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Pushpa Srivastava

Inspirational

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Pushpa Srivastava

Inspirational

इज्जत

इज्जत

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आज स्टेज पर सबके सामने इतना बड़ा सम्मान पाकर खुशी तो बहुत हो रही है कि ये वही समाज के प्रतिष्ठित सम्मानित लोग हैं जिन्होंने मुझ विधवा को अपमानित किया था। समाज को कलंकित करने का गलत लांछन लगाकर मुझे समाज से बहिष्कृत कर दिया था। ये वही लोग हैं जिनके कारण मुझे अपने मां-बाप, भाई-बहन व अपने गांव को हमेशा - हमेशा के लिए अलविदा कहना पड़ा। पर अब इतने वर्षों बाद यह बात कोई मायने नहीं रखती। मैं जानती हूं मेरे मां-बाप, भाई-बहन सब मुझसे कितना अधिक प्यार करते हैं।

उन्होंने मुझे उस कठिन घड़ी में अकेला नहीं छोड़ा। मुझ पर विश्वास किया और मेरा साथ देने के लिए उन्होंने अपने इस प्यारे गांव को हमेशा के लिए छोड़ने का फैसला कर लिया था। पर मैं इतनी स्वार्थी नहीं हूं कि पापा के मेहनत से खड़े घर - परिवार व कारोबार को चौपट कर दूँ। अपने भाई - बहन को बेघर कर दूं। इतनी बेगैरत नहीं मैं। अपने आप को कष्ट पहुंचा सकती हूं, पर अपने परिवार को नहीं। मेरे मम्मी - पापा व भाई-बहन ही तो है मेरे लिए सब कुछ। जिन्होंने मुझे उस कठिन वक्त में संभाला, जब मैं पूरी तरह से अकेली हो गई थी।

दिल में तो अभी भी रिक्त स्थान ही है उस खास शख्स के लिए। जो कभी मेरा सोलमेट हुआ करता था। एक वही था जिसे मैं अपने मन की, घर - परिवार की, सब की, सब तरह की या यूं कहे कि दुनिया जहां की सब बातें मैं एक उसी से ही साझा करती थी। कुछ ही वर्षों की जान पहचान ने दोस्ती का वह गहरा रिश्ता बना लिया था, एक दूसरे के मन में, जो आज तक भी टूट नहीं पाया है। हाँ पर इस गहरी दोस्ती ने बहुत चोट खाई है इस प्रतिष्ठित समाज से। बहुत से लांछन व अपमान सहे हैं हमारी इस दोस्ती ने। मुझ विधवा से दोस्ती का रिश्ता रखने पर इस समाज के ठेकेदारों ने हमारी दोस्ती पर बदनुमा दाग लगा दिया। मेरा प्यारा दोस्त यह सह ना सका और मेरी बेहतरी के लिए मुझे छोड़कर हमेशा - हमेशा के लिए मुझसे दूर चला गया। पर समाज को अभी कहां चैन था ? दोस्त के जाने के बाद वे मेरे पीछे हाथ धोकर पड़ गये। समाज की झूठी इज्जत बढ़ाने के नाम पर उन्होंने मुझे अपने समाज से बहिष्कृत कर दिया।

पापा ने सबको कितना समझाया, पंचों के आगे कितनी मिन्नतें करी, पर सब व्यर्थ। गांव में मेरे रहने से गांव की समाज की इज्जत कम हो रही थी शायद। तो मुझे गांव छोड़कर जाना निश्चित कर दिया गया। अकेली मैं कहां जाती ? ससुराल वाले तो पति के जाने के बाद सब रिश्ते भुलाए बैठे थे। मम्मी - पापा के सिवा कोई सहारा नहीं था इस भरी दुनिया में। पर यहां सब मुश्किल था, गांव वालों को समझाना। तो मजबूरन पापा मुझे अपने मित्र के पास यहां शहर लेकर आ गए। डॉक्टर अंकल की मदद से आगे की योजना बनाई गई। एम .बी . बी .एस की पढ़ाई के लिए कॉलेज में एडमिशन दिलाया और मेरे रहने के लिए लेडीज हॉस्टल चुन लिया गया। पापा मेरी बाकी जिम्मेदारियां डॉ. अंकल को सौंप कर, बहुत दुखी मन से गांव के लिए रवाना हो पाए। मैं समझती हूं अपनी बेटी को शहर में अकेला छोड़ना कितना मुश्किल था उनके लिए। पर इसके सिवा कोई चारा भी नहीं था।

इसलिए हम सभी मजबूर थे। पहली बार यहां अनजान शहर में परिवार से दूर हॉस्टल में अकेला रहना बहुत मुश्किलों भरा था। मम्मी-पापा, भाई बहन कोई भी नहीं था पास में जिससे मन लगता। उस समय तुम बहुत याद आए मेरे दोस्त। एक तुम ही तो थे जिससे मैं अपने दिल की हर बात शेयर करती थी। हर सुख - दुख, हर खुशी सब तुम ही से तो मैं बांटा करती थी। पर देखो! इस समय जब मुझे तुम्हारी वाकई में जरूरत है तो तुम ही इस दुनिया की भीड़ में ना जाने कहां खो गए। अब तुम ही कहो मेरे सुख - दुख की बातें मैं किससे कहूं ? ऐसा कौन है जो बिन कहे मेरी हर बात समझे ? कोई तो नहीं है मेरे पास। देखो मैं कितनी अकेली हूं आज। बस तुम्हारी याद ही मेरा सहारा बनी हुई है। अब तो तुम्हारी यादों को ही मैंने अपना साथी अपना दोस्त बना लिया है। और अपने साथ हुए अपमान को भूल कर, मन को कड़ा करके, पूरे जी-जान से एम.बी.बी.एस की पढ़ाई के लिए जुट गई थी।

उसी कड़ी मेहनत का नतीजा है कि अच्छे मार्क्स आने पर प्रैक्टिस के लिए शहर के सबसे बड़े हॉस्पिटल में मेरा चयन हुआ। पन्द्रह वर्ष हो गये हैं मुझे घर - परिवार से दूर रहते हुये। इतने वर्षों गांव से मेरे दूर रहने पर गांव व समाज की इज्जत कितनी बढ़ी ये तो मुझे पता नहीं। पर आज इस अनजान शहर ने मुझे जरूर इतना नाम, पैसा, इज्जत व शोहरत दी है कि गांव द्वारा किए गए अपमान की यादें धुंधला जरूर गई हैं। कभी था मेरे लिए ये अनजान शहर पर आज मेरा ये अपना शहर है। आज मैं इस शहर की सबसे बेस्ट सर्जन हूँ। आज गाड़ी, बंगला, इज्जत सभी कुछ है। अपने प्राइवेट हॉस्पिटल का काम भी इस साल के अंत तक पूरा हो जाएगा। शायद नए साल की शुरुआत में ही इस नये हॉस्पिटल का उद्घाटन हो जाएगा।

हां दुबारा घर बसाने का ख्याल मेरे दिमाग में कभी आया ही नहीं। तो आज भी मेरा घर - परिवार, मेरे मम्मी-पापा व भाई बहन से ही है। इतने सालों बाद अब सब कुछ सही होने लगा है। पर ना जाने ऐसा क्या है कि दिल में कुछ चुभता है। गांव व समाज को तो मैंने कभी का माफ कर दिया था। पर ना जाने यह कौन सी तकलीफ थी ? जो अंदर ही अंदर मुझे घायल कर रही थी। रह-रहकर टीस सी उठती थी कभी - कभी। पर मैंने इसे नजरअंदाज कर दिया। अभी कुछ समय पहले ही समाज के लिए अच्छा कार्य करने पर, मुझे देश का सर्वोच्च इनाम दिया गया है सरकार की तरफ से। सब तरफ आजकल इसी के चर्चे सुनाई दे रहे हैं। और आज तो अपने गांव के सरपंच जी को अपने सामने देखकर तो मुझे बहुत ही आश्चर्य हुआ।

मेरे सम्मान में उन्होंने गांव में आज शाम को बहुत बड़ा आयोजन रखा था,उसी के लिए निमंत्रण देने आए थे वे। मैंने गाँव आने की उनको तो हां कर दी, पर ना जाने मन अंदर से बेचैन लग रहा था। पूरे 15 वर्ष हो गए हैं मुझे गांव से दूर रहते हुए। तो थोड़ा अजीब लग रहा था कि गांव जाऊं या ना जाऊं। फिर सहसा दिमाग में एक विचार कौंधा कि गांव जाकर मुझे जरूर देखना चाहिए कि मेरे जाने के बाद गांव की इज्जत कितनी बढ़ी ? मैंने जल्दी-जल्दी कुछ जरूरी तैयारियां शुरू कर दी गांव जाने के लिए। जल्दी से मार्केट जाकर मम्मी पापा व भाई बहन के लिए गिफ्ट व कपड़े खरीदे। और तुरंत गाड़ी में बैठकर रवाना हो गई गांव की उन जानी - पहचानी गलियों की ओर। गाँव पहुंचते - पहुंचते 15 वर्ष पूर्व वाली सब बातें, यादें चलचित्र की भांति मेरी आंखों के आगे घूमने लगी। दिल बेचैन था, पर अब वे सब बातें यादें बन चुकी थी।

मैंने भी अपना मन कड़ा किया और पहुंच गई आयोजन वाले स्थान पर। गाड़ी से जब मैं बाहर निकली तो देखा सामने मम्मी-पापा, भाई-बहन, पंच, सरपंच व गांव वाले सभी मेरी ओर निहार रहे थे। मैंने देखा पापा व मम्मी की आंखों में खुशी के आंसू झिलमिला रहे थे। मैंने मम्मी व पापा के पैर छुए तो उन्होंने मुझे सीने से लगा लिया। आज बहुत खुश थे वे, उनकी बेटी ने अपना व उनका इतना मान बढ़ा दिया था कि सबकी आंखें विस्मय में थी। मुझे सामने देखकर उन्हें बहुत खुशी हो रही थी। आज इतने वर्षों बाद उनकी बेटी,उनके पास, अपने गांव आई है।

सरपंच जी व गांव, समाज के लोग मुझे अपनी नजरों से देख जरूर रहे थे पर उनकी नजरों में शर्म का पानी भी साफ दिखाई दे रहा था। मैं सबके बीच से होती है जब स्टेज पर पहुंची तो देखा सब मेरे सम्मान में तालियां बजा रहे थे। मैंने चारों तरफ अपनी नजरें घुमाई , पर मुझे गांव की इज्जत उतनी ही लगी, जितनी मेरे यहाँ रहने पर थी। इज्जत की मात्रा बढ़ी हुई नहीं लगी।

तभी स्टेज पर सरपंच महोदय ने आकर मुझे शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया। और कहने लगे कि "आज सही मायने में हमारे गांव की इज्जत बढ़ी है। हम मूर्ख गांव वाले असली हीरे की कीमत इतने साल समझ ही नहीं पाये, इसका हमें बहुत अफसोस है।" सरपंच जी पहले के व्यवहार के लिए पूरे गांव व समाज की तरफ से क्षमा मांगने लगे।पूरा आयोजन अच्छे से संपन्न हो गया था।

रात को जब मैं पूरे घटनाक्रम के बारे में विचार कर रही थी तो मेरे दिल की वो टीस, वो चुभन सब गायब थी। शायद मेरे दिल ने भी सभी को दिल से माफ कर दिया था।


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