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Pushpa Srivastava

Inspirational

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Pushpa Srivastava

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नारी सब पर भारी

नारी सब पर भारी

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कॉलेज में न्यू सेशन चालू हो गया था। मेरा इस साल फाइनल ईयर है कॉलेज में। सीनियर हूँ मैं इस कॉलेज में। और बड़ा रौब है मेरा यहां स्टूडेंट के बीच। सभी के बीच बहुत धाक है अपनी। बोले तो जो अपुन ने एक बार कमिटमेंट कर दिया वहीच पत्थर की लकीर। दोस्त लोग तो जान छिड़कते हैं अपुन पर। अपना भी माँ के बाद सगावाला एक वहीच लोग तो हैं इस दुनिया में। बाप को तो मेरा से कोई मतलब नहीं। उसके तो जी का कंटाल है मैं। महीने के महीने नोटों के बंडल फेंक देता है मेरे आगे, उसके सिवा कोई खबर नहीं उसे। सॉरी----- सॉरी मैं अपनी मुम्बईया की लहर में बहने लग गया। वो क्या है कि मैं जरा दुखी व उदास सा होता हूँ तो मुंबईया भाषा में बोलने लगता हूँ। वरना मुझे हिंदी मातृभाषा ही अधिक पसंद है। सॉरी मैंने क्रम तोड़ दिया, तो हम कहां थे ?

हाँ, कॉलेज में न्यू सेशन शुरू हो गया था। नये-नये चेहरे जूनियर के रूप में दिखाई दे रहे थे। कॉलेज के पूरे माहौल में एक अलग सी मस्ती छाई हुई थी। हम सीनियर्स तरह- तरह के प्लान बना रहे थे जूनियर स्टूडेंट को परेशान करने के। और आपको पता है ही कि इन कामों में ये नवाबजादा तो सबसे आगे ही मिलता था। वैसे सच बताऊं आपको ! सब मुझे बिगड़ैल बाप का बिगड़ैल बेटा यूं ही कहते हैं। मैं दिल का बुरा नहीं, बस थोड़ी शरारत, थोड़ा हँसी- मजाक कर लेता हूँ सभी से। बाकी मुझ में कोई ऐब नहीं। तो कॉलेज के पहले ही दिन हम अपने दोस्त मण्डली के साथ कॉलेज के मेन गेट के पास जमा थे। आने जाने वालों को बड़े ही गौर से देख रहे थे और जैसे ही कोई नया चेहरा देखते तो हमारे शैतानी दिमाग में नए-नए आइडिया कुल बुलाने लगते। और हम उसे तब तक नहीं बख्श्ते जब तक वह हमारी उम्मीदों पर खरे ना उतरते। बेचारे जूनियर ! चेहरा रुआंसा हो जाता बेचारों का। दिल हमारा भी दुखता पर हम अपनी परंपराओं से बंधे थे, मजबूर थे, अगर हम सीनियर्स ये सब ना करते तो जूनियर्स को तो पता ही नहीं होता ना कि हम उनके सीनियर्स हैं। पूरा दिन इसी हँसी - मजाक में खुशी से बीत रहा था। इसी बीच एक सीधी-सादी घरेलू सी छात्रा (जूनियर स्टूडेंट) मेन गेट से अंदर आई। उसे देखते ही सबकी हँसी छूटने लगी। कहां इस कॉलेज में आने वाली बाकी गर्ल्स शॉर्ट्स,मिनीस्कर्ट आदि मॉर्डन कपड़े, हाई मेकअप मैं लिपी पुती वेल ड्रेस अप थी। और कहां ये बहन जी पटियाला सलवार व कुर्ते - दुपट्टे में कॉलेज आई थी।

दोस्त लोग कहने लगे," जाने दो भाई ! इसे देखकर हँसी तो आ ही रही है साथ ही दया भी, इस बेचारी को देखकर तो यही लगता है कि इसे कुछ नहीं आता।" पर मैं नवाबजादा, उसे ऐसे कैसे बख्शता ? मेरे शैतानी दिमाग में तो सबसे अधिक कीड़े कुलबुला रहे थे। मैं कह उठा," क्यों जब बाकियों ने अपना हुनर दिखाया है तो इसे भी अपनी करामात दिखाने दो।" वो लड़की मेरी ओर ऐसे ताक रही थी जैसे कच्चा चबा जाएगी। मैं सोचने लगा कि उससे क्या करवाया जाए ? फिर मैंने अपने दोस्तों से कहा कि वेस्टर्न सॉन्ग लगाओ, उस पर ये मोहतरमा डांस परफॉर्म दिखाएंगी। वो लड़की व सभी लोग मुझे ऐसे देखने लगे जैसे मेरे सर पर अचानक सींग निकल आए हो। अचानक वो लड़की बोल उठी," मैं तैयार हूँ, पर मेरी एक शर्त है। मैं आपका कहना मान कर ये डांस करने की कोशिश करती हूं। पर अगर मैं आपकी उम्मीदों पर खरी उतरती हूं, सबको मेरा डांस पसंद आता है, तो आप के कप्तान (मैं नवाबजादा ) को भी मेरी एक शर्त पूरी करनी होगी।" सभी एक बार तो सकते में आ गए कि आज तक ऐसे बात करने की किसी की हिम्मत नहीं हुई मुझसे, फिर आज कैसे ? सभी दोस्त लोग मेरा मूड व मेरा गुस्सा जानते थे तो सभी अनिष्ट की कल्पना से डर रहे थे। मैं शांत था। मुझे पता था कि वह मेरी दी हुई शर्त ही पूरा नहीं कर पाएगी तो मैं निश्चिंत था।

मैंने कहा," ठीक है, पहले तुम ये शर्त पूरा करो। आगे की बाद में देखेंगे।" भाई लोगों ने वेस्टर्न सॉन्ग चालू किया और वो लड़की इतना परफेक्टली वेस्टर्न डांस करने लगी कि सबकी आँखें चुंधियाने लगी। पूरी कॉलेज के सामने उस लड़की ने तो अपनी शर्त पूरी कर ली। अब सभी की आँखें मेरे चेहरे पर टिक गई। और वो लड़की चुपचाप वहां से चली गई। सबने सोचा कि भाई से ( मुझसे ) डर गई इसीलिए चली गई। चलो अच्छा है वो बिना समझाये ही समझ गई। नहीं तो बहुत बुरा होता। हम सभी भी अपनी झूठी जीत पर खुश होते हुए अब कॉलेज से बाहर चल दिए। देर रात तक अपनी ख़ुशियों का जश्न मना कर हम सभी गहरी नींद के आगोश में कब चले गए कुछ पता नहीं। अगली सुबह आँख खुली तो जल्दी - जल्दी तैयार होकर फिर से कॉलेज के लिए निकल पड़े। कॉलेज पहुंचे तो सभी की निगाहें हमारे ऊपर ही जमी हुई थी। हमारी समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि माजरा क्या था ? जैसे ही कॉलेज के रिसेप्शन हॉल तक पहुंचे, तो सामने वॉल पर पोस्टर देखकर हमारे तो होश ही उड़ गए। वॉल पर हमारे नाम का फोटो सहित पोस्टर चस्पा था। जिस पर लिखा था," शहर के मशहूर गोगा पहलवान से सांय 7:00 बजे मेरा ( नवाबजादे का ) दंगल मुकाबला था।" पोस्टर देखते ही इस नवाबजादे के चेहरे से हवाइयां उड़ने लगी। मुकाबला वो भी गोगा  पहलवान से, मैं ---- मैं क्या ? मेरे पुरखों ने कभी पहलवानी नहीं की, तो मैं गोगा पहलवान के सामने चीज ही क्या हूँ ? पोस्टर के पास ही वही वेस्टर्न डांस करने वाली लड़की खड़ी- खड़ी मुस्कुरा रही थी।

मुझे सब समझ आ गया। ये सब कारस्तानी इसी लड़की की है। पर वो कहते हैं ना,"आ बैल मुझे मार " ये सब मेरा ही तो किया धरा था, तो अब कुछ नहीं हो सकता था। पूरी कॉलेज के सामने मेरी इज़्ज़त का सवाल था, तो मना नहीं कर सकता था। बस एक बात का दुख था कि मुकाबला बराबरी में नहीं था। एक तरफ मशहूर गोगा पहलवान तो दूसरी तरफ पापड़ पहलवान, जिसे पहलवानी का एक पैंतरा तक नहीं आता वो गोगा पहलवान से मुकाबला करेगा। सोच कर ही दिल डूबने लगा। और शाम को वही हुआ जिसका अंदेशा शुरू से ही था। गोगा पहलवान जी ने अपना एक ही पैंतरा हम पर चलाया और हम चारों खाने चित्त। अब लेटे हैं सप्ताह भर से अस्पताल में, अपने टूटे हुए जबड़े व पूरे शरीर की हड्डियों की मरम्मत कराते हुए। गोगा पहलवान जी ने एक ही वार में पूरे शरीर की हड्डियाँ चूर- चूर कर दी। अब तो हमने तौबा कर ली है जूनियर स्टूडेंट ही क्या ? अब तो किसी से भी शरारत, हँसी - मजाक नहीं करेंगे। खासकर गर्ल्स से तो ये नवाबजादा कभी भी पंगा नहीं लेगा, कसम से।



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