Akanksha Gupta

Drama

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Akanksha Gupta

Drama

मूर्ति

मूर्ति

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आज जब रचना घर लौटी तो उसने देखा कि उसके घर के बाहर लोगों की भीड़ जमा हो गई थीं। भीड़ को पार करते हुए जब वो घर के सामने आई तो उसके होश उड़ गए। उसके घर के दरवाजे पर लटका हुआ ताला टूटा हुआ था। वो घबरा कर घर के अंदर गई तो उसकी दुनिया ही उजड़ चुकी थीं।

उसकी ग्यारह साल की बेटी शीनू की लाश पलँग पर पड़ी हुई थीं और उसके शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं था। सारा घर में उथल पुथल मचाई गई थी। शीनू के शरीर पर चोट के निशान थें। मोहल्ले के कुछ बदमाशों ने शीनू के साथ दुष्कर्म करके उसकी हत्या कर दी थी।

पुलिस ने आकर शीनू की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया था। रचना सिसक कर रह गई। उसने किसी से कुछ नहीं कहा। वो जानती थी कि उस जैसी औरतो के लिए समाज की सोच शायद ही क़भी बदल पाए। आज इसी सोच की वजह से किसी ने एक बार कोशिश भी नहीं की होगी शीनू को बचाने की।

रचना अपने अतीत में झांक कर ज़िंदगी के पन्ने पलट कर देखने लगी। उसके माँ-बाबा गांव में ज़मीदार के खेत में मजदूरी करते-करते अपनी ज़िंदगी गुज़ार रहे थे। सिर पर तीन-तीन बेटियों का बोझ उठाये उनकी क़मर टूटने लगी थीं। उन्होंने बड़ी मुश्किलों से गीता को शहर में नौकरी के लिए एक आदमी के साथ भेजा था ताकि उसकी तनख्वाह से ज़िंदगी थोड़ी सी आसान हो जाए। गीता भी ख़ुशी-ख़ुशी अपने परिवार की मदद करने के इरादे से शहर आ गई।

यहां आकर उसे घबराहट होने लगी। फिर दो दिन बाद उसे एक अजीब सी ज़गह पर नौकरी मिली जहाँ पर उसे पता चला कि उसके माँ-बाबा ने अपना बोझ हल्का करने के लिए उसे बेच दिया हैं।

इस सच को जान लेने के बाद गीता की हिम्मत बिल्कुल ही टूट गई। उसने अपने खरीदार के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। उसका शोषण होता रहा और एक साल बाद उसकी एक बेटी हो गई। कुछ सालों बाद उसे उसकी बेटी के साथ एक ऐसी ज़गह बेचा गया जहां उसके ख़रीदार बदलते रहे। उसने अपनी बेटी को बड़ी ही मुश्किल से बचाया था।

फ़िर एक दिन उसे इस दलदल से निकाल लिया गया और नया नाम दिया गया रचना। इस नाम के साथ उसने अपनी नई ज़िन्दगी शुरू तो की लेकिन उसके अतीत ने उसका पीछा नहीं छोड़ा। उसकी पहचान सामने आई तो यह सभ्य समाज उसका दुश्मन बन गया। सब उसे और उसकी बेटी को उसी दलदल में भेजना चाहते थे और जब उसने इस बात से इंकार किया तो आज उसे ना भरने वाला ज़ख्म दे दिया।

औरत का जीवन भी अज़ीब हैं। मूर्ति बनाकर पूजा तो की जाती हैं लेकिन एक ज़िंदगी को अहमियत नहीं दी जाती।


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