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Shiv Prasad Maurya

Classics

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Shiv Prasad Maurya

Classics

मैं और मेरा बचपन

मैं और मेरा बचपन

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दूर दूर तक ऊसर भूमि का इलाका, कोई घर-बार नहीं। हमारा गाँव ऊसर के इलाके में बसा हुआ अति पिछड़ा गाँव है। हम अपने पालतू पशुओं को चराने के लिए घर से सुदूर तालाब के किनारे लेकर जाते थे। जिसमें मैं राजेश, राकेश, देवेन्द्र और बहुत से लड़के होते थे।हम लोग सुबह नाश्ता करके 8:00-8:30 बजे पशुओं को चराने के लिए छोड़ देते थे। चारों ओर ऊपर ही ऊसर था।पशु भी इतने सधे थे कि वे चले जाते थे उसी तालाब के पास। दिन भर चरते तथा प्यास लगने पर तालाब में जाकर पानी पीते।गाये और गाय के बछड़े पानी पीकर बाहर आ जाते, परन्तु भैंसें और उनके बच्चे तालाब में काफी देर तक नहाते थे।
                          उस दौरान हम सभी विभिन्न प्रकार के खेल खेलते थे।मेरा पसंदीदा खेल कबड्डी, और बड्डीसुर था।हम लोग और भी खेल खेलते थे जैसे गिल्ली-डंडा, गोबर धन धन आदि। और मनोरंजन के बैकल्पिक साधन नहीं हुआ करते थे। मेरे पिता जी खेती बाड़ी के साथ मजदूरी का काम भी करते थे। पशुओं के होने से दूध और उससे प्राप्त अन्य चीजें जैसे दही, छाछ(मट्ठा), पनीर, और मक्खन आदि की कमी नहीं थी। वैसे खाने पीने की चीजों की कोई कमी नहीं थी। पिता जी इन सारी प्राथमिक आवश्यकता की चीजों की उपलब्धता सुनिश्चित करते थे।
                           गांव में ही एक प्राथमिक विद्यालय था।एक कमरा बना हुआ था जिसमें कुर्सी, लक्कड़ का ब्लैक बोर्ड,टाट पट्टी एवं रजिस्टर आदि सामान रखा जाता था। हम बाग में बैठकर पढ़ते थे।उस समय हमारी शिक्षा व्यवस्था भी अति पिछड़ी अवस्था में थी। जैसे तैसे हमने प्राथमिक शिक्षा गाँव से ही प्राप्त किया।
                       उस दौर से आज के दौर की तुलना करें तो ऐसा लगता है कि हमारा रहन सहन,खान पान तथा पारिस्थितिक परिवेश सब कुछ बहुत बदल गया है। हमारे गाँव के सभी सदन मिट्टी के और घास फूस के छप्पर के बने होते थे। परन्तु आज सबके मकान पक्के बन गये हैं। बैलों से खेतों में जुताई बुआई और गन्ना आदि की पेराई आदि कार्य बैलों द्वारा किया जाता था। आजकल खेती के बहुत से कार्यों को हम ट्रैक्टर द्वारा थोड़ी ही समय में कर लेते हैं। अर्थात आज का युग मशीनरी युग है। आजकल हम उस जमाने में की जाने वाली मेहनत का एक चौथाई (१/४) से भी कम मेहनत करते हैं। कुल मिलाकर हम अब पूर्णतः मशीनों पर आश्रित हो गये हैं।
                    ये सारे बदलाव और औद्योगिक विकास ने हमारे जीवन जीने की शैली ही बदल डाला है और तो और प्राकृतिक तन्त्र को भी इतना ज्यादा प्रभावित कर डाला है कि हम अनेक प्रकार के लाइलाज बीमारी को भी जन्म दे दिया है।
                      आज उन दिनों की वे सारी बातें अच्छी प्रतीत होती है कि कम से कम उन दिनों इतनी बीमारियां तो नहीं थी। और लोगों में आपसी सौहार्द और प्रेम था। आपसी सहयोग की भावना से एक साथ जीवन यापन करते थे।


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