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AVINASH KUMAR

Drama

4  

AVINASH KUMAR

Drama

मेरी वफा

मेरी वफा

3 mins
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यह कहानी दो ऐसे प्रेमियो की है जो एक तो होना चाहते थे मगर हो ना सके। क्योंकि इनके बीच जाति की कभी ना पटने वाली गहरी खाई थी। इसके मुख्य किरदार निकुंज और वंदना है

निकुंज एक गणित के शिक्षक है और उन्हें लड़कियों से बात करने मे शर्म आती थी कयोंकि वह ऐसे परिवेश में पले बढे है जहां लड़कियों से बात करने का अलग ही मतलब निकाला जाता था परंतु जब वह शिक्षक बने तो उन्हें शहर में जाना पडा और उनमे एक जोश और जुनून रहता था कि जिस काम में हाथ लगाओ उसे हरहाल में पूरा करो वह बच्चो को पूरे दिल से पढाते और ना पढने पर सजा भी देते केवल उत्साहित करने के लिए सभी बच्चे उनसे प्यार से पढते और बोर्ड की परीक्षाओं में अधिक से अधिक अंक लाते दो साल बीत गए।

फिर स्कूल में गणपति महोत्सव का त्यौहार आया।

उसमें पंडित जी को बुलाया गया जोकि मूल रुप से उन्हीं के गाँव के थे अरे हा एक चीज़ तो मैं बताना ही भूल गया निकुंज अपने ही चाचाजी के स्कूल में पढाते थे जो कि निकुंज को बहुत प्यार करते थे। उस गणपति महोत्सव में निकुंज के चाचाजी पंडित जी से कह रहे थे कि मुझे अपने कालेज के लिए टीचर की आवश्यकता है जो कि कामर्स की हो तो पंडित जी ने कहा मेरी बेटी वंदना M.Com कर रही है चलेगा क्या फिर चाचा जी कहा चलेगा फिर वंदना कालेज आने लगती है कुछ दिन बीत जाने पर निकुंज और वंदना की मुलाकात होती है वे एक दूसरे को पसंद करने लगते है और यह बात निकुंज वंदना से कह दे ता है कि मैं तुम्हें पसंद करता हूँ।

और तुमसे ही विवाह करना चाहता हूँ वंदना कहती हैं सारी चीजे मन की पूरी नही होती है और मुझमे और आप में सबसे बड़ी खाई हमारी जाति ही आएगी आप पिछड़े वर्ग से तालुक रखते हैं और मैं ब्रम्हण कुल से हूँ और हमारे रिश्ते को कोई स्वीकार नहीं करेगा बस निकुंज को पता चल गया कि आग दोनों तरफ लगी है तो वह कहता कोई बात नहीं मैं अपने चाचा से बात करता हूँ वो अवश्य हमारा साथ देंगे पर उन्हें यह कहा पता था कि अब उनकी मुलाकात भी शायद ना हो निंकुज वंदना के वियोग में आत्महत्या का प्रयास करता है परंतु उसका दोस्त शहनावाज उसे बचा लेता है और कहता है सच्चे प्यार में जुदाई तो होती ही है तुम्हें अपने माँ बाप के लिए जीना चाहिए पर निकुंज वंदना के लिए आज भी बरकरार जबकि वंदना की शादी उसके मां बाप ने जबरदस्ती किसी और लड़के से करा दी

निकुंज आज भी वंदना के इंतज़ार में है

सच कहे वो आज भी वंदना के प्यार में है

क्यों तोड़ देते है हम प्यार भरा दिल

जाति पाति के नाम पर

मिला दे बिछड़े दिलों को ऐसा तू काम कर

वक्त की गर्दिश और ना जमाना बदला

पेड़ जब सूखा परिंदों ने भी तब ठिकाना बदला

हवाएं अब भी बह रही कुछ मौसम के खिलाफ 

मुसाफिर ने थक कर फिर अपना जनाजा बदला।


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