परिवार को निशान्त बिल्कुल भी पसन्द नही था। यही वजह थी कि श्रुति ने निशान्त से घर से भागकर शादी की और इसी बात से नाराज़ होकर उन्होने श्रुति से हमेशा के लिये सम्बन्ध तोड दिया। हालाँकि श्रुति व निशान्त ने एक दूसरे के बारे में जो भी जाना, उनके हिसाब से काफी था।
श्रुति ने सिर्फ ये जाना था कि निशान्त के परिवार में माँ बाप के अलावा एक शादी लायक बहन और एक छोटा भाई, जो की इस साल बारहवीं की परीक्षा देगा, भी था। पिताजी रिटायर्ड थे और चूँकि बुढापा था, तो आये दिन कोई न कोई समस्या लगी ही रहती थी। कभी कभार माँ की दवाइयों कि खर्चा भी लगा रहता था। कुल मिलाकर मुश्किल से ही गुजारा होता था। अब शादी हो चुकी थी तो अपने भी दस खर्चे लगे रहते थे। श्रुति ने बहुत कोशिश की थी नौकरी ढूँढने की लेकिन अभी तक नही मिली, क्योंकि उसकी पढ़ाई कुछ समय पहले ही पूरी हुई थी।
ख़ैर अब जिन्दगी धीरे-धीरे जीने की आदत हो गई थी। आज निशान्त के कालेज जाने के बाद, काम करते हुए श्रुति को अचानक ऐसा लगा कि उसका जी मिचला रहा था, तभी एकदम से उसे उल्टी होने का अन्देशा हुआ और वो बाथरूम की तरफ तेजी से भागी । उल्टी करने के बाद वह समझ गई की खुश-खबरी है। वह मन ही मन निशान्त को सरपराईज़ देने के ख्वाब देखने लगी। आज उसके पैर खुशी के मारे थम नही रहे थे। दोपहर के करीब 2 बजकर 40मिनट हो चुके थे, तभी दरवाजे की घन्टी बजी । श्रुति दरवाजे की तरफ बढ़ी। दरवाजा खोला तो देखा कि दो हवलदार दरवाजे पर खड़े थे। श्रुति बोली, जी कहिए ...क्या बात है। किससे मिलना है। हवलदार मे से एक बोला, निशान्त जी का घर यही है ना। जी यही है, श्रुति ने हाँ में गर्दन हिलाई। आपको हमारे साथ चलना होगा...साहब गाड़ी मे है। श्रुति के चेहरे पर सैकडो सवाल साफ नजर आ रहे थे। अभी आती हूँ, कहकर वह घर के भीतर गई। थोड़ी देर मे, घर को ताला लगाकर वह उनके साथ चल दी।
पुलिसकर्मियो के साथ वह जीप मे बैठ गई। जीप फर्राटे के साथ आगे बढ चली। रास्ते मे, श्रुति ने पूछा, सर क्या हुआ कुछ तो बताईये। ईंस्पेक्टर ने कहा, मैडम प्लीज घबराए ना। थोड़ा सा इन्तजार कीजिए। श्रुति की बेचैनी बढ़ती ही जा रही थी। करीब 20 मिनट के बाद, जीप को रोककर ईंस्पेक्टर बोला, आइये बाहर प्लीज़। बाहर निकल कर देखा तो सड़क के एक तरफ काफी भीड़ जुड़ी हुई थी। थोड़ी ही दूरी पर एक महेंद्रा गाड़ी काफी क्षत-विक्षत हालत मे खड़ी थी। गाड़ी से कुछ हल्की दूरी पर एक ब्लैक कलर की बाईक लगभग पूरी तरह से टूटी पड़ी थी। श्रुति का दिल अब घबराने लगा था। फिर पुलिसकर्मी उसको एक तरफ को लेकर गया और बोला, मैडम प्लीज इस लाश को पहचानिए।
लालला....लाश.....श्रुति के मुँह से निकला। जी ! हवलदार बोला। लगभग काँपते हुए हाथों से उसने लाश का चेहरा देखा तो .....उसकी आँखें फटी की फटी रह गई। उसके सामने निशान्त का मृत शरीर पड़ा हुआ था। धम्म... की आवाज के साथ वह वही पर गिर पड़ी। बेचारी के गले से चीख भी नही निकली। एकटक वह निशान्त को देखती रही, लेकिन आँखों से एक आँसू भी न निकला। सुबह का निशान्त का हँसता हुआ चेहरा उसकी आँखों मे घूम रहा था। बेचारी !!! जिसके लिए वह अपने घरवालो तक को छोड़ बैठी। वही उसको छोड़कर हमेशा के लिए चला गया। मौत को भी कम्बख्त उस पर दया नही आई। अब क्या होगा अब श्रुति का....निशान्त के माँ बाप का, जिनके बुढ़ापे का अकेला सहारा चला गया। क्या होगा उसके भाई बहन का...जो की अपने भाई पर निर्भर थे। चला गया निशान्त..... और छोड़ गया अपने पीछे कुछ "निःशब्द ज़िदगियाँ...स्तब्ध साँसे" बस इतनी सी थी ये कहानी ............! लेखक Shikha Jain