मेरी डायरी और तुम
मेरी डायरी और तुम
खैर अपनी बात अपनी डायरी को भी नहीं बताऊं तो किसे बताऊंगा। मेरी डायरी ही तो है जो हर रात को मेरे सारे अच्छे बुरे अनुभव खुद में सहेज लेती है। अच्छी बात ये है कि उसे मैं अपनी भाषा में सब कुछ कह पाता हूँ, कभी आज तक उसने ये नहीं कहा 'व्हाट द मीनिंग ऑफ दैट लाइन ?'
मैं सोच रहा था कि किसी दिन डायरी ने भी मेरी हिंदी समझने से इनकार कर दिया और तुम्हारी तरह वो भी कह उठे 'प्लीज़ टेल मी द मीनिंग ऑफ योर राइटिंग ?' उस दिन तो डायरी के उन कोरे पन्नो में भी वो अपनापन तलाशने में असफल हो जाऊंगा जैसे तुम्हारे दिल के किसी कोने में अपनी जगह तलाशने में हर बार असफल हो जाता हूँ।
पता है डायरी के किसी भी पन्ने में दिल नहीं है, पर उनसे मैं सिर्फ अपनी दिल की बातें ही शेयर करता हूँ। वो क्या है कि दिमाग की तो पूरी दुनिया सुनती है, पर जब उन्हें अपने दिल की बात सुनाने जाओ तो हँसतें है सब। हाँ सच में सब हँसतें है यार। तुम भी तो हँसती हो। क्या नही हँसती हो ? जब भी अपने दिल की बात तुम्हें बताने की सोचता हूँ तुम्हें लगता है मैं मज़ाक कर रहा हूँ। तुम भी हँसती हो।
डायरी के पन्ने दिल नहीं रखते पर सब ज़ज़्बात सहेजते हैं। और एक तुम हो, जो आजतक यह नहीं समझ पायी कि मैं तुम्हारे जिंदगी में क्यों हूँ ?
सच तो ये है कि तुम्हारी जिंदगी में मैं क्यों हूँ, ये बात तो आजतक मैं भी नहीं समझ पाया। मेरी सुबह से लेकर शाम तक, शाम से फिर सुबह तक, किसी हिस्से में तुम्हारा कोई वजूद नहीं। फिर भी जाने क्यों, तुम्हें सोचे बगैर मैं एक पल भी नहीं। एक पल भी नहीं...जाने क्यों ?