लाचार माता पिता
लाचार माता पिता
सुखी राम अपना सारे उम्र की अपनी कमाई अपने चारो बच्चों के पालन पोषण एवं पढाई लिखाई और शादी विवाह में खर्च कर दिये । आज चारो बच्चे अपना परिवार लेकर अलग रह रहे हैं । और मानो नारा दे रहे है कि छोटा परिवार सुखी परिवार ,सुुुखी राम अब अपनी पत्नी के साथ एक झोपडी मे किसी तरह से अपना जीवन यापन कर रहे हैं। सुुुखी राम का नाम भी मानो उपहास कर रही हो, उनकी गरीबी का शरीर भी अब साथ नहीं देे रही थी।सारे अरमान रेेत में बने महल के समान ढह चुके थे। आज सुखी राम के पास बेबसी और लाचारी के अलावा कुछ नहीं था। आज सुखी राम अपने सोचे हुए सपनो को याद करते हुए मन में विचार करते हैं कि कास हमारे बच्चे हमारे पास होतेे तो कितना अच्छा होता और हमारी परवरिश में क्या कमी रह गयी। जिन बच्चों के लिए हम अपनी पुरी उम्र लगा देते हैंवही बच्चे हमे इस बुजुर्ग अवस्था में हमे असहाय लाचार क्यो छोड जाते हैं।
यही विचार करते हुए आज सुखी राम कभी अपने किस्मत तो कभी ईश्वर को कोसता की इस से अच्छा तो बिना औलाद के रहा होता तो कम सेे कम यह
संंतोष रहता की मै बिन औलाद के हूँ। सुखी राम कहते हैं कि आज जो मेरा समय है कल तेरा होगा जो अपने माता पिता को कष्ट देते हैं उनको सपनेे में भी सुख का अनुभव नहीं होता।।
