मन की गीता
मन की गीता
गीता को समझ पाना और उसकी गहराई मे उतरना तो शायद ही किसी के लिए संभव है,परंतु इसके अध्यन मात्र और ज्ञान से अर्जुन भांति मन की समस्त वेदना,प्रश्न का निवारण हो गया,मेरे जीवन मे भी गीता का प्रभाव अत्यंत सुखद रहा है, जिस प्रकार श्री कृष्ण स्वयं सारथी बनकर अर्जुन को राह दिखा रहे थे, उसी प्रकार कलयुग मे उनके द्वारा कहीं गई यह गीता,मानव जीवन मे किसी सारथी से कम नहीं।
गीता को अगर मे अपनी निज बुद्धि से समझूँ या उसका निष्कर्ष निकालूँ, तो मेरा जीवन भी किसी कुरूक्षेत्र की रणभूमि से कम ना थी, जहाँ एक और सामाजिक और पारिवारिक दायित्व का बोझ था,तो एक और अपने सपनों को साकार करने की अभिलाषा, परंतु सामाजिक नकारात्मकता के कारण जीवन का कोई सुखद अनुभव आज तक भाग्य मे नही था, उस पल मेरे भीतर भी अर्जुन के समान असंख्य सवाल थे, कि मेरे ही साथ ऐसा क्यूँ।
फिर जब गीता को समझा तो जाना की परिस्थिति को समझना और उसकी संवेदना को समझकर ही बढ़ना जीवन दर्शन है, यहाँ कर्म ही सर्वोपरी ही,परंतु मानवता का सहयोग अत्यंत आवश्यक है।
जीवन पथ पर उचित अनुचित का अंतर करना, सही मार्ग और सत्य बोलने के लिए निर्भीक होकर आगे बढ़ना चाहिए, और कभी कोई भी विकट समस्या हो, उसका सामना करना चाहिए,मौन हर वक्त होना भी कोई साहसिक कार्य नही अपितु मुशकिलो से भागने समान है।
तो इसलिए जीवन मे उस परमेश्वर के द्वारा दी गई इस सीख का सदा ही अनुसरण करना चाहिए, और अपने साथ साथ अपने परिवार और समाज का उत्थान करना चाहिए।