मूल से ब्याज प्यारा

मूल से ब्याज प्यारा

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दादी की तबियत सुबह से नासाज़ है। घुटनों मे दर्द, कमर अकड़ी जा रही,और हरारत भी लग रही है। बिस्तर से उठने का जी ही नही हो रहा। तभी आवाज़ आई-- "दाssssदी,सरप्राइज" दादी चिहुंक कर उठी। दरवाज़े पर दोनो पोतियाँ क्रमशः तीन और साढ़े चार साल की थी, अपनी माँ की ऊँगली थामे खड़ी थी। दादी के आँखो की चमक, चेहरे की दमक देखते ही बनती थी। सूरज एक नई सुबह ले आया था। घर बच्चों की धमाचौकड़ी से गुलज़ार हो गया। कहाँ का घुटना, कहाँ की हरारत, सब छूमंतर। "दादी हाईड सीक खेले" "दादी अटकन,चटकन खेलेंगे" "दादी चेयर रेस" "हाँ दादी चेयर रेस" छोटी चहकी आनन फानन मे दो चेयर लग गई ,पूजा घर की घंटी दादी के हाथ मे। जब तक घंटी बजती दोनो ही दो चेयर के इर्दगिर्द दौड़ती,और घंटी रुकते ही दोनो चेयर पर बैठ जाती। हारना किसे है जी।बारी बारी से फ़र्स्ट, सैकेण्ड। दादी का हँस हँस कर बुरा हाल। "दादी हलुआ खिला दो न" "नहीं मम्मी नहीं, दादी बनायेगी।" "मम्मी का अच्छा नहीं लगता" ओहो बहुत बढ़िया प्यारी दादी। और दादी के दोनो गाल पर प्यारी, हलुए की तरह मीठी चुम्मी की सील लग गई। निहाल हो गई दादी। "दादी रेबिट ,कछुए की कहानी सुनाओ"" "अब सिन्ड्रेला की" "प्लीज दादी ,बस एक और,लास्ट। शाम घिर आई। पोतियों का लौटने का समय हो गया। "दादी हम ये गुड़िया ले जाएं " "मैं भी ये वाली" दादी ने देखा बहुत पुरानी उनके हाथों की बनी कपड़े की गुड़िया लिये खड़ी है दोनो। दादी का दिल भर आया। इतने महँगे खिलौनों से खेलनी वाली इन बच्चियों को पसंद आया तो क्या, मेरे हाथों से बनी पुरानी गुड़िया। सिर हिला दिया दादी ने। उझल पड़ी पोतियाँ। "बाई बाई दादी,सी यू,आप आना,"फिर प्यारा सा फ़्लाइंग किस। दादी अंदर आ ,सोफे पर लेट गई। ओह ये मरा घुट्ना,फिर कसकने लगा। थोड़ी हरारत भी लग रही है। दिन भर कहाँ छुपे रहे ये दर्द। शायद बच्चों की ख़ुशियों ने समेट लिया था। इसीलिये कहते है मूल से ब्याज प्यारा होता है।


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