मानवता
मानवता
समसेर और अनमोल घनिष्ठ मित्र थे। दोनों विद्यालय में एक साथ रहते थे।
कृष्ण और सुदामा जैसी मित्रता थी दोनों के बीच।होली के अब चार दिन शेष थे।अनमोल ने समसेर को होली के दिन घर आने के लिए निमंत्रण दिया।होली के दिन का बेसब्री से उन दोनों मित्रों को इंतजार था।आखिर वो दिन आ ही गया। समसेर के अब्बू पूरी तरह सहमत नहीं थे। समसेर को अनमोल के घर भेजने के लिए। दस वर्षीय समसेर ने अब्बू से प्रश्न किया "अब्बू आप क्यूं नहीं जाने दे रहें हैं मुझे अनमोल के घर ?
मैं चाहता हूं उसके साथ होली खेलना और खूब मस्ती करना। आज उसके घर में ढ़ेर सारे पकवान बनेंगे। ये सब सुनते ही उसके अब्बू ने एक जोर का तमाचा उसके गालों पर लगा दिया। अब समसेर चूप हो गया।उसने न जाने का फैसला लिया।अनमोल कुछ मिनट पहले ही समसेर के घर पहुंच चुका था।
उसने सारी बातें सुन ली थी।अनमोल ने कहा "अंकल !
आपने थप्पड़ लगाकर समसेर को मेरे घर आने से मना कर दिया। आपने ऐसा कर के अच्छा नहीं किया है !
हम दोनों मित्रों के बीच में अथाह प्रेम है। हम दोनों के बीच के प्रेम को मत बाँटिये अंकल जी !
"अनमोल के इस बात ने समसेर के अब्बू की आँखें खोल दी थी। दोनों को होली एक साथ मनाने के लिए अब उसके अब्बू ने हाँ कर दी थी और दोनों के जाने के बाद उन्हें ख़ुद पर बहुत अफसोस होने लगा। धर्म अपनी जगह पर है पर हमें हर पर्व चाहे हिंदू का हो या किसी अन्य धर्म का हमें मिलजुलकर मनाना चाहिए। इन्हीं बातों को मन ही मन समसेर के अब्बू विचारने लगे। आज छोटे बच्चे ने मानवता का पाठ समसेर के अब्बू को पढ़ा दिया।
