अपना घर
अपना घर
रसोई में खट-पट की आवाज़ सुनकर ममता की नींद खुल गयी। घड़ी देखा तो सुबह के छः बज रहे थे। उसने बिस्तर से उठने की कोशिश की पर उठ ना पाई। विवेक ने आँखें मूंदे ही कहा "कहाँ जा रही हो? रात भर तेज़ बुखार से तप रही थी और सुबह होते तुम्हें काम की चिंता होने लगी?" ममता ने धीरे से जवाब दिया "माँजी अकेले नाश्ता बना रही होगी, उनसे इस उम्र में अब काम कहाँ होता है। "विवेक ने झुंझलाकर कहा "तो तुम जान दे दो बस, अरे ठीक है थोड़ा आराम कर लो फिर कर लेना "ममता भी जानती थी कि चाह कर भी वो आज बिस्तर से उठ ना पायगी। पिछले तीन दिनों से उसे दस्त और बुखार लग रहा था। पर कल रात तो जैसे एक एक पल गिनते बिता। वो लाचार सी चुपचाप लेटी रही। शादी के बाद इन आठ वर्षो में शायद ये पहली बार था कि ममता इतने जोरों से बीमार पड़ी हो। कुछ देर की खटपट के बाद सब शांत हो गया पर ममता मन ही मन पछता रही थी। शादी के बाद उसने घर की सारी जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली। सासु माँ को रसोई से छुटकारा मिल गया और अब सारा दिन भजन-कीर्तन में बीतने लगा। देवर-ननद,सास-ससुर सब की इच्छाओं का ध्यान रखते कब आठ वर्ष बीत गए पता भी ना चला। खैर,लड़की का यही तो संसार होता है सबकी सेवा करना और प्रेम से ससुराल में रहना।
ऑफ़िस जाते वक़्त विवेक ने माँ से कहा "माँ, ममता की तबियत काफ़ी ख़राब हो गई है, रात भर बुखार से तप रही थी। उसके कमरे में दवाइयाँ रखी है, कुछ खिला देना ताकि वो दवाइयाँ खा सके। माँ ने बड़ी बेरुखी से कहा "तो बहू को उसके मायके छोड़ आ और पूरी ठीक हो जाए तो लाना। "इसपर विवेक तुनक कर बोला" कैसी बातें कर रही हो माँ? ऐसी हालत में उसे कैसे उसके मायके छोड़ आऊं? लोग क्या कहेंगे? पिछले दो वर्षो से वो अपने मायके ना जा पाई है और अब जब वो बीमार है तो उसे मायके छोड़ आऊं? "बोलते-बोलते वो बाहर निकल गया। विवेक के जाते ही सासु माँ ससुर जी पर बरस पड़ी "देखो जी मुझसे ना होगा ये सब। बहू की सेवा का रिवाज़ हमारे यहाँ नहीं है। वो और होती है सास जो बहू के पैर दबाती है, मुझसे ये सब ताम-झाम ना होगा। "ससुर जी सिर झुकाए सुनते रहे सब। और सब सुन रही थी ममता। आँखों में आँसू लिये। इन आठ वर्षो में अपने कर्तव्य बड़ी निष्ठा से निभाती रही वो। एक दिन की छुट्टी भी ना ली। मुश्किल से दो बार अपने मायके जा पाई थी और तीसरी बार तो स्टेशन से लौट आई थी क्योंकि उसकी बड़ी ननद अचानक से आ गई थी। और आज एक दिन जब वो इतनी बीमार है तो बोझ बन गयी है अपने ही घर पर।अपना घर? क्या सच में ये उसका अपना घर था? बचपन से ही लड़कियों को सिखाया जाता है कि ससुराल ही उनका अपना घर है। पिता के यहाँ तो वो पराया धन है और ससुराल में वो पराय घर से आई समझी जाती है। पूरी उम्र खुद को साबित करते बीत जाता है। तो लड़की का वास्तविक घर कौन सा है? उसकी जन्मभूमि या कर्मभूमि? शायद इसका उत्तर आज तक नहीं मिला।