31 दिसम्बर
31 दिसम्बर
मैं घर जाने के लिए ऑटो में बैठा ही था कि तभी मेरे सामने वाली सीट पर एक लड़की आकर बैठी । यहाँ तक तो सामान्य था पर जैसे ही उस लड़की के तरफ मैंने देखा, सब कुछ असामान्य हो गया, समय जैसी चीज तो जैसे कही अस्तित्व ही नही कर रहा था । उसकी आंखें पहले से मेरी ओर थी। जो मुझे ना सिर्फ घूर रही थी बल्कि कई कहानियां दुहराने लगी थी । यादों के समंदर में गोते लगाकर कुछ धुंधली पड़ी तस्वीरों को सामने लाकर रख रही थी जिन्हें की मैं स्पष्ट देख सकता था।
तस्वीरे तबकी थी जब मैं 8वी कक्षा में था और मेरी दोस्ती एक 6वी कक्षा के उस पुजा से हो गयी । दोस्ती गहरी होती गयी। इतनी गहरी कि अब एक दूसरे के बिना रहना जैसे कोई सजा हो जाता हो। रोज हम दोनों सबसे पहले स्कूल पहुच जाते थे और साथ मे खेलते थे, गुनगुनाते थे। हमारी कक्षाए अलग थी तो सिर्फ लांच टाइम और सुबह ही हम मिल पाते थे। और इन्ही दो समयो में हम पूरे दिन को जी लिया करते थे।
हम बहुत खुश थे एक दूसरे के साथ पर यह खुशी जल्द ही बस उन्ही लम्हों में सिमटने वाली थी। हम दोनों के रास्ते अलग होने वाले थे । पर इन बातों से बेफ्रिक हम तो बस उन्ही लमहों को जीने में लगे थे जिनमें हम दोनों साथ थे। पर समय अपना वर्चस्व दिखाने का कोई भी मौका जाया नही करती है। और समय ने अपना प्रहार किया और वो सब कर दिया जो कर सकता था।अब सिर्फ हमारी कक्षायें अलग नही थी, अब हमारे स्कूल भी बदल गए थे। मैं बेचैन रहने लगा। अब कोई भी लम्हा नही था जब मैं उसके साथ था । ऐसे लम्हों में जीने के लिए सिर्फ मेरे पास पुरानी यादें थी। पर अब तो वो यादें भी धूमिल होने लगी थी। मैं गुमसुम सा रहने लगा था पर धीरे-धीरे समय के अस्तित्व को स्वीकारा, और नियति के आगे घुटने टेक आगे बढ़ गया।
कई साल गुजर गए है उन तस्वीरों को पीछे छोड़े। 9वी गुजरा, 10 वी भी गया, 11 वी भी गया.... मैंने नही सोचा था आज 31 दिसम्बर को जब मैं दोस्तो से कल की पार्टी का प्लान करके लौट रहा हूँगा तो समय मेरे सामने उन तश्वीरो में से उस किरदार को सामने लाकर रख देगा जिन्हें मैं सिर्फ कल्पनाओं में याद करता हु। ऑटो में सामने बैठी लड़की पूजा ही थी जिसे देखकर सभी तस्वीरें स्पष्ट हो आयी थी।
वो एकटक मुझे घूरे जा रही थी। हजारो सवाल पूछ रहे थे उसकी आंखें। मुझे पता था उसकी आंखें क्या सवाल कर रही है। पर मेरे पास जवाब नही था किसी बात का । मैंने अपनी नज़रें झुका ली। सारे रास्ते मैं ग्लानि से भरा रहा । जब भी उसकी तरफ देखने की हिम्मत करता, उसकी वही सवालिया आंखे मुझे घूरते हुए दिखती थी, शायद कुछ उम्मीद बाकी थे उनमें।
उसकी आंखें मुझे कह रही थी, चलो बचपन मे लौट जाये । उसी बचपन मे जब हम दोनों साथ थे। तुम्हें याद तो है ना सब कुछ? या भूल गए हो ? बोलो कुछ बोलते क्यो नही ? क्या तुमने मुझसे कभी मिलना नही चाहा? क्या तुम्हें कभी मेरी याद नही आयीं? मैं कुछ बोल नही सका पर मै बोलना चाहता था , मैं चिल्ला चिल्ला कर पुरी दुनिया को बता देना चाहता था, कि 'मैं नही भूला, मैं आज भी उतनीं ही सिद्दत से तुम्हे चाहता हु जैसे तब चाहता था । बेशक मैंने नियति के आगे घुटने टेके है, पर मेरा प्यार मरा नही है।'
पर मैं कुछ बोल नही पाया, सिर्फ उसकी सवालिया आंखों से सवाल ही सुनता रहा। जाने वो मुझे समझ सकी होगी कि नही यह नही जानता पर उसकी आँखों मे जो उम्मीद मूझे दिख रही थीं, जाने क्यो वो मैं नही देख सका।
तभी ऑटो रुकी। यह वही जगह थी जहाँ से हमारे रास्ते फिर अलग होने वाले थे। समय ने फिर अपना वर्चस्व दिखाया। अब फिर हमारे रास्ते अलग हो गए थे, और फ़ासले बढ़ते ही जा रहे थे...
मैं फिर किसी 31 दिसम्बर के इंतजार में हूँ। कभी तो नियति मेरी साथ देगी। कि फिर वही बचपन का बसन्त लौट के आएगा, हम फिर मिलेंगे.. और शायद इस बार समय अपना वर्चस्व दिखाकर हमारे रास्ते जुदा ना करे बल्कि एक ही मंजिल तय करदे। मैं फिर से किसी 31 दिसम्बर के इंतज़ार में हूँ...।