मैं मेरी सहेली
मैं मेरी सहेली
आज मैंने खुद के लिय छुट्टी ली। खुद के साथ बैठी,खुद से बातें किया। यूँ लग रहा था जैसे किसी अजनबी से या किसी ऐसे दोस्त से मिल रही हूँ जिससे बरसों से ना मिली ना कभी बातें की। मोबाइल और आधुनिकता के युग में भी इतनी दुरी। पर सही मायनों में ये दुरी आधुनिकता से पनपी व्यस्तता की है। तो आज मैंने खुद को समय दिया और खुद के विषय में सोचा। आप मुझे स्वार्थी समझेंगे। या फिर एक माँ, एक पत्नी, एक बेटी, एक अध्यापिका, एक गृह-लक्ष्मी को इज़ाज़त नहीं कि वो इन सब से निकलकर खुद के विषय में सोचे।
और ये भी कोई विषय है ? सुबह से रात तक हज़ारों काम मुहँ बाय मेरा इंतज़ार करते है और जिनकी पूर्ति कभी भी नहीं की जा सकती, ऐसे में ये 'खुद' कौन सा विषय है ? खैर मैंने अब छुट्टी ले ली है तो थोड़ी बातें भी सुन ही लूंगी।
तो सोचती हूँ कि अंतिम बार कब खुद के लिये, खुद के पसंद का कुछ बना कर खाया था ? आराम से बैठकर, बिना किसी जल्दी के चबा चबाकर स्वाद ले कर खाया था ? जल्दी से कुछ भी निगल लेने की आदत ने जिह्वा का स्वाद ही छीन लिया था शायद। कमरे में लगा ये बड़ा सा आइना बस पोंछकर साफ़ रखने के काम आ रहा था तो आज खुद को निहारा मैंने। उम्र से कही बड़ी दिखने लगी हूँ। बालो में कही-कही सफ़ेदी भी आ गई है। चार से पाँच घंटों की अकबकाहट वाली नींद ने ना जाने आँखों के नीचे कब मोटा काला घेरा कर दिया, कभी दिखा ही नहीं।
घर में पति, बच्चा,परिवार को और विद्यालय में वहाँ के लोगों को खुश करते-करते मैंने कब खुद के लिय हँसना छोड़ दिया ये सही से याद नहीं है। हर समय जल्दी में रहने वाली मैं खुद को नज़र अंदाज़ कर क्या पा लिया ? यहाँ तक कि अपने शरीर को कभी शरीर नहीं समझा। क्यूँ खुद को अनदेखा करती रही। कभी वो क्यूँ नहीं किया जो मेरा मन करता था। हमेश ही बहाने देती रही। खुद को कही बाहर ले जा कर के, खुद को कोई अच्छा सा उपहार क्यों नही दिया ? एक कप कॉफ़ी के साथ खुद को सराहते हुए क्यों ना कहा कि तुम इश्वर की बनाई एक सुन्दर रचना हो, तुम्हें हर कुछ पाने का अधिकार है और तुम्हे भी खुश रहना होगा। किसी और के लिये नहीं, बस खुद के लिय। क्यूँ कि तुम तुम हो दूसरी कोई और नहीं।
तो बस आज मैंने खुद से ये वादा किया कि मैं खुद को अब अनदेखा नहीं करुँगी। खुद के लिय वक़्त निकालूँगी और खुद से प्रेम करुँगी। वो सब करुँगी जिनके साथ मैंने समझौता कर लिया था। क्या मैं गलत हूँ ? क्या खुद को दुखी कर के कोई दूसरों को खुश कर पाया है ? नहीं, बिलकुल नहीं। मैं खुद ही खुद की सहेली बनूँगी।