कुमार अविनाश (मुसाफिर इस दुनिया का )

Inspirational

5.0  

कुमार अविनाश (मुसाफिर इस दुनिया का )

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मैं जीता हूँ तो वजह है आप

मैं जीता हूँ तो वजह है आप

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जीवन के अधिकतम दुख इसीलिए हैं कि तुमने जीवन को नदी की तरह नहीं देखा है। मेरा आशय है कि तुम्हारे जीवन में जो भी है, तुम उसे पकड़ रखना चाहते हो। और यहां कोई भी चीज पकड़कर नहीं रखी जा सकती। यहां कोई चीज रुकती नहीं, ठहरती नहीं। तुम हारोगे। तुम विषाद से भरोगे। विफलता तुम्हारे जीवन का अंग हो जाएगी।


और तुमने हर चीज पकड़नी चाही है। जो भी आया, तुमने उसे पकड़ रखना चाहा है। तुम्हारे घर एक बेटा पैदा हुआ और तुमने पकड़ रखना चाहा है। लेकिन यह बेटा जाएगा। यह बड़ी दुनिया पड़ी है; इसे बहुत खोज करनी है, इसे बहुत दूर की यात्राएं करनी हैं। तुमने अगर इसे पकड़ा, तो तुम दुख पाओगे। तुम्हें छोड़ने की तैयारी होनी चाहिए। जैसे एक दिन बच्चा माँ का गर्भ छोड़ देता है, ऐसे ही एक दिन बच्चा माँ की छाया भी छोड़ देगा। जाएगा दूर—स्वयं की खोज में लगेगा। और स्वयं होने के लिए माता—पिता को छोड़ना ही पड़ेगा। लेकिन अगर माँ -बाप पकड़ रखना चाहें, तो कष्ट खड़ा होगा, उनके लिए भी कष्ट खड़ा होगा, बेटे के लिए भी कष्ट खड़ा होगा।

तुम्हारा किसी से प्रेम हुआ, तुम जल्दी से पकड़ रखना चाहते ह और यही हम हर चीज में कर रहे हैं। एक सुख आया कि हमने मुट्ठी बांधी और हमने कहा, अब कभी जाना मत। सुख के पक्षी को बंद कर लिया मुट्ठी में। उसी बंद करने में सुख का पक्षी मर जाता है।


जो आया है, वह जाएगा। यही तो संदेश है सारे बुद्धों का—परिग्रह नहीं। अपरिग्रह का अर्थ इतना ही है कि चीजें आती हैं, जाती हैं, तुम पकड़ो मत। जब हों, तब प्रफुल्लित रहो। जब चली जाएं, तब भी प्रफुल्लित रहो। तुमने जहां पकड़ना शुरू किया, जहां तुमने नदी की धार रोकी और बांध बनाया, वहीं गंदगी, वहीं सड़ाध पैदा हो जाती है। नदी का सरोवर बन जाना नर्क है। और हम सब सरोवर बन जाते हैं। हम बड़े भयभीत हैं परिवर्तन से। आकांक्षा पूरी नहीं हो सकती, इसलिए दुखी होगा। दुख जिंदगी नहीं लाती, दुख तुम्हारी आकांक्षा लाती है। जो जीवित है, वह मरना नहीं चाहता। यह कैसे होगा?


जो जन्मा है, मरेगा भी। जो जवान है, का भी होगा। इस सत्य को देखो, समझो, और इस सत्य के साथ राजी हो जाओ, पकड़ो मत। जब जवानी बुढ़ापा बनने लगे, सहज भाव से बूढ़े हो जाओ। जब जिंदगी मौत में ढलने लगे, सहज भाव से मौत में उतर जाओ। यही जीवन का प्रवाह है।


जो आए, उसे अंगीकार कर लो। जो जाए, उसे अलविदा। ऐसा आदमी दुखी नहीं होगा। कैसे दुखी होगा? उसने दुख का मूल सूत्र ही तोड़ दिया। उसने दुख के आधार जला दिए। उसने जड़ काट दी।

जब प्रेम आए, तो नाचो। और जब प्रेम चला जाए, तो रोओ मत। जो आया था, वह जाएगा ही। फूल सुबह खिला था, सांझ मुर्झाएगा ही। और अगर तुमने चाहा कि फूल कभी न मुर्झाए, तो फिर प्लास्टिक के फूल खरीदोगे, फिर असली फूल तुम्हारे जीवन में नहीं रह जाएंगे। फिर जाओ, बाजार से प्लास्टिक के फूल खरीद लो, फिर वे कभी न मरेंगे, क्योंकि वे पैदा ही नहीं हुए। वे कभी न मरेंगे, क्योंकि वे जिंदा ही नहीं हैं।

तो नदी में बहता हुआ जल और तुम्हारी बोतल में बंद जल में उतना ही फासला है, जितना असली फूल और नकली फूल में है। असली फूल की खूबी क्या है? खूबी यही है कि वह प्रतिपल बह रहा है। सुबह जो फूल खिला था, वह सांझ तक बह गया।


बुद्ध ने कहा है : सब सतत प्रवाह है। यहां विश्राम नहीं है। यहां विराम नहीं है। आधुनिक विज्ञान इस बात से राजी है। पश्चिम के बहुत बड़े विचारक एडिंग्टन ने लिखा है कि दुनिया की भाषाओं में एक शब्द बिलकुल झूठा है, वह शब्द है—रेस्ट। ऐसी कोई चीज होती ही नहीं। विराम होता ही नहीं। विश्राम होता ही नहीं। सब चीजें चल रही हैं, प्रतिपल चल रही हैं।

तुम सोचते हो, जब आदमी मर गया, तो सब ठहर गया! कुछ भी नहीं ठहरा। तब भी प्रवाह हो रहा है।

तुम्हें पता है! आदमी के मर जाने के बाद भी दाढी और बाल बढ़ते रहते हैं, नाखून बढ़ते रहते हैं! तुम्हें पता है। आदमी मर जाता है, तो आदमी मर गया होगा, लेकिन उसके भीतर हजारों—लाखों जंतु हैं, वे सब गतिमान हैं।


आदमी मर गया, तुमने उसकी लाश जाकर दबा दी मिट्टी में; लेकिन अभी प्रवाह चल रहा है। हड्डियां गलेगी; वर्षों लगेंगे। मिट्टी फिर मिट्टी बनेगी। हर चीज फिर वापस अपने स्रोत में गिरेगी। प्रवाह जारी है।

और जो आज तुम्हारी हड्डी है, वह कल किसी और की हड्डी बनेगी। और आज जो तुम्हारे भीतर खून की तरह बह रहा है, कल किसी और के भीतर खून की तरह बहेगा। जो अभी वृक्षों में हरा है, कल तुम्हारा खून होगा। आज तुममें जो खून है, कल वृक्षों की जड़ों में खाद बनेगा।


सब चल रहा है, कुछ भी ठहरा हुआ नहीं है। एक चीज दूसरे में बदलती जाती है, रूपांतरण होता है। न तो कोई चीज कभी पैदा होती है, न कोई चीज कभी वस्तुत: समाप्त होती है। यात्रा है। न कोई प्रारंभ है, न कोई अंत है।



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