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Rudra Prakash Mishra

Comedy Drama

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Rudra Prakash Mishra

Comedy Drama

मिश्रा जी का टेलीफोन

मिश्रा जी का टेलीफोन

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यह बात उन दिनों की है, जब टेलीफोन नामक देव का अवतार नया ही हुआ था। तब इन्होंने अपने एक रूप ' बेसफोन ' के रूप में अपना अवतार भारत की भूमि पर लिया था। लोग इनकी बस एक बार झलक या एक बार दर्शन भर कर लेने से ही खुद को इस धरती का एक सौभाग्यशाली जीव मानते थे। इनकी महिमा भी तब ईश्वर से कम न थी।


      खैर, धीरे - धीरे ये जनसुलभ होने लगे। बड़े - बड़े दफ्तरों और कोठियों से निकलकर अब ये भारत की कुछ खास जनता तक भी पहुँचने लगे। लोगों की तपस्या रंग ला रही थी। जिस वस्तु को वे बस देखने भर के लिए ही लालायित रहते थे, अब उसको वे बहुत नजदीक से देख सकते थे। अब वो उस वस्तु का इस्तेमाल कर सकते थे। उनके निकट और दूर के अपने अब उनसे बस एक ' हैलू ' भर की दूरी पर थे। चोंगा उठाओ, नम्बर मिलाओ और बोलो - हैलू और उनके अपने उनसे जुड़ गए। फिर मारते रहो गप्पें - कौन सी सब्जी बनाई, मसाला कब डाला सब्जी में। भूनते वक्त, या पानी डालने के बाद। अमुक का लड़का या लड़की, बस पूछो ही मत। इतना गुणी है कि पूरे मोहल्ले में प्रसिद्ध है। भगवान ना करे ऐसे लच्छन और किसी के हों। हाँ, हमारे बच्चे दूर हैं इन सबसे। मजाल है, जो कोई एक अँगुली भी उठा दे हमारे बच्चों पर। 


          अस्तु, तो अब आते हैं हमारे कहानी के मुख्य पात्र - मिश्रा जी पर। ये एक मध्यमवर्गीय समाज के प्राणी थे। भगवान का दिया सब कुछ था इनके पास। सरकारी नौकरी, एक अच्छी सी पत्नी और दो बच्चे। जिन्दगी मजे से चल रही थी। एक रोज मिश्रा जी काम से लौटे, तो देखा कि आज घर का माहौल रोज की भाँति नहीं है। सब कुछ शान्त सा है। दोनों बच्चे भी अपनी किताब लिये बैठे हैं। उनको कुछ अचरज सा हुआ, ये वक्त तो उनके खेलने का था, फिर इस वक्त चुपचाप पढ़ाई ? बेचारे चुपचाप कुर्सी पर बैठकर जूता खोलने लगे । बिजली रानी उस वक्त नदारद थी। उन्होंने एक बच्चे को आवाज लगाई - बेटा, जरा पँखा लाना। तभी श्रीमती जी प्रकट हुईं, एक हाथ में पँखा और दूसरे में पानी के साथ। उनके तेवर आज कुछ ज्यादा ही सख्त नजर आ रहे थे। मिश्रा जी ने सोचा, अभी कुछ पूछना छेड़ने से भी ज्यादा खतरनाक अपराध की श्रेणी में आ सकता है, इस विचार से उन्होंने चुप रहने में ही भलाई समझी। चुपचाप पानी पिया और बैठे रहे। थोड़ी देर बाद चाय आया, फिर चाय पे ही राज खुला। श्रीमती जी ने कहा - आज सरला के यहाँ गई थी। हाँ, फिर ? मिश्रा जी ने पूछा। उसने अपने यहाँ टेलीफोन लगवाया है। अब जाकर मिश्रा जी की समझ में सारी बात आई। उन्होंने कुछ सोचते हुए कहा - तो तुम चाहती हो कि हम भी लगवा लें। कुछ बुरा तो नहीं है, श्रीमती जी ने कहा। मगर बहुत मशक्कत करनी पड़ती है, बिल भी आएगा और अपनी आमदनी भी सरला के यहाँ जितनी नहीं है। मिश्रा जी ने समझाते हुए कहा। मैं कुछ नहीं जानती, आपसे इतना भी नहीं हो पाएगा क्या ? अब बात मिश्रा जी के पुरुषार्थ पर आ गई थी, सो उन्होंने भी चुनौती कबूल कर ली। 


             फिर शुरू हुई सरकारी टेलीफोन दफ्तरों की भागम - भाग। तब इतनी आसानी से कहाँ हासिल हो पाता था टेलीफोन कनेक्शन। खैर, मेहनत अथक हो रही थी, तो फल भी मिलना था। सरकारी चपरासी से लेकर बाबू तक की चिरौरी रँग लाई। तकरीबन दो महीने की भाग - दौड़ के बाद वो शुभ दिन भी आ गया। आज सुबह से ही घर में उत्सव सा माहौल था। आदमी आए और कनेक्शन लगा गए। श्रीमती जी ने कहा - पहला फोन मैं करूँगी। हाँ - हाँ, क्यूँ नहीं, तुम गृहलक्ष्मी हो। मिश्रा जी मुस्कुराते हुए बोले। नम्बर मिलाया गया, रिसीवर में से दो - तीन आदमियों की मिली - जुली आवाजें आने लग गई। श्रीमती जी ने कहा - सुनते हो। कुछ गड़बड़ है, देखना एक बार। मिश्रा जी ने रिसीवर लिया, सुनकर बोले - लगता है क्रॉस कनेक्शन हो गया है। फिर से लगाना होगा। इस बार मिश्रा जी ने खुद नम्बर मिलाया। इस बार नम्बर मिलते ही रिसीवर में से कीर्तन की आवाज आने लगी। मिश्रा जी बोले - शायद गड़बड़ है कुछ और फोन रख दिया। गड़बड़ चालू ही रहा। हारकर विभाग जाकर बोलना पड़ा - मेरे कनेक्शन में कुछ गड़बड़ है, सही करा दीजिये। विभाग से आश्वासन लेकर घर आए। सात या आठ रोज बाद मिस्त्री आए और अपने हिसाब से सही कर गए। फोन कुछ दिन तो सही रहा, फिर बिगड़ गया। फिर शिकायत की, फिर मिस्त्री आए और सही कर गए। पुनि - पुनि चन्दन पुनि पुनि पानी। ये सही - गलत का खेल चलता ही रहा। 


            ये टेलीफोन तो सही से ज्यादा खराब ही रहता है - एक दिन ऊबकर श्रीमती जी ने मिश्रा जी से कहा। मैंने पहले ही कहा था, पर तुम्हारी जिद थी - मिश्रा जी बोले। तभी दरवाजे पर दस्तक हुई - टेलीफोन का बिल है, ले लीजिये। बिल पढ़ा गया - साढ़े आठ सौ का था। इतना ज्यादा ! पर फोन तो तकरीबन खराब ही रहता है, श्रीमती जी बोलीं। क्या करोगी, अब आया है, तो चुकाना ही होगा, मिश्रा जी बोले। सुनो - श्रीमती जी कुछ सोचते हुए बोलीं। क्या ? मिश्रा जी ने पूछा। ये कनेक्शन कटवा दो, नहीं चाहिये फोन। पक्का ? मिश्रा जी ने पूछा। जवाब आया - हाँ पक्का.....



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