Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Simmi Bhatt

Romance

1.8  

Simmi Bhatt

Romance

मैं तुझसे हूँ

मैं तुझसे हूँ

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63


मैं हर रोज़ तुझ को खुद में खोजती हूं, तू तो मुझमें ही है ना कहीं ,तो फिर मैं तुझे क्यों और कहां खोजती हूँ, क्यों हर रोज़ मुझे यह महसूस होता है कि तू मुझ से दूर हो रही है,इक परछाईं जैसे ,और मैं एक मासूम बच्चे के जैसे उस परछाईं के उपर हाथ रख के खुद को दिलासा देती हूँ। हाँ,मैंने तुझे पकड़ लिया।

रोज़ रात को आके तू मेरे तकिये में छुप जाती है और नींद से उठा कर मुझे चूम कर तू बोलती है आ मुझसे मिल बहुत दिन होए रूबरू हुए।

तो चल आज मुलकात करते हैैं आपस में दिल की बात करते हैैं। हाँ, आज मैं तुझे अपने हाथों से सजाऊंगी अपनी उंगलियों से बीनूंगी। प्यार से तेरा श्रृंगार करूंगी।बार बार तुझे देखूंगी।बार बार तुझे छू लूंगी तुझे अपनी हथेलियों में भर लूंगी ।नहीं पता मुझे तू मुझसे है या मैं तुझसे ! पर जब भी ज़िन्दगी की चढ़ाई चढ़ते चढ़ते मेरी सांसे बोझिल हो जाती हैं, तो तू मेरे सीने के बोझ को अपने आप में समां लेती है और मेरी आंखों को एक हंसी दे देती है।सांस लेना तो जैसे जिंदगी आदत है पर जब तू साथ होती है तो सांसे महकने लगती हैं, सिल्ली हुई आंखें भी धूप सी चमकती है

मेरा हाथ यूं ही थामे रहना जब तक आंख में नूर दिल में धड़कन और सांसों में गर्मी है।मेरे साथ रहना ।तू मुझसे नहीं, मैं तुझसे हूँ,हां मैं तुमसे हूं मेरी रचना मेरी कविता मेरी कहानियों तुम ही मेरी पहचान हो तुम ही मेरा चेहरा हो,तुम ही मेरा दिल हो तुम उसकी धड़कन हो,हाँ मैं तुमसे हूँ।


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