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Akanksha Gupta

Inspirational

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Akanksha Gupta

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मिट्टी का हरा रंग

मिट्टी का हरा रंग

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आज शालिनी की शादी थी। घर में चहल पहल थी,भागदौड़ मची हुई थी। शादी के सारे काम भले ही इवेंट मैनेजमेंट कंपनी के सहारे पूरे हो रहे हो लेकिन माँ-बाप की जिम्मेदारियाँ और चिंताये कभी कम नही होते। शालिनी भी बहुत खुश थी क्योंकि उसे अपना मनचाहा जीवनसाथी मिल रहा था।घर में रिश्तेदारों की भीड़भाड़ थी।

काफी खुशनुमा माहौल था लेकिन उसे किसी और का ही इंतजार था-अपनी बहन साया का,जो उसकी सबसे अच्छी दोस्त भी थी।

वह अपनी जिंदगी की किताब के उन पन्नो पर लौट आई थी जहाँ उसे यह पता चला था कि साया उसकी अपनी बहन नही थी,उसके माँ-पापा उसके अपने नहीं थे। वह तो किसी की मजबूरी थी जिसे किसी और नाम दिया और अपनी मिट्टी में रोप लिया। जब उसे यह सच पता चला तो उसकी घुटन बढ़ गई थी यह सोचकर कि वह किसी की कोई मजबूरी हो सकती है।

अपने बारे मे उसे माँ-पापा से मालूम हुआ क्योंकि वे चाहते थे कि शालिनी उन्हें सच जानकर दिल से अपनाये।लेकिन उसकी घुटन उसके रिश्तों पर भारी पड़ रही थीं,वह चाहकर भी उन्हें दिल से नही जोड़ पा रही थी।

फिर साया होस्टल से लौट आयी,वह जानती थी कि उसकी जीजी सच जानती है और इस वक़्त किस मनोदशा से गुजर रही होगी।वह मनोविज्ञान की छात्रा थी और उसका असली इम्तहान अब था जब उसे अपनी जीजी को यह समझाना था कि माँ-बाप माँ-बाप ही होते है फिर चाहे जन्म देने वाले या पालने वाले।

वह एक पौध ले कर आई और शालिनी से कहा कि यह उसका फेवरेट पौधा है जिसे लगाने से हरे रंग की मिट्टी निकलती है। शालिनी सोच में पड़ गई कि ऐसी कौन सी मिट्टी है जो पेड़ पर उगती है और वह भी हरे रंग की।फिर भी उसने बिना कुछ पूंछे पौधे की देखभाल करनी शुरू की।कुछ समय बाद उसमें से हरी कोपलें फूट पड़ी जिसे देखकर शालिनी खुश थी। जब छुट्टियों में साया घर आई तो शालिनी ने उससे हरे रंग की मिट्टी के बारे मे जानना चाहा। साया उसे बगीचे में ले गई और उस पौध की नन्ही कोपल को दिखाते हुए कहा-यही तो है हरे रंग की मिट्टी।

शालिनी चौक गई।साया बोली-देखा दी यह पौध किसी और मिट्टी में जन्मा लेकिन पला यहाँ फिर भी इसने अपना रूप, गुण और स्वभाव नही छोड़ा। आप भी वहीं पौध हो दी जिसे कोई हमारे लिए तैयार कर के छोड़ गया था। परिवार तो परिवार है दी,कैसा भी हो।

मैं भी तो आपका साया हूँ और आप उन लोगों की जान जिन्हें आप अपना नहीं मान पा रही हो। और फिर वह चली गई।आज वह पौध कितनी बड़ी हो गई और मैं भी जिसने अपनी नई जिंदगी का तहेदिल से स्वागत किया।

जीजी कहाँ हैं? साया आ गयी थी और आते ही बोली-अपनी हरे रंग की मिट्टी को साथ ले जाना भूलना।फिर कमरे में ठहाके गूंज उठे।



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