AKSHAT YAGNIC

Romance

5.0  

AKSHAT YAGNIC

Romance

लौट आओ ना

लौट आओ ना

12 mins
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4 दिसम्बर 2018 रात 11:55 बजे

 उसकी नज़र आरती के काँपते हुए होठों पर पड़ी। उसकी आँखें शर्म से झुकी जा रही थी और उसके काले घने बाल हवा के साथ लहरा कर दिव्य के चेहरे पर आ रहे थे। हल्की सी बारिश की बूंदें आरती के माथे से होते हुए उसके गालों पर फिसल रही थी। अब उसे आरती की सांसें महसूस होने लगी थी। आरती के चेहरे पे एक हल्की सी मुस्कान उभर आई और उसने कहा “ बुद्धू ,अब खड़े खड़े क्या सोच रहे हो ? “ दिव्य की आँखों से दो आँसू बह निकले और उसने कहा “मैं लौट आया हूँ आरती“। आरती अपना सर उसकी छाती पर रख कर धीरे से बोली “ हाँ बुद्धू, हाँ।“ तो क्या तुम मुझसे शादी करोगी ?” आरती ने जैसे ही ये सुना, उसने अपने होठों को दिव्य के होठों पर रख दिया और धीरे से बोली “ हाँ बुद्धू। मैं तुम्हारी हूँ।“ और आसमान से गिरती बारिश के साथ ही दोनों एक दूसरे की साँसों मे भीग गए।

4 दिसम्बर 2018 सुबह 10 बजे

आरती ने जैसे ही अपने कैबिन का दरवाजा खोला, ऊपर से रंग बिरंगे कागज के छोटे छोटे फूल उसके आगे गिर पड़े। उसने देखा की उन फूलों के बीच एक छोटा सा कागज भी है। कागज को हाथ में लेने के लिए वो जैसे ही झुकी, वैसे ही कैबिन में एक आवाज़ गूंजी “ आरती, हर सुबह जब सूरज की किरणें तुम्हें छूती है तो ऐसा लगता है जैसे शांत समंदर की लहरें बहती हवा को छू रहीं हो। तुम जब अंगड़ाई लेती हो तो लगता है कोई घना बादल अपने अंदर ढेर सारा पानी समेटने की कोशिश कर रहा हो। तुम्हारे होंठों को छूती हुई जब कोई मुस्कान निकलती है ना, तो ऐसा लगता है बस जैसे हर पल तुम्हारी अलग अलग मुस्कुराहटों को अपने दिल के कैमरे में बंद कर लूँ और फिर बार -बार उन्हे देखता रहूँ। इस कागज को खोलने से पहले तुम ये समझ लो की आज का दिन तुम्हारे लिए यादगार होने वाला है। आवाज़ सुनते सुनते आरती आगे बढ़ी और उसने देखा की उसकी टेबल पर एक सीडी प्लेयर रखा था जिसके पास रखे एक स्पीकर की मदद से पूरे कैबिन में वो आवाज़ गूंज रही थी। वह आवाज़ जो उसने सुनी, उससे उसके रोंगटे खड़े हो गए। उसने ये आवाज़ जब जब भी सुनी थी, उसका दिल जैसे झनझना गया था।उसने एक पल को खड़े रह कर कुछ सोचा और फिर काम में मन लगाना ठीक समझा कि तभी कैबिन के दरवाजे पे दस्तक हुई। रीटा,जो उसके साथ काम करने वाली एक लड़की थी, अंदर आते हुए बोली “ मैडम आज सुबह सुबह एक लड़का आपके लिए एक पार्सल छोड़ कर गया था और मुझे उसने ये साफ साफ कह दिया था की ये सिर्फ आपको ही दूँ।

मैंने उससे उसका नाम पूछा तो वह बोला “मैं आरती का एक खास दोस्त हूँ।“ इतना कह कर रीटा ने एक पैकेट आरती को थमा दिया। “थैंक यू रीटा, मैं इसे देख लूँगी।“ रीटा के बाहर जाते ही आरती ने जल्दी से पैकेट खोला तो उसमे एक छोटी डिब्बी थी जो दिल के आकार की थी। उसने उस डिब्बी को खोल कर देखा की उसमे एक बहुत ही प्यारी सी अंगूठी रखी थी। अंगूठी के बीचों बीच एक छोटा सा कागज था जिसपे लिखा था “ये अंगूठी सिर्फ तुम्हारे लिए बनी है”। अचानक उसके फोन की घंटी बजी “हैलो आरती ? 1 बजे शालीमार रेस्तरां के टेबल नंबर 6 पर मैं तुम्हारा इंतज़ार करूंगा।“ इतना कह कर उस आदमी ने फोन रख दिया। “हैलो मिस्टर ? आपको मेरा नंबर कहाँ से....

आरती कुछ बोल नहीं पाई। उसने फिर से उसी नंबर पर फोन करना चाहा पर मोबाइल स्विचड ऑफ था। उसने सोचा कैसा इंसान है ये और कौन है जो इस तरह से मुझसे मिलना चाहता है। नहीं, मैं कैसे जाऊँ ?उसका मन थोड़ा घबराया पर उसने फिर से उन फूलों और अंगूठी को देखा। सभी उसकी पसंद से मेल खाते थे। किसी को उसकी पसंद का बहुत गहराई से ध्यान था। आखिर कौन हो सकता था वो ? उसने सोच लिया था की वो शालीमार रेस्तरां नहीं जाएगी। जैसे जैसे एक एक घंटा बीत रहा था, उसकी धड़कनें तेज़ होती जा रही थी। उसने जब अपना मन टटोला तो उसे लगा की एक बार चल के देखना तो चाहिए की आखिर माजरा क्या है। इसी उधेड्बुन में एक बजने को आई और देखते ही देखते उसने खुद को शालीमार रेस्तरां में पाया। रिसेप्शन पर उसने टेबल नंबर 6 के बारे में पूछा तो वहाँ बैठी लड़की ने जवाब दिया “ आरती जी मिस्टर दिव्य ने आपके नाम से टेबल बुक करवाया हुआ है। दिव्य॰ ॰ ॰ ये नाम सुनते ही उसके रोंगटे खड़े हो गए। वो धीरे धीरे टेबल 6 की ओर बढ़ी और उसने देखा की वहाँ एक आदमी बैठा था जो अपनी कॉफी पीते पीते बाहर झील की ओर निहार रहा था। आरती जैसे ही उसके पास पहुंची वो मुस्कुरा कर उठा और बोला “आओ आरती। मैं तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा था।“

उसने अपने हाथों से इशारा किया और अचानक चारों तरफ पर्दे गिर गए। पूरे रेस्तरां में अंधेरा सा छा गया। दिव्य ने उसका हाथ थामा और उसे अपनी ओर लाते हुए उसकी कमर पर हाथ रखा और धीरे धीरे डांस करने लगा। आरती के मनपसंद गानों के साथ जब वह उसे बाहों में लेकर डांस करता तो चारों तरफ से लोग तालियाँ बजाते। आरती को थामे हुए वो बोला “ तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो। तुम्हारी सादगी ने मेरी आत्मा को छू लिया है। क्या तुम मुझसे॰ ॰ “नहीं अभी नहीं, आरती ने उसकी बात को बीच में ही काट दिया। तुम पहले ये बताओ की तुम इन दो सालों में कहाँ थे ? मैं तुम्हारा इंतज़ार करते करते थक गई थी दिव्य। कहो न। क्या तुम्हें मेरी याद नहीं आई ? दिव्य ने अपनी गर्दन झुकाई और बोलना शुरू किया “ आरती मैं अगर ये कहूँ की मैं खुद को ही भूल गया था तो ? अपने काम में ,अपनी जिम्मेदारियों में मैं तुम्हें तुम्हारा वक़्त जिसकी तुम हकदार थी वो देना भूल गया था। प्यार तो मैं आज भी तुमसे उतना ही करते हूँ आरती। मुझे लगा समय के साथ प्यार की परिभाषा भी बदलती है। पर आ ये तुम्हारे सामने बैठा है न, वो तुम्हारा दिव्य है, कोई और नहीं।

इतना कहना था की आरती की आँखों से हल्के से दो आँसू निकलने लगे। दिव्य ने आगे बढ़ कर उन्हें पोंछा और कहा “नहीं आरती नहीं। तुम्हारी कोई गलती नहीं है।“ “मैं गलती की वजह से नहीं बुद्धू, खुशी के मारे आँसू टपका बैठी। देर से ही सही तुम आए तो। तुम्हें इस बात का एहसास तो हुआ की मुझे उस दिव्य की ज़रूरत है जिससे मैंने प्यार किया था।

आरती की पसंद का खाना खाने के बाद दिव्य ने उठते हुए कहा “ चलो आरती, मैंने फिल्म की टिकिट बूक करवाई है।“ “पर मुझे तो ऑफिस जाना है दिव्य।“ पर दिव्य ने उसका जवाब दिये बिना उसका हाथ पकड़ा और उसे लेकर सिनेमा हाल मे जा पहुंचा। 5 मिनट बाद स्क्रीन पर एक मैसेज आया “आई लव यू आरती। मुझसे शादी करोगी ?” - दिव्य। और इस मैसेज को देखते ही बाकी लोग तालियों के साथ उस व्यक्ति को ढूँढने लगे जिसका ये मैसेज था। अचानक एक बड़ी रोशनी दिव्य पर पड़ी और एक आवाज़ गूंजी “ हैलो आरती जी। ये मैसेज आप ही के लिए था दिव्य की तरफ से। तो आप जवाब दे दीजिये।“ और एक और रोशनी आरती पर पड़ी। अब पूरे सिनेमा हाल में बस उन दोनों पर ही रोशनी थी। लोगों ने तालियों के साथ दोनों का नाम पुकारा। कुछ लड़कियों ने ज़ोर से चिल्लाहट भरी “हाँ कह दो आरती।“ आरती खड़ी हुई ,शरमाई और दिव्य का हाथ अपने हाथ मे लेकर झट से उसे हाल के बाहर ले गई। “तुम क्या पूरे बुद्धू हो ? ये क्या किया तुमने ?” आरती ने दिव्य की आँखों मे देखते हुए कहा। “क्या ? मैंने क्या किया ? मैंने तो सिर्फ एक आसान सा सवाल पूछा। बोलो ना ,करोगी मुझसे शादी ?” आरती ने दिव्य के चहरे पर अपना हाथ रखा और धीरे से बोली ”पगले” और इतना ही कह कर चल पड़ी। दिव्य पीछे से आते हुए उससे कहने लगा “मैं आज ही इस सवाल का जावाब लेकर रहूँगा”।

फूल भेज दिए, मेरी पसंद का खाना खिलाया, दुनिया के सामने मुझसे अपने प्यार का इज़हार भी कर दिया। अब क्या प्लान है मिस्टर दिव्य ?” यह कहते हुए आरती की आँखों में चमक थी। “चलो मेरे साथ”। “पर कहाँ ? आरती ने हैरान होकर पूछा। “अरे चलो तो।“ गाड़ी सीधे आरती के घर के सामने जाकर रुकी। आरती झट से दिव्य की ओर देख कर बोली “ हम यहाँ क्यूँ आए हैं ? तुम पागल हो क्या ?” “नहीं। मैं बड़ा समझदार हूँ। अरे तुमसे शादी करने के लिए तुम्हारे माता पिता से तो बात करूंगा न।“ इतना कह कर ही दिव्य ने गाड़ी पार्क कर के दरवाजे पर लगी घंटी बजाई। दरवाजा खुलते ही एक आदमी ने गेट खोला और हाथ जोड़ कर अभिवादन करने ही वाला था की दिव्य बोल पड़ा “ रुकिए रुकिए। मैं आपसे बहुत ज़रूरी बात करने आया हूँ और आपकी बेटी भी मेरे साथ है। क्या मैं अंदर आ सकता हूँ ? दरवाजे के उस तरफ खड़ा आदमी सकपकाया सा पीछे से आती हुई आरती को देख कर बोला “ बेटा ये अचानक..... “

“पापा आप अंदर चलिये कुछ बात करनी है इन मिस्टर को आपसे। उधर से एक महिला आई और दिव्य की ओर देख कर मुस्कुराइ पर दिव्य ने उन्हे कुछ बोलने का मौका नहीं दिया और बोला“ देखिये आप यहाँ बैठ जाइए कुछ ज़रूरी बात है।“ “मां सुनो। तुम बैठो ये कुछ कहेंगे तुमसे” आरती बोल कर अपनी माँ के पास गई और उन्हे बैठाकर दिव्य की ओर देखने लगी। दिव्य ने कहना शुरू किया “ देखिये। मैं आपकी बेटी से प्यार करता हूँ। उससे शादी करना चाहता हूँ। “आप ये क्या....आरती के पिता कुछ कह पाते उससे पहले दिव्य बीच मे बोल पड़ा “ देखिये आप मुझे अपनी बात कह लेने दीजिये। मैं आपकी बेटी को लगभग ढाई साल से जानता हूँ। हम बहुत बार मिले हैं। साथ भी रहे हैं। पर बीच मे हमारे रिश्ते मे कुछ खटास सी आ गई थी। मुझे लगने लगा था की जैसे हम साथ होकर भी साथ नहीं है। पर आज मैं लौट आया हूँ। वो ही दिव्य लौट आया है जिसने आपकी बेटी से प्यार किया था। इसी तरह जीवन में आने वाली हर खटास को इसके साथ मिल कर लम्हों में मिठास घोल देना चाहता हूँ।“ दिव्य आरती की ओर बढ़ा और उसका हाथ पकड़ कर उसकी माँ की ओर देखते हुए बोला “ आपने आरती को जन्म दिया है।

मैं इसके लिए आपको धन्यवाद कहता हूँ। इसके प्यार ने मुझे खुद से मिलवा दिया और मेरे अंदर एक नयी ऊर्जा का संचार किया है। इसकी छोटी छोटी बातों से ,इसकी बचकानी हरकतों से, इसके पागलपन से, इसकी समझदारी से मैंने प्यार किया है। और मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ की मैं आरती का जीवन भर साथ दूंगा। मैं अब आपसे मिलता रहूँगा। अगर आपको मुझमें वो बात लगती है तो आप हाँ कह दीजिएगा। प्रणाम।“ इतना कह कर दिव्य वहाँ से बाहर चला गया। आरती की ओर देख कर उसके पिता ने पूछा “बेटा ये सब क्या था ?” आरती ने अपना पर्स उठाया और बाहर निकलते हुए बोली “पापा मैं खुद हैरान हूँ। आप रुकिए। “ आरती ने बाहर निकलते हुए अपनी माँ की आँखों से बहते हुए दो आंसुओं को देखा और उसकी भी आँखें भीगने को आईं। बाहर गाड़ी मे बैठे दिव्य के पास बैठ कर आरती बोली “ये तुमने अंदर क्या किया ? इतनी हिम्मत कहाँ से लाये तुम ?“ “सच बोलने के लिए हिम्मत नहीं बस इच्छा की ज़रूरत होती है आरती। मेरे साथ चलो। शाम ढलने को है। एक काम रह गया है। “आरती का मन अब खुशी से झूम रहा था। उसका दिव्य लौट आया था और उसका रोम रोम खिल रहा था। उसका मन किया की दिव्य को कस कर गले लगा ले और ऐसे अपने पास रख ले जैसे कोई सूरज की रोशनी को अपने अंदर समेट लेता हो।

4 दिसम्बर 2018 रात 10 बजे

गाड़ी रुकी और दिव्य ने आरती का हाथ पकड़ कर उसे गाड़ी से उतारा और उसे एक घर के सामने ले आया। “ये तो ॰ ॰“ आरती कुछ बोल पाती उससे पहले दिव्य बोल पड़ा “ हाँ ये है हमारा घर। दरवाजा खुलने से पहले एक बात सुनो आरती “ मैं ये नहीं कहता की ज़िंदगी में हमेशा तुम्हें खुश रखूँगा। पर इतना ज़रूर कहूँगा की जो दुख आएंगे उनमे तुम्हारे साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़ा रहूँगा।" आरती की आँखें नाम होने को थी की दिव्य ने दरवाजा खोला। चारों तरफ दीवारों पर आरती और दिव्य की तस्वीरें लगी हुई थीं और ज़मीन पर गुलाब बिखरे पड़े थे। सामने एक टेबल था जिस पर एक केक रखा हुआ था जिसपे लिखा था “हैप्पी एनिवरसरी माय डियर वाइफ़ एंड लाइफ आरती।“ आरती ने जब वो देखा तो बोल पड़ी “ हम्म आखिर अब तुम अपने असली अवतार में आ ही गए मेरे प्यारे पति। इतना कह कर उसने दिव्य को गले से लगा लिया और बोली “अब बताओ ये सब क्या माजरा था ?”

दिव्य ने कुछ कहा नहीं। उसका मन बस पिछले दो सालों को सोचने लगा। 4 दिसम्बर 2016 को उसकी शादी आरती से हुई थी। शादी के बाद जबसे दोनों पति पत्नी बने थे, तब से उनके बीच कुछ बदलाव सा आ गया था। दिव्य को भविष्य की चिंता सताने लगी और उसने सोचा की पहले अच्छे से काम कर लिया जाए उसके बाद फिर शादी के आनंद को उठाया जाए। पर भविष्य को सँवारने में लगे दिव्य को मालूम नहीं चला कि उसका आज वो खोता जा रहा है। आरती उससे अक्सर कहा करती थी “ लौट आओ दिव्य। लौट आओ।“ और वो हमेशा इस बात को मज़ाक में टाल देता था। पर जब उसने देखा की आरती समय के साथ मुरझाने लगी थी और दुखी रहने लगी थी, तो उसे एहसास हुआ की वो ये सब किसके लिए कर रहा है ? उसने ठान लिया था की शादी के दो साल पूरे होने की खुशी में वो आरती को उसका दिव्य लौटा देगा। आज शादी के दो साल पूरे होने पर उसने फिर से पुराना दिव्य बन कर अपनी पत्नी को ये एहसास दिलाना चाहा था कि वो अब भी उसके साथ है। सोच मे डूबे दिव्य का ध्यान अचानक बिजली कड़कने के साथ टूटा। उसने आरती के होठों को चूम कर उसे अपनी बाहों में उठा लिया। घर की छत पर हल्की बारिश में आरती ने अंगूठी निकाल कर दिव्य को दी और उसने उसे आरती को पहना कर कहा “ दिव्य आरती से हमेशा ऐसे ही प्यार करता रहेगा। आज एक नई शुरुआत है हमारे प्यार की।"फोन पर मैं ही था पर तुम मेरी आवाज़ को पहचान नहीं पाई। वो आरती को धीरे धीरे अपनी बाहों में झुलाने लगा। उसकी नज़र आरती के काँपते हुए होठों पर पड़ी।


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