मिट्टी के मन

मिट्टी के मन

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बहती नदी को रोकना मुश्किल काम होता है. बहती हवा को रोकना और भी मुश्किल. जबकि बहते मन को तो रोका ही नही जा सकता. गाँव के बाहर वाले तालाब के किनारे खड़े आमों के बड़े बड़े पेड़ों के नीचे बैठा लड़का मिटटी के बर्तन बनाये जा रहा था.

तालाब की तरफ से आने वाली ठंडी हवा जब इस लडके के सावले उघडे बदन से टकराती तो सर से पैर तक सिहर उठता लेकिन उसे इस हवा से आनंद भी बहुत मिलता था. उसके बनाये चिकनी मिटटी के बर्तन उस हवा से आराम से सूख जाते थे.

इस लडके का नाम गोविन्द था. पहले इसके पिता इस काम को करते थे लेकिन पिता की मृत्यु के बाद गोविन्द खुद इस काम को करने लगा. बारहवीं की पढाई भी बीच में ही छूट गयी. तालाब के किनारे मिटटी के बर्तन बनाने के लिए तालाब का यह किनारा सबसे उपयुक्त था.

तालाब से निकली मिटटी बर्तनों के लिए अच्छी थी. साथ में पानी की भी बहुतायत थी. लेकिन इस सब के अलावा भी एक कारण था जो गोविन्द को इस तालाब के किनारे खींच लाता था. यहाँ कुछ ऐसा था जो गोविन्द को अपनी और खींचता रहता था.

सुबह और दोपहर को यहाँ से गुजरने वाले लड़कियों के झुण्ड में सब लड़कियों के सलवार सूट  एक जैसे होते थे. दुपट्टा ओढ़ने का तरीका एक जैसा था. सर के बालों को गूथ कर चोटी बनाना भी एक जैसा था लेकिन उस झुण्ड में एक लडकी ऐसी थी जो सबसे अलग थी.

उसका हँसना. उसकी चितवन. उसकी चाल सब कुछ अन्य लड़कियों से अलग था. गोविन्द तो बीस लड़कियों की हंसी से उसकी हंसी को अलग कर पहचान लेता था. उसके गुजरते समय होने वाली पदचाप को अपने दिल की धढ़कन से महसूस कर लेता था. उस लड़की की चितवन तो जैसे गोविन्द के लिए वरदान जैसी थी.

बीस बरस की उम्र का गोविन्द देखने में सुघड़ लगता था. सांवला रंग. भरा हुआ जवान बदन. मर्दाना नैन नक्श  सब कुछ गोविन्द को छैल छबीला दिखाता था. जाति से बेशक  कुम्हार था लेकिन गाँव के ठाकुरों के लड़के उसे देख लजाते थे. दोपहर का समय हो रहा था.

गोविन्द ने पेड़ की जड में रखी दीवार घड़ी देखी तो पता चला  एक बजने वाला है. झटपट बर्तन बनाना छोड़ तालाब में हाथ मुंह धो लिए. टूटे हुए शीशे के कांच में अपना मुंह देखा. बालों को हाथों से ठीक किया और फिर से मिटटी के बर्तन बनाने चाक पर बैठ गया.

थोड़ी ही देर में कॉलेज के लड़के लड़कियों के हँसने बोलने के स्वर सुनाई देने लगे. गोविन्द के दिल ने धडाधड़ धड़कना शुरू कर दिया. झुंडों की शक्ल में लड़के लड़कियाँ सड़क से गुजरने शुरू हो गये. गोविन्द की आँखें एक अनजान लड़की को झुंडों के बीच में ढूंढने लगी. थोड़ी ही देर में गोविन्द की नजर उस लड़की पर पड़ी जिसे देखे उसके दिल को सुकून मिलता था.



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