मेरा पशुप्रेम
मेरा पशुप्रेम
ठंडी के दिन बीत चुके हैं, गर्मी के दिन आ गए हैं, स्वेटर की जगह आधी बाँह वाले कपड़े यानी हाफ टीशर्ट ने ले ली है, और ठिठुरन की जगह उमस ने ले ली है। सभी अपनी-अपनी जिंदगी में व्यस्त हैं। किसी को चिंता है कि आज के खाने में क्या बनाया जाए और किसी को चिंता है कि नए कपड़े कौन से और किस तरह से लिया जाए। शायद लोगों ने दुख सुख के पैमाने को इतना छोटा बना लिया है कि सोचना और प्रयास करना उसे एक चिंता लगने लगी है।
उत्तर प्रदेश के एक छोटे से जिले सुल्तानपुर में रहने वाला तिवारी जी का परिवार भी बाकी लोग की तरह बढ़ती गर्मी के लिए अलग-अलग लोगों को दोष दे रहा है, सबकी अपनी-अपनी अलग वजह है, किसी को बिजली विभाग की गलती लगती है, किसी को पेड़ काटना! लेकिन एक बात पर सभी राजी हैं, वह यह कि इस बढ़ती गर्मी का कारण हम इंसान ही है, और हो भी क्यों ना हमें चालीस पचास हज़ार का ए.सी., पेड़ लगाने से ज्यादा किफायती लगता है। खैर गर्मी पर चर्चा चल ही रही थी कि इसी बीच घर पर एक पच्चीस साल की लड़की, एक छोटी सी प्यारी सी बिल्ली ले आई, बिल्ली को देखकर तो यही लगता था कि उसे इस दुनिया में आए दस दिन से ज्यादा नहीं हुए होंगे, लड़की तिवारी जी की बेटी थी नाम था अंजली। अंजली के दिल में खुशी का ठिकाना ना था। जानवरों से लगाव तो उसे बचपन से ही था, लेकिन आज खुद की बिल्ली देखकर शायद लग रहा था कि उसकी कोई मनोकामना पूर्ण हो गई हो। उसका खाना-पीना, उसे बड़ा करना, इतनी देर में अंजली शायद सब कुछ सोच चुकी थी, तभी पीछे वाले कमरे से आवाज आई "मानी नहीं ना आप, ले ही आईं आखिरकार इसे" आवाज में गुस्सा था, आवाज तिवारी जी के लड़के की थी, जिसका नाम अभिषेक था, जो बैठकर पीछे वाले कमरे में मोबाइल में शायद गेम खेल रहा था, वैसे भी आजकल के किशोरावस्था के लड़के इन गर्मी की छुट्टियों में करते ही क्या हैं। अभिषेक को पता चल चुका था कि घर पर बिल्ली आई है, क्योंकि बिल्ली आने की सुगबुगाहट कुछ दिनों पहले से ही घर पर चल रही थी, "इतनी प्यारी-सी तो है, देखो तो जरा एक बार" अंजलि ने जवाब दिया। लेकिन अभिषेक के मन में ना जाने क्या था, उसका गुस्सा कम ही नहीं हो रहा था, बिना बिल्ली को देखे ही बहन पर चिल्लाकर बोला "फिर भी क्या ज़रूरत थी यहाँ लाने की ? कहां से लाई ? माँ थी क्या इसकी ?" अंजलि बिल्ली को देखकर इतनी खुश थी कि भाई के गुस्से के शब्द भी उसे प्यारे लग रहे थे "मैं मेरी सहेली के घर से लाई हूँ, और हाँ माँ इसकी और तीन भाई-बहन भी थे यह सबसे छोटी वाली है।" अंजलि ने बिल्ली के सामने दूध का प्याला रखते हुए बोला। यह सुनते ही अभिषेक का दिल बैठ गया, मन ही मन वह सोचने लगा "एक माँ को उसके बच्चे से अलग करना यह कौन-सा पशु प्रेम है ? यह पूरी दुनिया के दिखावटी पशु प्रेमी जिन्हें कुत्ते, बिल्ली, खरगोश जैसे पशुओं को उनकी माँ से अलग करके क्या मिलता है ? क्या पशु प्रेम की परिभाषा यही हो गई है, क्या यह समाज जो रोज़ हृदय हीनता की तरफ की तरह रोज कदम बढ़ा रहा है उसे पशु प्रेम एक 'भाव' से, अधिक ऐनिमल लवर का लेबल लगाने की बात लगने लगी है, और इस प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिए एक माँ-बेटे, भाई-बहन के रिश्ते को तोड़ना जरूरी हो गया है।" यह सब सोचते हुए अभिषेक ने अंजली से कहा "आप जाइए और यह बिल्ली वापस कर आइए।" लेकिन अंजलि क्या अपनी खुशियों को ऐसे ही जाने देती, जिस चीज का सपना उसने बचपन से देखा था, क्या उस सपने को तोड़ने के लिए एक वाक्य ही काफी था ? नहीं अंजलि कभी ऐसा नहीं होने देती, उसने ज़िद कर ली कि बिल्ली तो कहीं नहीं जाएगी। अभिषेक को अंजली का व्यवहार पता था, उसे पता था कि वह बिल्ली को इतनी आसानी से कहीं नहीं जाने देगी, परेशान होकर अभिषेक घर से निकल गया और घूमने चला गया, असल में अभिषेक की यह आदत थी कि जब वह गुस्सा होता था घर के बाहर पैदल टहलने लगता था, जो उसके हिसाब से गलत हो रहा हो वह उसे अपने ख्यालों में सही करता था और गलत करने वालों को सबक सिखाता था। अभिषेक की बातों से अंजली थोड़ा नाराज तो हुई लेकिन उसके जाने के बाद पुनः बिल्ली के साथ खेलने लगी। घर पर उन दोनों की माँ, जो ख़ामोशी से इस नाटक को देख रही थी, उसे समझ नहीं आ रहा था कि कौन सही है, अभिषेक की बिल्ली वापस करने वाली बात भी उसे सही लग रही थी क्योंकि उसे चिंता थी कि "आखिर बिल्ली को देखेगा कौन, अगर कुछ दिन के लिए शादी ब्याह में जाना पड़ा तो कौन ख्याल रखेगा उसका ?" लेकिन साथ ही साथ बेटी का खुशी से भरा चेहरा भी उसके सामने आ रहा रहा था, जानवरों से प्रेम तो उसे भी था, लेकिन बढ़ती उम्र में बीमारियों ने उसे इतना कमजोर बना दिया था कि उसमें हिम्मत ना थी किसी की जिम्मेदारी उठाने की।
परिवार के इसी नाटक के बीच वह बिल्ली इस सोच में पड़ी थी कि आखिर उसके साथ क्या हो रहा है। बिल्ली की मनोदशा उस के बच्चे जैसी हो रही थी जो कहीं खो जाने के बाद व्याकुल मन से अपने माँ को ढूँढता तो है, पर उसे भरोसा होता है कि अभी थोड़ी देर में उसकी माँ आकर उसका हाथ पकड़ कर उसे गोदी में उठा लेगी। थोड़ी देर पहले माँ के स्तन का दूध पीकर जो पूरे घर में अपने भाई-बहनों माँ के साथ छुपन छुपाई खेल रही थी, वह इस सोच में पड़ गई थी कि आखिर माँ कहाँ छुप गई ? आखिर उसके भाई-बहन कहाँ छुप गए जो उसे अब नहीं मिल रहे हैं ? आखिर यह नई जगह कौन-सी है ? बेचारी बिल्ली कभी लोहे की अलमारी के पीछे कभी बेड के नीचे रखे गत्तों में बारी-बारी से अपनी माँ को खोजती, उसने घर का हर एक हिस्सा खोज डाला, लेकिन उसके हाथ सिर्फ असफलता ही लगी। बिल्ली की करुणामई आवाज सुनकर शायद किसी भी इंसान का दिल पसीज जाता, बिल्ली की मनोदशा का अंदाजा तभी लगाया जा सकता है, जब ऐसी स्थिति में इंसान खुद हो। एक छोटी-सी बच्ची जो अपनी माँ से अचानक ही अलग हो जाए उसका दर्द शायद शब्दों में बयां करना तो असंभव सा लगता है।
दो घंटे तक अपनी माँ को खोजने के असफल प्रयास के बाद आखिरकार वह बिल्ली बेड कोने में जाकर बैठ गई, आज ही माँ ने बेड पर नई नीले रंग की चादर चढ़ाई थी। दूध का प्याला बिस्तर पर ही रखा हुआ था। दूध की सफेदी और बिल्ली के रंग में शायद ही कोई अंतर था। अंजलि ने दूध का प्याला बिल्ली की तरफ़ बढ़ाया पर बिल्ली ने उदास मन के साथ दूध ना पिया। अंजलि को बिल्ली का यह व्यवहार थोड़ा पसंद नहीं आया लेकिन उसे भी पता था कि शायद माँ से बिछड़ने की वजह से उसका यह व्यवहार स्वाभाविक है। इन सबके बीच बिल्ली की करुणामई आवाज नहीं रुक रही थी, जिससे अंजलि को बार-बार शायद अब अपने किए पर पछतावा होने लगा था। अचानक बिल्ली उठी और घर के हर कोने में दोबारा अपनी माँ को खोजना शुरू कर दिया। शायद बिल्ली को भी अभी पता हो गया था कि उसकी माँ अब ना मिलेगी, ना ही उसके भाई बहन, लेकिन वह छोटी-सी जान, चाह कर भी उम्मीद नहीं छोड़ सकती थी। तभी अभिषेक घर लौटा और लौटते ही अंजलि पर शब्दबाणों की बरसात कर दी। "मिल गया चैन एक बच्ची को उसकी माँ से अलग करके" कहते हुए उसने नन्ही-सी जान को बाहों में भर लिया। थोड़ी देर पहले जहाँ अंजली को अपने किए पर पछतावा होने लगा था, वहीं अभिषेक के तानों ने अंजली को दुबारा अपने किए को सही साबित करने का एक कारण दे दिया। शायद अभिषेक को अभी इतना अनुभव नहीं कि अपनी बातों को अगर सहजता से ना कहा जाए तो बातों के विपरीत अर्थ निकाले जाते हैं। "जब इतनी ही चुभती है तो साथ लिए क्यों बैठे हो" अंजली ने तिमतिमाकर कहा। वाद विवाद तेज हो गया, बात यहाँ तक बढ़ गई कि दोनों एक दूसरे की पुरानी गलतियों को निकालने लगे, तभी माँ ने कहा अगर शांति चाहते हो तो दोनों लोग चुप हो जाओ। अभिषेक गुस्से से जाकर उसी बिस्तर पर लेट गया और अंजलि किताब पढ़ने लगी, कमरे में शून्य जैसी शांति हो गई।
अभिषेक गुस्से में अपनी बड़ी बहन की बुराइयाँ मन-ही-मन किए जा रहा था। तभी बिल्ली धीरे से चलकर अभिषेक के सिर के पास आकर बैठ गई। यद्यपि अभिषेक ने उसे इतना स्नेह नहीं दिया था, फिर भी जैसे मंजिल से भटके हुए दो राही एक दूसरे के लिए सहारे का काम करते हैं, वैसे ही बिल्ली भी अभिषेक के लिए सहारा बन गई, उसे देख अभिषेक धीरे से मुस्कुरा दिया। अभिषेक की मुस्कुराहट के पीछे एक बहुत बड़ी संवेदना छुपी हुई थी। वह सोचने लगा "मनुष्य भगवान की सर्वश्रेष्ठ संरचना है, आखिर यह किसने कह दिया ? मनुष्य हर चीज के लिए घातक है, पर्यावरण की दयनीय स्थिति है, कितने ही पशुओं को मनुष्य ने धरती से खत्म कर दिया, और कई खात्मे के कगार पर हैं, परंतु मनुष्य इतना धूर्त है कि इन सब कामों को विकास का चोला पहनाना चाहता है। आज हम लोग (मनुष्य) स्नेहवश पशुओं को पालते हैं ऐसा नहीं है, इन सब के पीछे निहित होता है स्वार्थ, कहीं दूध का स्वार्थ, तो कहीं समाज में ऐनिमल लवर और लार्जर दैन लाइफ़ वाला लेबल लगाने का स्वार्थ। क्या हम ऐसी जिंदगी की कल्पना कर सकते हैं जिसमें सिर्फ पशु हों मनुष्य ना हों ? नहीं कभी नहीं, बिना अपनी मनुष्य प्रजाति के हम अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते, तो फिर हम पशुओं के बारे में ऐसा ही क्यों नही सोचते हैं ? पशुओं को पालकर जिंदगी भर उनकी प्रजाति के लोगों से उन्हें अलग कर देने में हमें शर्म क्यों नहीं आती ? क्यों हम इस शर्म और नीचता पूर्वक कार्य में भी गर्व की अनुभूति करते हैं ? जब हम पशुओं को पालते हैं तब उसे उसकी प्रजाति से उसे पूरी तरह अलग कर देते हैं, उसकी बात समझने वाला, उसके सुख-दुख में साथ देने वाला कोई नहीं होता है, तब वह पशु मनुष्य की ओर आशा पूर्वक देखता है, और फिर धीरे-धीरे मनुष्य को ही अपना सारा स्नेह प्रदान करता है, उस नादान पशु को यह पता भी नहीं होता कि, जिसे वह अपना सारा प्यार कर रहा है, असल में उसी ने उसे एक जाल में कैद कर रखा है। हमें यह समझ जाना चाहिए की जो प्यार हमें हमारे पाले हुए पशुओं से मिलता है, असल में वह एक मजबूरी का प्यार है क्योंकि हमने कभी उन्हें कोई दूसरा विकल्प दिया ही नहीं।"
मन में उठ रहे इस तूफान के बीच अभिषेक के कानों में अंजली के कुछ शब्द पढ़े "चलो बिल्ली को वापस कर आते है।" सहसा अंजलि का हृदय परिवर्तन देखकर, अभिषेक ने चौंककर पूछा "क्यों ?" "बस ऐसे ही,पर अब देर ना करो, अब रात हो गई है जल्दी चलो।" अभिषेक को पता चल गया कि अंजली का जो हृदय परिवर्तन हुआ है वह उसकी बातों से नहीं, अपितु बिल्ली की करुणामई आँखों को देखकर हुआ है, फिर भी अभिषेक मुस्कुरा दिया। उसकी मुस्कुराहट में एक विजय दिख रही थी, उसके विचारों की विजय। उन पाँच छः घंटों में सभी को बिल्ली से स्नेह हो गया, सभी ने आखरी बार बिल्ली से विदाई ली, सभी की आँखों से अश्रुधारा बह पड़ी। दो पहिया वाहन पर दोनों भाई-बहन बिल्ली को वापस करने निकल पड़े और अंत में बिल्ली अपनी माँ और भाई बहनों के पास पहुँच ही गई, नन्ही बच्ची को पाकर स्नेह से उसके पूरे बदन को जीभ से चाटने के लिए बिल्ली अपनी माँ से चिपक गई, उसके भाई-बहन भी आकर उस से सट गये, परिवार मिलने का यह दृश्य देखकर, किसी के भी आँखों में आँसू आ जाते। अंजलि ने अपनी सहेली से विदाई ली, और दोनों भाई बहन वापस घर को चल दिए।