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Asha Padvi

Inspirational

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Asha Padvi

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मेरी दुविधा

मेरी दुविधा

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कल मैं काम कर रही थी ,

आज मैं बिल्कुल खाली हूँ।

सोच रही हूँ ये कबसे ,

क्या मैं टूटी डाली हूँ।

सुखी डाली नहीं फिर भी ,

पेड़ से मैं क्यों टूट गई ।

किसी की काम की नहीं मैं ,

या किसी को मेरी कदर नहीं।

जब मैं काम के काबिल थी ,

तब सबने वाह वाही की ।

आज कुछ नहीं हूँ मैं तो ,

मैं क्या न काबिल हूँ ।

खोज रही हूँ इस सच को ,

जो छुपा इस बात के पीछे 

जिस पर बीत रही हैं ,

वहीं जाने क्या उसको सुझे ।

मेरी दुविधा मेरी उलझन ,

मेरी दिल की वो बाते ।

कैसे मैं रोकूं उनको जो ,

बिना कहे ही दिल में आते।

एक बार फिर सोचती हूं ,

क्या ये एक सपना है।

आंख खुली तो टूट गया जो ,

जो छूट गया वो अपना है ।

कोई वो कह गया मुझसे की ,

कर भरोसा तू खुद पर , 

खो गया वो तेरा नहीं था ।

जो पास है उसको संभाले रखना है ।

तू भी एक दिन खो जाएगी ,

अभी बढ़ी न आगे जो ।

बात अधूरी रह जाएगी ,

अभी कही न जाए जो ।



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