नीला भाग 1
नीला भाग 1
सुबह का कोना, बेहद खुशगवार और हरियाली से सजा हुआ कोना है,जहॉं से अपने घर के बरामदे में बैठकर नीला रोज सुबह की चाय की चुस्कियों के साथ पौधों से बात करती थी,कभी खुशी की तो कभी पौधों के दुख और कष्ट में सम्मिलित होती हुई|
आज दफ्तर जाने में थोड़ी देर हो गई थी, जल्दी से अपनी हाथ घड़ी बाॅंधते हुए वह ऑटो स्टैंड पहुॅंची, जैसे तैसे एक ऑटो से रुपए तय कर वह उसमें बैठ गई,तेज हवा के झोंको के साथ पुरानी यादों ने घेर लिया| " भैया! तेज चलाओ ,आज। बहुत देर हो गई है"नीला ने आटो वाले से कहा और ऑटो वाले ने ऑटो की गति बढ़ दी| नीला जैसे ही ऑफिस पहुॅंची, उसकी बाॅस ने उसे बुला लिया| नीला को लगा आज वह डाॅंट खाएगी किंतु कमरे में घुसते ही उसकी बाॅस ने उसे बैठने का इशारा किया और वह कुर्सी खींच कर। बैठ गई, अंदर से दिल धड़क रहा था कि न जाने क्या सुनने को मिलेगा," नीला! तुम्हारी मेहनत को देखते हुए तुम्हारा प्रमोशन किया गया है, तुम्हें हैडऑफिस मुम्बई ज्वाइन करना है , उज्जवल भविष्य के लिए शुभ कामनाएं"नीला खुश होने की जगह चिंता से घिर गई|
बाॅस के कमरे से बाहर आकर वह उधेड़ बुन में लग गई,नई जगह वह कैसे सब व्यवस्था करेगी|