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Ashish Kumar Trivedi

Drama

4  

Ashish Kumar Trivedi

Drama

मौत की आहट

मौत की आहट

3 mins
945

निर्मला कमरे में आई तो देखा कि चाय टेबल पर रखी हुई ठंडी हो गई थी। विवेक टक टकी लगाए दीवार पर टंगी घड़ी को देख रहा था। निर्मला ने धीरे से विवेक के कंधे पर हाथ रखा। विवेक ने उसकी तरफ देखा। कोई कुछ नहीं बोला। दोनों ख़ामोश खड़े एक दूसरे की पीड़ा को समझ रहे थे।

विवेक कितना खुश था। अपने भविष्य की कितनी योजनाएं बनाई थीं उसने। इस साल बेटी दसवीं कक्षा में थी। अपने कैरियर को लेकर वह पूर्णतया स्पष्ट थी। उसके कैरियर के लिए पैसों की व्यवस्था कैसे करनी है, फ्लैट की किश्तें कैसे चुकानी हैं इन सब के बारे में उसने सोंच लिया था। वह बहुत सब कुछ उसकी योजना के मुताबिक ही चल रहा था।

पर बीते कुछ दिनों से स्वास्थ कुछ ठीक नहीं था। पहले तो उसने सोंचा कि मौसम के बदलाव के कारण ऐसा हो रहा है। पर जब परेशानी बढ़ गई तो उसने अपने फैमिली डॉक्टर को दिखाया। उनके इलाज से भी जब कोई फायदा नही हुआ तो डॉक्टर ने उसे विशेषज्ञ के पास भेज दिया।

विशेषज्ञ ने कई सारे टेस्ट करवाए। विमला घबरा गई। विवेक ने तसल्ली दी।

"तुम तो यूं ही परेशान हो जाती हो। देखना सब ठीक होगा।"

लेकिन रिपोर्ट अच्छी खबर लेकर नहीं आई। रिपोर्ट देख कर निर्मला रोने लगी। वैभव ने भर्राई हुई आवाज़ में पूँछा।

"डॉक्टर साहब कितना समय है मेरे पास।"

कुछ क्षण शांत रहने के बाद डॉक्टर ने गंभीर स्वर में कहा। "आई एम सॉरी आप के पास अधिक दिन नहीं हैं। अधिक से अधिक तीन माह।"

विवेक ने पास बैठी पत्नी तरफ देखा। उसे लगा जैसे सब कुछ बिखर गया।

निर्मला ने उस घुटन भरी खामोशी को तोड़ते हुए कहा।

"चाय ठंडी हो गई। पी क्यों नहीं ?"

विवेक कुर्सी पर बैठ गया। दार्शनिक भाव से बोला।

"इंसान समय को अपने हिसाब से बांधना चाहता है। पर समय किसी के आधीन नहीं है।"

निर्मला ने समझाया।

"हम सब कठपुतली की तरह समय की डोर से बंधे हैं। वह जैसे नचाए। फिर भी व्यक्ति को अपना कर्म करते रहना चाहिए।"

विवेक इस बात पर कुछ झल्ला गया।

"मैं हर वक्त अपनी तरफ बढती मौत के कदमों की आहट सुन रहा हूँ। तुम कर्म की बात करती हो।"

"विवेक मैं तुम्हारा दर्द समझती हूँ। पर कुछ चीज़ें हमारे बस में नहीं हैं। मौत ने तुमको पहले ही चेतावनी दे दी पर अक्सर बिना बताए आकर दबोच लेती है। मयंक जीजा को जैसे अचानक ले गई। मैं जानती हूँ कि आसान नहीं होगा। पर जितना समय बचा है हमारे साथ काट लो। मैं और रिया तो अभी से तुम्हारी कमी महसूस करने लगे हैं।"

विवेक निर्मला की बात पर विचार करने लगा। उसने फिर घड़ी की तरफ देखा। टिक टिक टिक हर एक पल उसकी मौत को करीब ला रहा था। लेकिन वह क्यों मौत से पहले जिंदगी को अलविदा कहे।


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