निःस्वार्थ शिक्षा
निःस्वार्थ शिक्षा
सर्वप्रथम मैं यहाँ बताना चाहूँगी कि यह सत्य स्थिति पर आधारित है।
रीना और ऋतु दो बहनें रहती थी। उन दोनों में पांँच साल का अंतर था। बात उस समय की है जब पाँचवीं कक्षा में बोर्ड द्वारा परीक्षा संचालित की जाती थी। रीना और ऋतु के पिताजी की अकेले की ही कमाई पर घर का निर्वाह होता था। माँ घर में ही सारे कार्य स्वयं ही करती थी।
पिताजी राज्य सरकार के कार्यालय में कार्यरत थे। माता-पिता की इच्छा थी कि वे तो अधिक पढ़े-लिखे नहीं पर अपनी दोनों बेटियों को अच्छी शिक्षा दें ताकि वे अपने पैरों पर खड़ी हो सके।
पिताजी ने रीना का सरकारी पाठशाला में प्रवेश न कराकर प्राईवेट शाला में प्रवेश कराया ताकि उस शाला में वह सभी विषयों के साथ ही साथ एक अंग्रेजी विषय पर भी अध्ययन प्राप्त कर सके और वैसे भी सरकारी शालाओं में अंग्रेजी भाषा नहीं पढ़ाई जाती थी।
पाँचवीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा समीप आ रही थी कि अचानक ही माँ का स्वास्थ्य बिगड़ गया और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। रीना बड़ी होने के कारण माँ की देखभाल की जिम्मेदारी उस पर ही आ गई। परीक्षा नजदीक आ रही थी तो उसे मन ही मन चिंता होती थी कि वह अपना अध्ययन कैसे पूर्ण करे।
धीरे-धीरे माँ को स्वास्थ्य लाभ होने पर रीना इसी कोशिश में लगी हुई थी कि वह अध्ययन की कठिनाई किसी शिक्षक से पूछ ले और वह किसी से कुछ कह भी नहीं पाती।
परीक्षा का समय समीप ही आ रहा था। पिताजी की इतनी आय भी नहीं थी कि ट्यूशन पढ़ने भी जा सके पर वो कहते है न कि हर मुश्किल का हल भी होता है ठीक उसी प्रकार रीना को उसके शाला की एक शिक्षिका ने घर पर बुलाया और उसकी समस्या भी पूछी। समस्या का समाधान निकालते हुए उस शिक्षिका ने रीना से कहा- शाला के समय के बाद कभी भी घर आकर अध्ययन की कठिनाई पूछ सकती है। फिर तो रीना की खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा। उस शिक्षिका ने चुटकी में समस्या का समाधान कर दिया। रीना रोज पढ़ने भी जाती, उनके घर एवं साथ ही अपने सहेलियों को भी बताती। इसलिए कहते हैं कि ज्ञान बाँटने से हमेशा बढ़ता ही है और वो भी निःस्वार्थ भाव से प्राप्त ज्ञान।
खास बात यह कि उस शिक्षिका का घर भी शाला के नजदीक ही था। शिक्षिका का भी अपना परिवार था। वह शिक्षिका भी अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाने के साथ ही साथ शाला का शैक्षणिक कार्य भी पूर्ण निपुणता से जारी रख रही थी।
धन्य है ऐसी शिक्षिकाएँ जो गृहकार्य के साथ ही साथ अपना शैक्षणिक सत्र के कार्य भी पूर्ण रूप से निभा रही हैं और वो भी निःस्वार्थ।
आजकल के इस तकनीकी युग में कोचिंग क्लास हो या ट्यूशन सभी विषयों के क्षेत्र में कमाई का जरिया बन गया है और ऐसे शिक्षक या शिक्षिका मिलना कठिन है।