लॉक डॉउन
लॉक डॉउन


महामारी के इस विकट समय में भी कई अच्छी बातें सीखा जाएगा यह वक्त।
रिश्तों की, वक्त की, स्वास्थ्य की धन की अन्न की हर चीज की महत्ता जन गए हम आप।
हम 18 मार्च को ही नोएडा से इंदौर आए थे। घर में सिर्फ बेटे के एक पीजी रूम का सामान था, एक इंडक्शन कुछ बर्तन, थोड़ा सा राशन। 22 को जनता कर्फ़्यू की घोषणा हुई तो, डोसा बेटर और कुछ राशन ले आए थे को पतिदेव सन्डे तक प्रोजेक्ट से फ्री हो जायेगे तो खरगोन मम्मी से मिलने चले जाएंगे।
22 को रात को जहां पता चला ये lockdown 21 दिन बड़ाया जा रहा है। हम भागे कुछ राशन लेकर आ गए। कुछ सुखी दाले, मूंग चना कुछ नवरात्रि के लिए समान भी जुटा लिए। पहले कुछ दिन बिना फ्रीज बिना वाशिंग मशीन के भी अच्छे से कम चाल गया।
घर में सब ने काम विभाजित कर लिए गए। पतिदेव और बच्चों ने भी कुकिंग में अपने हाथ आजमाए। बरतन पोछा झाड़ू जैसे काम में भी मजा आ सकता है ये सोचा ना था।
धीरे धीरे राशन ख़तम होने लगा वक्त सबसे बड़ा शिक्षक है, आप परिस्थितियों के हिसाब से जीना सीख
ही लेते है आपके पास दो विकल्प होते है या तो आप दुखी होते रहे या हँसी खुशी मुकाबला करे आनंद उठाए।
सालों से छूटा हुआ योग प्राणायाम फिर स्टार्ट किया गया, ना कोई चिंता की कोई आ गया तो क्या कहेगा, जैसे चाहे पहनो रहो और सिर्फ अपनों के साथ सुखद पलों का आनंद लो।
कम से कम सामग्री में भी स्वादिष्ट खाना बना ले वहीं तो कुशल गृहणी है।
बचपन से बहुलक्षमी कहानी मेरी पसंदीदा रही है।
बेसन को पानी घोल चिले बना लिए, मेथीदाना हरी मिर्च की सब्जी बन गई
काले चने उबाल रसे वाली सब्जी के साथ शाम को भेल बन गई।
सबसे पहले याद आई उन बुजुर्ग लोगो की जिनके बच्चे बाहर है और वो अकेले है ..
नियम से उनकी खैरियत पूछना उनकी ऑनलाइन ऑर्डर्स में हेल्प करना और उनकी खुशी को सुनना एक स्वर्गीय अनुभव है। सारी सहेलियों के साथ एक बात डिसाइड की अब कोई नेगेटिव बातचीत नहीं। सिर्फ ख़ुशियाँ बाँटी जाए
इस कोरोना रण समर को भी हम सब अपनी सकारात्मकता और आपसी सद्भाव से जीत ही जायेगे।