मै नदी हूं
मै नदी हूं
हाँ मैं नदी ही तो हूं। लोगो ने मुझे माँ का दर्जा दे दिया है गँगा माँ औऱ मैं भी एक माँ की ही तरह उनकी सारी गलतियों को माफ करती चलती हूं।
पता नही कब ये लोग समझेगे कि उनकी छोटी छोटी लापरवाहियों से मेरे दिल पर क्या गुज़रती है। कोई मुझमें फूल डाल
जाता तो कोई दिया। कोई अधजला शव ही मुझमें डाल जाता।
औऱ कुछ तो इतने लापरवाह की अपनी फैक्टरी का कूड़ा भी इसी में डलवा देते कैसे समझाए इन्हें।
कहते है गँगा मोक्ष दायिनी होती है
पर यहाँ तो मै खुद मोक्ष के लिए तरस रही हूं।
अब तो कोई आ कर मुझे इस संकट से बचाये तभी चैन की सांँस मिलेगी।