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Shrddha Katariya

Romance Tragedy

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Shrddha Katariya

Romance Tragedy

मेरी किस्मत का प्यार

मेरी किस्मत का प्यार

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जिंदगी के भी अजीब मोड होते है,कभी हमें किस दोराहे पे ला खड़ा करे समझ मे ही नही आता।

जब हम कभी हमारी जिंदगी की डोर की ओर देखे तो लगता है की कुछ उलझी सी है पर जब सुलझ जाए तो लगता है की कुछ उलझन हुई ना थी। ऐसे ही मेरी जिंदगी भी कुछ उलझन और सुलझी सी है। वो हमारी कॉलेज के दिन थे,में बीएससी कर रही थी,मेरा admission उस कॉलेज में ही हुवा था जहा मेरे सारे पुराने दोस्तो की टोली थी में पहले इसी शहर में थी पर पापा की ट्रान्सफर के बाद हम दूसरे शहर चले गए थे।

अब वापस आए तो सब कुछ बदल चुका था, बस ना बदले तो मेरे पुराने दोस्त।

में अपने दोस्तो के साथ अच्छे से पढ़ाई कर रही थी,और जिंदगी का ऐसा पन्ना आया के ना में पढ़ पाए और ना समझ पाई।

मेरी इस दुनिया में शेखर आया,जो मेरी जिंदगी बनने वाला था।

उसका बीच सेमेस्टर में एडमिशन हूवा।

हमारी पलटन के साथ थोड़े ही दिनों में वो घुलमिल गया, वैसे तो उसका सीधा सादापन मुझे बहुत ही भाने लगा था।पर लडकियो की इज़्ज़त करना,हमेशा अपने दिल की करना,सब से अच्छे से पेश आना मुझे अच्छा लगने लगा।हम सब ग्रुप में हमेशा साथ ही था करते थे, वैसे कभी उससे आज तक अकेले में मेरी बात नही हुई थी,जो भी था ग्रुप तक ही था। लेकिन एकदीन चचेरी बहन की शादी में दोनो इतफाक से मिल गए।अकेले, हा घरवाले थे साथ में,पर फिर भी कोई दूसरा ग्रुप वाला नही था।

उसदीन दोनो ने शादी में साथ डांस किया, और बहुत ही ज्यादा मस्तियां की। धीरे धीरे अब दोस्ती दोनो तरफ म्होब्बत की आग लगा रही थी। एकदिन मुझे कॉलेज देर से आना हुआ और वो बैचेन हो गया " कहा थी इतनी देर से..

जब घर से निकलो कॉल कर दिया करो।

फिक्र रहती है तुम्हारी।"

मेने भी पूछ लिया" क्यूं करते हो इतनी चिंता हमारी,आखिर माजरा क्या है? "

बात को टालने लगा और कह दिया सिर्फ दोस्त हो हमारी और कुछ नहीं"

इस पागल का में क्या करती प्यार भी करता था और कहने से भी डरता था। नही, कहने से नही शायद मुझे खोने से डरता था।

कॉलेज के लास्ट दिन आखिर उसने हिम्मत कर ही ली" क्या इस जिंदगी के सफर मेरी हमसफर बनोगी?"

भला मैं केसे ना कहती पर मेने, शर्त रख दी,मेरे पापा से उसे बात करनी पड़ेगी फिर मेरी हा होंगी।

ये म्होब्बत में क्या ताकत होती हे पता नही पर खुदा को भी जुका देती है।

उसने पापा से बात की और हमदोनो हमसफर हो गए।

सब कुछ सही चल रहा था।दोनो की सगाई हो गई , हम बाहर घूमने जाते,दोनो परिवार के साथ वक्त बिताते।पर खुशी शायद मेरे नसीब को मंजूर ना थी।

एकदिन मुझ से मिलने के लिए शेखर और उसका जिगरी दोस्त रिधम कार लेकर आ रहे थे और उनका कार एक्सीडेंट हो गया और मैने शेखर को हमेशा के लिए खो दिया।

में तो उसके जाने के बाद सुन सी हो गई थी, मानो जिंदा लाश।

कई महीनो तक खुद को चारदीवार में कैद रखा था ।

पर जब पापा बीमार हुए तो बाहर निकल कर पापा के साथ रही। बाहर निकली तब पता चला के रिदम इतने वक्त से हमारे घर पे ही है,सब की देखभाल वो ही तो कर रहा है।

पापा ठीक हो गए, और मुझे रिदम के साथ शादी के लिए मना भी लिया।

कैसी अजीब पहेली थी,एक जो था उसे खो दिया जो बचा था उसने सबकुछ मेरे लिए छोड़ दिया।

रिदम के साथ जिंदगी की नई शुरवात हो गई,पर कही तो शेखर की कमी थी।

एकदिन घर की सफाई के वक्त रिदम की पुरानी डायरी मिली। और एक सच पता चला की रिदम भी मुझ से कॉलेज से प्यार करता था।बस कभी जाहिर नही किया।आज भी बीन बताए मुझे रानी की तरह रखता है और शेखर की इज़्ज़त भी करता है।

बस कभी उलझ जाती हूँ कि किसकी किस्मत ज्यादा बेहतरीन थी ? मेरी ? शेखर की या फिर रिदम की ?


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