मनाचे चोचले
मनाचे चोचले
मै अपनी नई कंपनी चलाने के लिए शहर से गांव गया था। गांव में मेरे सारे रिश्तेदार मुझे देखकर हैरान रहते थे कि यह इन्सान ईतना अमीर होकर भी कितना दयालू और अपने गांव के प्रति लगाव रखने वाला है। मैंने अपनी जिंदगी शहर के कामों मे गुजारी लेकिन सुकून के लिए गांव चला आया लेकिन यहां तो मेरे सुकून को छिनने का बढ़िया इन्तजाम कर रखा था। गांव वाले जब मेरी उम्र के थे तब हम में बहोत सारा प्यार होता था। आजकल प्यार का परिवार मे बदलाव होकर वोह अब संसार मे समा गया था।
मै भी अपने कामों से ज्यादा और किसी और चिज पर ध्यान देना पसंद नही करता ऐसा नही था,लेकिन लोग ईतना ध्यान बटाने कि कोशिश कर सकते हैं यह मैंने अपनी जिंदगी में कभी नही देखा। मेरा नसीब अच्छा था जो गांव के बाहर काम मिलने कि वजह से मैं बडा बन पाया,लेकिन मेरा बर्ताव देखकर गांववाले मेरे कामों से ज्यादा मुझे एहमियत देने लगे थे। इसकी वजह क्या हो सकती है मैं आज तक नही समझ पाया। मैंने अपनी उम्र जिस काम को अपनी लक्ष्मी का रूप मानकर करता रहा। वहां गांव के मेरे चचेरे भाई का लडका सचिन किसी गुन्हगारों की गैंग का हिस्सा था,मै और गांववाले सचिन को कई बार पोलिस की गिरफ्तारी से छुडाकर खिला पिला रहे थे।
सचिन ने एक बार अपने स्कुल मे फीस न भर पाने कि वजह से उसे ईग्झाम मे नही बिठाया जा रहा उसे युनिवर्सिटी ने फिस अदा कर अपना हाॅलटिकट लेकर ही एग्जाम देने के लिए ऐसा सुझाया तो था लेकिन उसने टीचर्स को डुपूलीकेट हाॅल टिकट दिखाकर सचिनएग्जाम पास कर गया। सारे टीचर्स के सामने सचिन ऐसै पेश आता है,जैसै मानो उसने दुनिया जीत ली हो।
उस के बाप ने अपनी जिंदगी गांव की और घर की भलाई कि लिए लगाई,जिसने मुझे और अपने घर वालों को कभी दुःख नही पोहचाया आज उसका लडका कुछ पैसो के लिए गधो के जैसा काम करवा कर हम पर तो कोई रहम नही कर रहा था। सारे गांव मे तालुकदार ने ऐलान किया कि यह लडका जिस घर मे जायेगा उनका अच्छा खासा भाग्य बदल कर पता नही क्या होगा।
मै उसका चाचा था मैं कब से देख रहा था,सचिन न खुद चैन से रह पा रहा था ना किसी को रहने दे रहा था। लोग अपनी मनमानी बताये जा रहे है वोह और उसका बाप उनकी डिमांड पर सारे काम करते जा रहा था।स्कूल काॅलेज ने उसे क्या उस के पिताजी को तक नौकरी से निकालने कि गंदी करतूत करना शुरू किया। स्कुल के प्रिन्सिपल को पता चला कि इसने काॅलेज को धोका दिया है,लेकिन प्रिन्सिपल जानते थे कि उस के पिताजी बडे अफसर थे,तो उस की कंप्लेंट काॅलेज के संचालक से करेंगे तो वोह उसे नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा,जो कि वोह बडे शरीफ थे इसलिए जिन्होने कभी बडे छोटे का फर्क नही किया शिक्षा और स्कुल काॅलेज कि भलाई के लिए जिन्होने अपना जीवन समर्पित किया उन के जीवन मे यह आलम खोर सचिन के आने बाद काॅलेज मे मानो वैशीयत का माहोल बन गया था,सचिन ने स्कुल के पास रहने वाले गुन्हेगारों मे मिलकर बाकायदा शराब पोहचाने का धंदा सुरू किया, और तो और उसने ड्रग्स नकली दवा और और स्कुल काॅलेज के अंग्रेजी पाठकों के साथ अपनी मातृभाषा प्रति का प्रेम जगाने के लिए काॅलेज के पाठकों को गुमराह करने से लेकर, घर वालो को गुमराह करने तक के काम शुरू किये। गांव वालों ने उसे नौकरी लगाई लेकिन उस कि वजह जे बाकी भाई भी अपनी पढाई कर न पाये पिताजी इसे ठिक करने के लिए रोज सचिन का बडा ख्याल रखा करते थे। सारे रिश्तेदारों ने मिलकर सचिन को ऐसै तैसे काम पर लगाया, लेकिन सचिन को काम पर वहां के लोगो का काम कुछ गलत लगने लगा,उसे जितना अच्छा सुझाव दे वोह उतनाही बुराई पर उतर आने लगा।
सचिन को घर से मिली सिख की वजह से अब वोह बुरे काम छोडकर काम पर जाने लगा था लेकिन वहां भी गैंग के सदस्यों ने उसके साथ धोकादरी करना शुरू किया। तो सचिन अपने पिताजी कि किस किस उम्मीद को तोड कर काम करे ऐसा उल्टा सोचकर कंपनी ही छोड कर भाग जाने लगा। अब घर तो पुरा बेरोजगारी से भरा बेरोजगार महल बन गया।
मैं और मेरे कुछ दोस्त उनकी सहायता करते थे,ताकि वोह और उसके पिताजी कुछ चैन से जी सके तो यह हमारे पीछे पड जाता और क्या बतायें गांव मे खेती करने के लिए कहीं तो खेती से निकला पैसा भी वोह शराब खाने मे उडाने लगा। तो गांव वाले उसे गांव में भी काम नही देते थे ऐसा नही बस उसकी शराब छुपाये कर के उसे पैसै नही देते थे।
अब बहोत बार मैंने दूर से ही नतीजा निकाल कर तय कर लिया कि वोह अब शराब नही पिता न तो कोई बुरा काम करता हैं, गांव के मुखिया से पुछ मैंने उसे काम पर लगवाया। लेकिन जैसे जैसे काम मे बढोतरी होने लगी वोह हमारे कंपनी मे हडताल करवाने लगा। मै नया नया अपनी कंपनी चलाने के लिए और अपनी जिम्मेदारी समझकर ऐसे लडको को काम देता था,लेकिन यह लडके थे हम कुछ और ही समझते है, सचिन तो अपने गंदी हवस का अंधा था, वोह काम के बहाने बताकर मेरे भाई से अपनी शादी करवाने कि लिए परेशान करने लगा; कंपनी कि औरते तक छेडने लगा, सडक पर से संस्कारी लडकियाँ गुजरती है,उन्हे परेशान करने लगा,कोई लडकी उस के झांसे मे नही फसली देखकर उस ने मेरे पैसों के लिए धिडोरे लगाने शुरू किये,यह जब मैंने मेहसुस क्या अपनी कानो से सुना अपनी आँखो से देखा तब भी सचिन के चेहरे पर कोई शर्म नाम कि चिज नहीं थी।
वोह कंपनी से निकल कर घर मे मेरे बारे मे बुराई कर घर वालों के जज़्बातों का फायदा लेकर मुझसे पैसा निकलवाने कि कोशिश करने लगा , उसके पैसो के लालच ने उस कि ऐसी गंदी नियत ने उस के बाप कि खुदखुशी करवा ली, मैंने उसकी चालाकी देखकर उसे घर पर ही रहने कि सलाह दी तो,वोह कुछ दिनो बाद मुझे फोन पर से धमकाने लग गया कि ना तो मेरा काम करेगा ना होने देगा, लो कर लो बात अब मैं ऐसै घटिया संस्कारों को साथ मे रखूंगा तो मै कौनसा सन्यासी कहलावुंगा।
जिस जिसको मैंने बेचारा समझकर मदत करनी चाही सब मेरे खिलाफ हो गये। मेरे भाई का घर सुधरे कर के उसे नौकरी दी, कंपनी में जगाह दी, और क्या चाहिए ऐसै लोगो को ठिक से काम तक दिये लेकिन यह सचिन था जो अपनी हरकतो से बाज नही आ रहा था, इसे सब भारी बोझ लगता था, मैंने उसकी माँ से बताकर उसे शराब खाने से दूर रखने के लिए अस्पताल मे इलाज तक न करवाने का इन्तजाम कर दिया मैंने भी उसके हाथ में पैसा रखना बंद किया। क्या पता कल पैसै लेकर किसी और की जिंदगी बसाना छोडकर उसकी जिंदगी बर्बाद न कर दे। वोह तो अब पोलिस वालों को भी रिश्वत खिलाकर मेरे खिलाफ कुटील डांवपेंच रचने लगा।
थानेदार के फोन आने पर मैंने उसे फोन कर पूछा कि क्या प्रॉब्लम है जो ईतना परेशान कर रहे हो सारे गांव वालों को । तो उसने मुझे बताया कि अब वोह हम पर यकीन नही करता हम कब से उसे काम बताये जा रहे है, लेकिन हम उसका ध्यान नही रख रहे। अब तो वोह बेशर्मो कि तराह
शादी करवाने कि मांग करने लगा। बार बार फोन करने लगा तो मैंने उसे साफ साफ बताया कि अगर उसने शादी करना ही है तो अपने साथ जिसे उसे शादी करनी है उसे ले आए, तो सचिन ईतना प्यारा किस्सा किया वोह सुने के बाद तो हँस पाओगे,उसने अपने घर से कहां लडकी ढुंढ कर उसने वेबसाइट पर दिये झुठे जाहिरातों मे से लडकिया के नंबर निकालकर उन्हे देशभर मे मिलने जाने लगा। वोह भी फोकट कि पैसेंजर की बोगी मे बैठकर, वहां कोई लडकी उसका साथ नही दे रही तो दूसरी को पूछता दुसरी मना करे तो तीसरी को पूछता तीसरी मना करे तो चौथी को पूछता ऐसा करते करते वोह इंडिया कि शहरों का चक्कर लग आया और एक दिन फिर से वेबसाइट से नंबर निकालकर अन्य संस्कृती कि लडकियों को अपने चक्कर मे फसाने के इरादों से घूममता रहा लडकिया क्या चालीस दिन से गांववाले इसे गांव मे ढूंढ रहे थे लेकिन इसका कोई पता नही हर गांव राज्य मे जाकर अपना मुंह काला कर आता, खुद अपनी मुंह पर काली पोतकर भी उस मे शर्म नाम कि कोई चीज नही थी। मैं तो उसे बहलाने के लिए कह दिया था तो उसने ठाण ही लिया कि अब वोह वैसा ही करेगा। और पागलों कि तराह कहीं भी फोन कर लडकियां क्या लडकियों के बाप से तक मिलकर अपनी शादी कि बात करने लग गया, लोग परेशान होने लग गए, इसका कोई इलाज नही हो सकता, अब यह हमे चैन से जिने नही देगा।
फिर भी मैंने अपने हृदय को बडा छोटाकर उसे इजाजत दिया लेकिन उसकी किस्मत में किसी का प्यार नहीं था ऐसे घटिया लडको को कौन सी लडकी लव करेगी उससे भी ज्यादा घटिया किस्म की नियत वाली लडकियों के पिछे वोह पागलों कि तराह घूम रहा था, जिसे इसका अच्छा इरादा भी गलत लग रहा था। लेकिन सचिन लेकिन सचिन कलाबाजी कर लडकियों मे से अब एक क्रिश्चन लडकी अपने साथ लेकर मेरे घर पहुंचा , मैंनै उसका हुलिया देखा तो वोह पूरा पागल बन चुका था,मुंह पर दाढी,लंबे बाल, लेकर मेरे पास आया और साथ में एक सुन्दरी लेकर आया अब मैंने भी झुठा हँसकर उसे घर मे जगह दी , जय हो भाई कि और उस के लडके कि करतूत। मैं ठहरा इनकी जमात और गांव का अब मै सचिन और उसकी घरवालो से बैगरत बनी बिवी को निवाला खिला रहा हुं। भगवान भी अजीब अजीब रिश्ते बनाता है बनाता है लेकिन रिश्तो मे अक्कल नाम कि चीज नहीं भरता। तब से लेकर आज तक सचिन कि घरवाली कंपनी चलाती है और सचिन घर में दोस्तो को लेकर जुआ खेलता है और शराब पीता रहता है।
" जिंदगी कहीं भी हो,जीने का हुनर आना चाहिए लेकिन क्या बदकिस्मती किसी की किस्मत को ही जहर देना चाहिए।"
