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Akanksha Gupta (Vedantika)

Drama

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Akanksha Gupta (Vedantika)

Drama

मन के मोती

मन के मोती

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आज सुनंदा बहुत खुश थी क्योंकि आज उसके घर मे किसी नन्हे बच्चे की किलकारियाँ गूंज रही थी। आज उसका बेटा तन्मय खुद एक पिता बन गया था। अब सुनंदा की सभी जिम्मेदारियाँ पूरी हो गई थी लेकिन तन्मय की ज़िंदगी से जुड़ी एक सच्चाई उसे बताना बाकी था और आज वो समय भी आ गया था जब तन्मय को अपना फैसला लेना था।

आज तन्मय के बेटे के घर में आने की खुशी में एक जश्न रखा गया था जिसमें सुनंदा की छोटी बहन और तन्मय की मौसी छवि भी आई थी। छवि तन्मय से बहुत प्यार करती थी लेकिन उसका रवैया सुनंदा के प्रति कुछ ठीक नहीं था लेकिन आज उसकी आँखों में आँसुओ की धारा बह रही थी।

जब जश्न खत्म हो गया और घर के सभी लोग सोने चले गए तब छवि सुनंदा के कमरे में आई। सुनंदा अपने पुराने दिनों को याद करते हुए एक एलबम देख रही थी। छवि उसके पास आकर बोली- “आई एम सॉरी दीदी। मुझे माफ़ कर दो। मेरी वजह से आपने बहुत कुछ सहा है। आपने अपनी पूरी ज़िंदगी मेरे……। इतना कहते-कहते वो रो पड़ी।

सुनंदा ने उसे गले से लगाया और बोली- “तुम्हारी वजह से मेरी ज़िंदगी बर्बाद हुई नहीं बल्कि तन्मय को मेरी गोद में डालकर तुमने मुझे एक नई ज़िंदगी दी।”

तन्मय को ज़िंदगी आपने दी है दीदी। मैं तो उसका अस्तित्व ही मिटाने जा रही थी लेकिन आपने मुझे ऐसा करने से रोक लिया। आप अपनी बिन ब्याही माँ बनने जा रही बहन के लिए पूरे परिवार से लड़ाई भी की और उसकी संतान को अपनी संतान बना कर परवरिश की औऱ आज मेरे लौट आने पर उसे सच बताकर उसके लिए पराई होना चाहती है। नहीं दीदी मैं ऐसा नहीं होने दूँगी।” छवि ने कहा तो पीछे से तन्मय की आवाज आई- “ऐसा होगा भी नही मौसी।” इतना कहकर वह सुनंदा के पैरों में बैठ जाता है। छवि और सुनंदा दोनों उसके मुँह को ताकते रहे। उसने आगे कहा- “अपने बारे मे यह सच्चाई तो मैं बहुत दिनों से जानता हूँ। जब मैं नानी के यहाँ मिलने गया था तो नानी ने मुझे सब बताया था।” 

तब से लेकर आजतक मैं पूरी तरह से आपका बेटा बन गया हूँ बड़ी माँ।” इतना कहकर वो सुनंदा से लिपटकर रो पड़ा। आज सुनंदा के मन के मोती फिर से एक माला का रूप ले रही थी


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