बीती रात
बीती रात
कितनी सुंदर लगती है ये कविता
सीमा जब भी सुनती उसे अपना बचपन याद आ जाता औऱ वो मुस्कुरा उठती । बचपन मे पढ़ायी गयी यह कविता उसे बहुत प्रिय थी ।
सीमा अपने क्लास की मॉनिटर थी
उसे सब बच्चो को कविता क्लास में ज़ोर ज़ोर से पढ़वाना होता था । पर जब भी'' सोहन लाल द्विवेदी ''जी की इस कविता का ज़िक्र होता तो वो किसी को मौका नहीं देती
औऱ खुद ही ज़ोर ज़ोर से पढ़ने लगती-
उठो लाल अब आँखे खोलो
पानी लाई हूं मुँह धोलो
बीती रात कमल दल फुले
उनके ऊपर भंवरे झूले
सच ही है कुछ बातें हमारे ज़ेहन में सेट हो जाती है । ये कविता भी उन्ही में से हैं।
